(धर्मपाल धनखड़) आम चुनाव की आहट के साथ ही हरियाणा भाजपा में विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। इस समय प्रदेश की दस लोकसभा सीटों में से सात भाजपा के पास हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों का चार साल का रिपोर्ट कार्ड देखा जाये तो इनके पास अगले चुनाव में जनता को बताने के लिए उपलब्धि के नाम पर कुछ ठोस नहीं है। इसलिए सबसे ज्यादा बेचैनी उन सांसदों को हो रही है, जो 2014 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर, भाजपा के टिकट पर चुने गये थे।
दरअसल हरियाणा के कुछ नेता जनता का मूड भापने में एक्सपर्ट हैं। ऐसे नेता अपनी विफलताओं का ठीकरा सत्तारूढ़ दल के सिर फोड़कर, जिस पार्टी की हवा दिखती है, उसका दामन लेते हैं। और जनता उन्हें बेचारा, उपेक्षित और बेबस मानकर एक बार फिर इस उम्मीद के साथ कि इस बार शायद इसे पावर मिल जाये और क्षेत्र का कुछ भला हो जाये। बेचारगी, बेबसी और लाचारी जाहिर करने का ये सिलसिला शुरू हो चुका है।
दक्षिण हरियाणा की भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से सांसद धर्मवीर सिंह पहले ही क्षेत्र के लोगों के काम ना करवा पाने की विवशता जाहिर करके, अगला लोकसभा चुनाव ना लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। साथ ही उन्होंने विधायक के रूप में क्षेत्र की ज्यादा सेवा करने की इच्छा जताई है।
दक्षिण हरियाणा की गुड़गांव लोकसभा सीट से सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह को भी उनके क्षेत्र का विकास ना करवा पाने का दर्द सताने लगा है। राव इंद्रजीत चार बार सांसद, चार बार विधायक चुने जा चुके हैं। केंद्र और राज्य सरकारों में मंत्री रहकर भी अहीरवाल के लिए कुछ नहीं कर पाये हैं। बरसों तक कांग्रेस में सत्तासुख भागने के बाद 2014 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गये। वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन भाजपा में भी उनकी चाह पूरी नहीं हुई।
चार साल से मोदी जी की सरकार में राज्यमंत्री हैं, लेकिन अहीरवाल के लिए कुछ नहीं कर पाने की कसक अभी बाकी है। इसलिए उन्होंने 15 जुलाई को झज्जर जिले के मुंडाखेड़ा गांव में कार्यकर्ता सम्मेलन किया और लोगों के सामने अपनी विवशता जाहिर की। इस कार्यकर्ता सम्मेलन के जरिये जहां उन्होंने अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया, वहीं उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद सिंह हुड्डा के गढ़ में कार्यकर्ता सम्मेलन के नाम पर जनसभा करके उन्हें चुनौती देने का काम भी किया। साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहरलाल पर भी निशाना साधा।
इस मौके पर राव इंद्रजीत सिंह ने पीएम मोदी को अच्छा नेता बताया और मुख्यमंत्री मनोहरलाल पर तंज किया कि उन्हें ऐसा सीएम नहीं चाहिए जो मुख्यमंत्री बन कर नेता बने, बल्कि जो जनता के बीच रहने वाला नेता है, वहीं मुख्यमंत्री बने। उन्होंने हरियाणा की चौधर का सवाल उठाया और दक्षिण हरियाणा से मुख्यमंत्री बनाने की बात भी कही। इस सम्मेलन में राव ने एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद सिंह हुड्डा और ओमप्रकाश चौटाला को खूब कोसा। साथ ही मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को भी घेरा। उन्होंने कहा कि एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आये तीन साल हो गये, लेकिन मुख्यमंत्री खट्टर एक बार भी इसको लेकर पीएम से नहीं मिले।
यहां ये बताना भी गलत नहीं होगा कि राव इंद्रजीत के पिता राव बीरेंद्र सिंह कुछ समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री, और केन्द्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। उन्होंने ऐसे समय में अपनी विशाल हरियाणा पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था, जब जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी के लिए जूझ रहीं थी। अब सवाल ये उठता है कि एक परिवार को अहीरवाल की जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिलने और सत्ता में रहने बावजूद वे क्षेत्र के विकास के लिए कुछ खास क्यों नहीं कर पाये?
भाजपा के एक और सांसद राजकुमार कुमार सैनी पार्टी लाइन पर चलते हुए इतने आगे निकल गये हैं कि अब वो अलग पार्टी बनाकर, चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे है। कुरूक्षेत्र के सांसद सैनी, पार्टी की गुप्त रणनीति के तहत प्रदेश में जातिवाद का जहर फैला रहे हैं। अब उन्हें लगने लगा है कि वे जाटों का विरोध करते करते गैर जाटों के एकछत्र नेता बन गये हैं और वे खुद को भावी मुख्यमंत्री मानने लगे हैं। इसके चलते वे भाजपा नेतृत्व को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं और पार्टी आलाकमान मौन साधे है।
इस तरह भाजपा के सात में से तीन सांसद 2019 के चुनाव से पहले अपनी अलग राह पकड़ते नजर आ रहे हैं। बाकी चार सांसद पार्टी के साथ बंधे रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे है। हालांकि बतौर सांसद अपने क्षेत्र के लोगों को गिनवाने के लिए उनके खाते में भी कोई खास उपलब्धि नहीं है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हरियाणा के पार्टी नेताओं को कई बार झाड़ लगा चुके हैं। एक बार तो उन्होंने यहां तक भी कहा कि आप लोगों के साथ बैठने का मतलब है, समय की बर्बादी। हालांकि हरियाणा भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश की सभी दस लोकसभा सीटें और विधानसभा की 90 में से 65 सीने जीतने की रणनीति बनायी है।
उधर, भाजपा मुख्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी ने सात में से कम से कम पांच सांसदों की जगह नये उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया है और प्रत्याशियों की खोज भी शुरू कर दी है। ऐसे में वर्तमान सांसदों को बेचैनी होना स्वाभाविक है।