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(जलीस अहसन) आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दू राष्ट्र की अपने संगठन की परिभाषा को साफ करते हुए कहा है कि ‘‘हम कहते हैं कि हम हिन्दू राष्ट्र हैं। हिन्दू राष्ट्र हैं, इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं है।‘‘ उन्होंने यह राय भी दी है कि भारत में रहने वाले सभी लोगों को हिन्दू कहा जाए। मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की अवधारणा रखते हुए कहा था कि पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसमें हिन्दुओं और दीगर मज़हबों को मानने वालों की जगह नहीं होगी।

14 अगस्त 1947 को मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान के बन जाने पर जिन्ना ने कहा था, ‘‘ आप आज़ाद हैं। आप अपने मंदिरों में जाने को आज़ाद हैं, आप अपनी मस्जिदों में जाने को आज़ाद हैं या पाकिस्तान में किसी भी पूजा स्थल जाने को आज़ाद हैं। आप किसी भी धर्म-जाति के हों, इसका देश से कोई लेना देना नहीं है।‘‘ जिन्ना के इस भरोसे के बावजूद मुस्लिम राष्ट्र के नाम पर बने इस मुस्लिम बहुल देश में रहने वाले अन्य सभी अल्पसंख्यक धार्मिक समूह कुछ ही समय बाद नियमित भेदभाव का शिकार बनते गए। अपनी आस्था के चलते वे हाशिए पर खिसकते चले गए और हिंसा तथा मौत तक का शिकार बने। आज भी वो सिलसिला वहां जारी है।

अभी हाल ही में वहां विभाजन के बाद पैदा हुए और आज़ाद ख्याल कहे जाने वाले इमरान खान वहां के प्रधानमंत्री बने हैं। वो ‘‘ नया पाकिस्तान‘‘ बनाने के वायदे के साथ इस गद्दी पर बैठे। उन्होंने अपने आर्थिक सलाहकारों की समिति में विश्वविख्यात अर्थशास्त्री आतिफ मियां को शामिल किया लेकिन कुछ ही दिन बाद कट्टरपंथी मुसलमानों के आगे घुटने टेकते हुए उन्हें समिति से हटा दिया। वजह सिर्फ इतनी थी कि वह अहमदिया मुसलमान थे और पाकिस्तान के संविधान में इस समुदाय को मुसलमान मानने से इंकार कर दिया है।

ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री काल में कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए संविधान में ऐसा संशोधन किया गया था। किसी धर्म को औपचारिक रूप से राष्ट्र का दर्जा दे देने से अन्य धर्म के मानने वालों के साथ भेद भाव और अन्याय करने के रास्ते खुल जाते हैं और कट्टरपंथी इतने ताकतवर हो जाते हैं कि उन्हें काबू करना मुशिकल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। जिन्ना के देहांत के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ने 1949 में संविधान संशोधन पेश किया जिसमें इस्लाम को संवैधानिक दर्जा मिल गया और इसके बाद वहां के हिन्दू, इसाई सहित सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ जबर्दस्त भेदभाव, हिंसा और दमन का दौर शुरू हो गया।

पाकिस्तान रूपी मुस्लिम राष्ट्र के अस्तित्व में आते ही वहां से अधिकतर हिन्दू, सिख, इसाई आदि भारत भाग आए। जो बचे वे भेदभाव का शिकार बने। बाद में पाकिस्तान संविधान ने इन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लोगों के प्रांतों के मुख्यमंत्री या देश का प्रधानमंत्री बनने पर रोक लगा दी। पड़ोसी देश पाकिस्तान में हिन्दू समुदाय के लिए अभी कुछ महीने पहले तक मैरिज एक्ट तक नहीं था, जिसके चलते तलाक शुदा हिन्दू औरतों या विधवा हिन्दू औरतें संपत्ति या पेंशन में हिस्सेदारी पाने से वंचित रह जाती थीं।

कभी ‘‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान‘‘ का नारा देने वाली आर एस एस के प्रमुख भागवत आज कह रहे हैं कि हम हिन्दू राष्ट्र हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं कि इसमें मुसलमान नहीं चाहिए। साथ वह यह भी कह रहे हैं कि जैसे जमर्नी में रहने वाले को जर्मन, अमेरिका में रहने वाले को अमेरिकन कहा जाता है उसी तरह हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी लोगों को हिन्दू कहा जाए। लेकिन अपने को हिन्दुस्तानी, भारतीय या इंडियन कहने में गर्व करने वालों को हिन्दुस्तानी न कह कर हिन्दू कहने का यह दबाव वह क्यों बनाना चाहते है।

हिन्दू शब्द एक धार्मिक आस्था में विश्वास रखने वालों का बोध देता है, किसी राष्ट्र का नहीं। ऐसे में भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के संघ के मनसूबों में पाकिस्तान के मुस्लिम राष्ट्र बनने के बाद वहां के अल्पसंख्यकों के लिए पैदा हुए सारे खतरे उभर सकते हैं। भारत को हिन्दू राष्ट्र की बजाए भारत-इंडिया-हिन्दुस्तान बने रहना ही उसके अस्तित्व और समाजिक सद्भाव के लिए ज़रूरी है। इसमें बेमतलब के शिगूफे छोड़ना देश को भारी नुक़सान पंहुचा सकता है।

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