(जलीस अहसन) सन् 1984 में प्रचंड बहुमत से बनी कांग्रेस सरकार के समय बोफर्स तोप सौदा दलाली में फंसे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1989 में चुनाव आने पर राम मंदिर मुद्दे का सहारा लिया। अदालत के आदेशों को धता बताते हुए उन्होंने 10 नवंबर 1989 को विवादास्पद स्थल पर भूमि पूजन कराने की अनुमति देकर राम मंदिर की आधार शिला रखवा दी। इससे पहले वह बाबरी मस्जिद का ताला भी तुड़वा चुके थे। भूमि पूजन के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अयोध्या को ही लोकसभा चुनाव प्रचार का श्रीगणेश करने के लिए चुना और रामराज्य लाने का जनता से वायदा किया।
बोफर्स मामले में ‘‘मिस्टर क्लीन‘‘ की अपनी छवि गवां चुके राजीव गांधी को भगवान राम ने सहारा नहीं दिया। तोप दलाली का यह मुद्दा उठाने वाले वी पी सिंह ने तेलगु देशम, डीएमके, असम गण परिषद् से मिल कर राजीव गांधी और कांग्रेस का बोरिया बिस्तर गोल कर दिया। इसमें भाजपा और कम्युनिस्टों ने सिंह को बाहर से समर्थन दिया था। 30 साल बाद फिर कुछ वैसे ही हालात बनते नजर आ रहे हैं। छह महीने बाद 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। 2014 में कांग्रेस नीत यूपीए को करारी शिकस्त देकर प्रचंड बहुमत से बनी ‘‘मिस्टर क्लीन‘‘ नरेन्द्र दामोदर मोदी की सरकार राफेल लड़ाकू विमान खरीद घोटाले में फंसी है।
सत्ता के आखिरी पड़ाव तक राम मंदिर मुद्दे पर खामोशी अख्तियार किए भाजपा और उसकी सरपरस्त आरएसएस को भी लग गया है कि अब राम मंदिर मुद्दा ही उसका बेड़ा पार लगा सकता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी को हिदायत दी कि अयोध्या में विवादास्पद स्थल पर भव्य राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए भाजपा सरकार संसद में एक कानून पारित कराए। हालांकि, उच्चतम न्यायालय में इस मुद्दे पर इसी महीने की 29 तारीख से सुनवाई शुरू होनी है।
लेकिन जनता के हर वर्ग में काम करने वाली आरएसएस ने शायद भांप लिया है कि मोदी द्वारा घोषित नमामि गंगे, ग्राम उदय, र्स्टाट अप इंडिया, स्मार्ट सिटी मिशन, रोजगार सृजन, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, जन धन योजना, आयुष्मान भारत और कौशल विकास जैसी ढेर सारी योजनाएं जमीनी स्तर पर न उतर कर कागजों, कोरे नारों और जुमलों तक ही सीमित होकर रह गई हैं। 2014 के चुनाव प्रचार में विदेशों में जमा भारतीयों के काला धन को वापस लाकर हर नागरिक को 15 लाख रूपए देने के मोदी के वादे को सत्ता में आने के बाद महज ‘‘जुमला‘‘ कह कर टालने से जनता में खासी नाराजगी पहले ही है। उसे अब सारे वायदे और सरकार की योजनाएं भी महज़ जुमला लग रही हैं।
2014 के चुनाव प्रचार में मोदी तेल की बढ़ती कीमतों और रूपए की गिरावट पर तबकी सरकार को खूब घेरते थे, लेकिन उनकी सरकार के दौरान तो रूपया और भी ज्यादा औंधे मुंह गिरता जा रहा है और तेल के दाम भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस सबके साथ, राफेल सौदे से सरकार पर भ्रष्टाचार का संदेह भी पैदा हुआ है। इसलिए संघ परिवार को सत्ता के एकदम अंतिम पढ़ाव में राम मंदिर की याद आई है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी संघ प्रमुख के दिए सिरे को थामते हुए तुरंत कहा कि 2019 से पहले राम मंदिर निर्माण के कदम उठाए जाएंगे। मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा। उन्होंने उच्चतम न्यायालय को भी हिदायत सी दे दी कि उसे यह ध्यान रखना होगा कि 600 साल पहले मंदिर का विध्वंस हुआ था, जबकि अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मामले को ज़मीन विवाद के तौर पर निपटाएगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी संघ प्रमुख की बात को आगे बढ़ाते हुए ऐलान कर दिया है कि लोग अब मंदिर निर्माण की तैयारी शुरू करें।
अफसोस की बात यह है कि मोदी की अगुवाई में जो संघ परिवार जनता, खासकर नौजवानों को स्किल इंडिया, र्स्टाट अप इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, भ्रष्टाचार मुक्त इंडिया के सपने दिखा कर सत्ता पर काबिज़ हुआ, वह अब इनकी नाकामी से मुंह चुराते हुए धार्मिक स्थल बनाने की बात करने लगा है। ‘‘सबका साथ, सबका विकास‘‘ की अपनी बात से हटते हुए चुनाव जीतने के लिए मंदिर मस्जिद के नाम पर समाज को बांटने की तैयारियां शुरू हो रही हैं। लेकिन इस बात की पूरी संभावना हैं कि जैसे 30 साल पहले अपने को ठगा महसूस कर रही जनता ने राजीव गांधी को उनकी ऐसी ही एक कोशिश में नाकाम कर दिया था, एक बार फिर वही इतिहास दोहराया जाए।