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(जलीस अहसन) नरेन्द्र मोदी के चार साल के शासन के दौरान पंजाब को छोड़ कर एक के बाद एक सभी राज्यों में भाजपा के हाथों सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस हाल में हुए कर्नाटक को भी लगभग गवां चुकी थी। लेकिन ऐन वक्त पर उसने, कुछ दिन पहले तक भाजपा की बी टीम बताने वाली, जेडीएस को सत्ता की कमान सौंप कर, 2019 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ते मोदी के रथ के रास्ते में कुछ रोड़ा ज़रूर डाल दिया है। कर्नाटक में संख्या में जेडीएस से दोगुनी होने के बावजूद भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए उसने एच डी कुमारस्वामी की अगुवाई में सरकार बनाना मंजूर किया। अगर चुनाव से पहले वह अपने ‘‘बिग ब्रदर‘‘ वाली हैकड़ी छोड़ कर उससे पहले ही समझौता कर लेती तो उसे शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।

कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना कर उसने अपनी कमज़ोर हो चुकी स्थिति को जगज़ाहिर कर दिया है। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ हो रही विपक्षी लामबंदी में कांग्रेस का मुख्य भूमिका में बने रहना असंभव हो चुका है। सरकार बनाने में सिर्फ आठ सीट से पीछे रह गई भाजपा की मोदी और अमित शाह की जोड़ी लोकसभा चुनाव से पहले इस दक्षिणी राज्य में जेडीएस-कांग्रेस सरकार को गिराने का हर अवसर तलाशती रहेगी।

(आशु सक्सेना) प्रेस क्लब ऑफ़ इंड़िया यानि पीसीआई के नये भवन की कवायद यूं तो दशकों पुरानी है, लेकिन यह मुद्दा पिछले दो दशक से काफी गरमाया हुआ है। ​साल 2007 से हर साल होने वाले क्लब के वार्षिक चुनाव में भी यह मुद्दा अहम छाया रहता है। दरअसल, प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की 13 महीने की सरकार के कार्यकाल में शहरी विकास मंत्री राम जेठमलानी ने पीसीआई को 7 रायसीना रोड का बंगला आवंटित किया था। पीसीआई के इतिहास में यह एआर विग-चांद जोशी कमेटी की महत्वपूर्ण उपलब्धी थी। लेकिन इस बंगले को अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली अगली एनडीए सरकार ने बलपूर्वक खाली करवा लिया था। जाहिरानातौर पर इस प्रकरण की मीड़िया में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

इस मामले को शांत करने के लिए सरकार ने 27 मार्च 2002 को राजेंद्र प्रसाद रोड़ पर स्थित बंगला संख्या 6 और 8 पीसीआई को कुछ शर्तों पर आवंटित किया। लेकिन उस जमीन पर पीसीआई का आज तक कब्जा नही हो सका है। जबकि उस जमीन के एवज में पीसीआई अब तक करीब दो करोड़ बीस लाख रूपये भारत सरकार को अदा कर चुका है। पीसीआई की 5 मई को हुई ईजीएम में जानकारी दी गई कि क्लब को आवंटित जमीन पर कब्जे के लिए अभी 2 करोड़ रूपये सरकार को ओर देने है। यह रकम अदा नहीं करने की स्थिति में सरकार इस जमीन के आवंटन को रद्द कर सकती है।

(आशु सक्सेना) कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों ने अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की धूंधली तस्वीर को काफी हद तक साफ कर दिया है। चुनाव नतीजों मेंं जहां भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट झलकी, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन नही कर सके। दक्षिण के इस सूबे में त्रिकोने संघर्ष में क्षेत्रीय दल ने अहम भूमिका अदा की। पूर्व प्रधानमंत्री एचड़ी देवगोंड़ा की पार्टी ने अपने प्रभाव क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया। चुनाव नतीजों में इसका फायदा काफी हद तक भाजपा को मिला है। जबकि इस इलाके में कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा नुकसान हुआ है।

इस परिदृश्य से एक बात साफ हो गई कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने बूत पर बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने की स्थिति में नही है। वहीं कांग्रेस की मजबूरी है कि वह समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी तालमेल करे, ताकि अपने अस्तित्व को बरकरार रखते हुए भाजपा को सत्ता से दूर रखने में अहम भूमिका निभा सके। देश के राजनीतिक परिदृश्य में दो दशक बाद एक बार फिर ऐसी लोकसभा की तस्वीर उभरती नजर आ रही है। जहां भाजपा को सत्ता पर काबिज होने से रोकने के लिए तमाम क्षेत्रीय दल एक छाते के नीचे खड़े हों ओर कांग्रेस इस संघीय मोर्चे को बिना शर्त समर्थन की पेशकश करे।

(जलीस अहसन) हक़ीक़त से आंखे मूंदे, ख़्याली पुलाव बनाने वाली कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुंह की खाकर ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ केे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के सपने को वास्तविकता की तरफ ले जाने में भारी मदद की है। त्रिशंकू नतीजों को देखते हुए इस बात के पूरे आसार हैं कि राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। एक बार ऐसा हो जाने पर भाजपा के लिए कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को तोड़ कर बहुमत सिद्ध करना आसान हो जाएगा। देश की राजनीति में यह आम बात है। जिस समय केन्द्र में जिसकी सरकार होती है, उसके लिए ऐसा मैनेज करना बहुत ही आसान बात है। विपक्षी विधायक टूटेंगे, उनकी विधानसभा सदस्यता खारिज होगी और दोबारा चुनाव होने पर वे भाजपा टिकट पर जीत कर वापसी कर लेंगे। भाजपा यह नुस्खा पहले भी अपना चुकी है।

कांग्रेस और जेेडीएस को मिले वोट प्रतिशत को मिला दें तो वह 56 प्रतिशत तक है, जो भाजपा से कहीं ज्यादा है। लेकिन क्योंकि दोनों ने चुनाव बाद गठबंधन किया है, इसलिए राज्यपाल इन दोनों दलोें से पहले, अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन के उभरी भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण दे सकते हैं, जो परंपरा विरूद्ध नहीं है।

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