प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सूबे के डीजीपी को निर्देश दिया है कि थानों पर मुकदमा दर्ज करते समय मजबूत आधार हो तभी एससी एसटी एक्ट की धाराएं लगाई जाएं। तहरीर में यदि ऐसे तथ्य दिए गए हैं, जिनसे स्पष्ट होता हो कि दलित उत्पीड़न का अपराध पूरी तरह से बन रहा है, तभी एससी एसटी एक्ट की धाराएं लगाई जाएं। सरसरी तौर पर बिना ठोस वजह के दलित उत्पीड़न की धाराएं न लगाई जाएं। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को इस आशय का सर्कुलर प्रदेश के सभी थानों को जारी करने का निर्देश दिया है। मुजफ्फरनगर के चरथावल थाने में दर्ज एससी एसटी एक्ट की प्राथमिकी को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायमूर्ति वीके नारायण और न्यायमूर्ति एसके सिंह की पीठ ने यह आदेश दिया।
याची नीरज कुमार मिश्र व अन्य ने याचिका में प्राथमिकी रद्द करने की मांग की है। याची का कहना है कि एससी एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध न बनने के बावजूद उसकी धाराएं लगा दी गई हैं। याचियों का कहना है कि आईपीसी की धाराओं के तहत अपराध में सात साल से अधिक की सजा नहीं हो सकती।
एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1) व 3(2)(1) के तहत प्राथमिकी के आरोपों से कोई अपराध बनता ही नहीं है। ऐसे में उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह इस आशय का सर्कुलर जारी कर पुलिस को आदेश दें कि यदि आरोपों से एससी एसटी एक्ट के तहत अपराध न होता हो तो वह प्राथमिकी में इस एक्ट का उल्लेख न करें। कोर्ट ने इस मामले में चरथावल थाने में दर्ज प्राथमिकी के तहत याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने याचियों की ओर से प्रस्तुत तर्क के आधार पर मामले को विचारणीय माना है और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर राज्य सरकार सहित विपक्षी से एक माह में याचिका पर जवाब मांगा है। याचिका पर अगली सुनवाई 25 जनवरी को होगी।