(धर्मपाल धनखड़): गुजरात में यूपी, बिहार और एमपी समेत उत्तर भारतीयों को खदेड़ने की जो मुहिम चल रही है उस पर राज्य और केंद्र सरकार की चुप्पी दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्रवाद की बात करने वाली पार्टी की सरकार का ये कैसा राष्ट्रवाद है, ये तो साफ हो गया। 2002 में गोधरा कांड के बाद मुस्लिमों को मारा पीटा और भागने को मजबूर कर दिया। ठीक वैसे ही अब 2018 में बलात्कार की एक घटना के बहाने उत्तर भारयीय मजदूरों को निकाला जा रहा है। बड़े पैमाने पर शुरू हुए इस नापाक अभियान को सरकार चुपचाप देखती रही। जब बड़ी संख्या में लोगों को खदेड़ा जा चुका, तब सरकारी तंत्र हरकत में आया। राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गयी।
सरकार का कहना है कि इस सारे कांड के पीछे राहुल गांधी के प्रिय अल्पेश ठाकोर का हाथ है। अब सवाल ये है कि अगर ठाकोर इतना सब कुछ कर रहा था, तो सरकार क्या कर रही थी? अर्थात सरकार हर मोर्चे पर विफल। अन्य प्रदेशों के मजदूरों को भगाने का षड्यंत्र रचने के पीछे एक ही कारण है कि गुजरात सरकार युवाओंं को रोजगार देने में विफल रही है। यानी जिस गुजरात माडल का नरेंद्र मोदी 2014 के चुनाव से पहले सारे देश में ढिंढोरा पीट रहे थे, वास्तव में वो कुछ था ही नहीं।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक गुजरात सरकार उद्योगों में 80 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने का कानून लागू करने जा रही है। इससे साफ हो जाता है कि सरकार की मंशा क्या है? और उत्तर भारतीय मजदूरों को क्यों खदेड़ा जा रहा है? अन्यथा बलात्कार की एक घटना, जो सीधे सीधे कानून व्यवस्था का मसला है, उसके बहाने प्रवासी मजदूरों को खदेड़ने का कोई औचित्य नहीं है। जाहिर है ये सब एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है और इसमें सरकार की भी मौन सहमति है।
प्रवासी मजदूरों को खदेड़ने के पीछे राज्य सरकार का मकसद स्थानीय लोगों को रोजगार देना नहीं, बल्कि एक बहस और विवाद खड़ा करना है। जिससे स्थानीय लोगों को लगे कि सरकार तो उनके लिए बहुत कुछ कर रही है, लेकिन रोजगार पर कब्जा प्रवासी मजदूरों ने कर रखा है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। किसी भी प्रदेश का निम्न मध्यम वर्ग का शिक्षित युवा फैक्टरियों में मजदूरी करना ही नहीं चाहता। इसके अलावा उद्योगपतियों ने एक अघोषित नियम बना रखा है कि स्थानीय मजदूरों को कम से कम काम पर रखा जाये, ताकि वे दबाव में रहे। साफ है कि स्थानीय मजदूरों को काम पर रखा जायेगा, तो वो मैनेजमेंट के शोषण के विरुद्ध अपने अधिकारों के लिए ज्यादा मजबूती से आवाज बुलंद कर सकते हैं।
गुजरात में जो हो रहा है इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में भी है। वहां भी राज ठाकरे जैसे नेता खुलेआम उत्तर भारतीयों के खिलाफ जब तब हिंसक कार्रवाई को अंजाम देते रहे हैं। असल में तुच्छ राजनीतिक सोच तथा धरातल पर बिना मेहनत किये फायदा उठाने की ललक ही इन तमाम घटनाओं के पीछे होती है। देश के सभी प्रदेशों में इस तरह की बीमार मानसिकता के लोग और राजनीतिक दल हैं। इसी तरह की क्षेत्रवादी शक्तियां अन्य प्रदेशों में भी सक्रिय हो सकती और संभवत: भविष्य में हो भी जाये, तो पूरे देश में अराजकता फैल जायेगी। इस तरह के भयावह हालात पैदा होने से रोकने के लिए केंद्र सरकार को ठोस व कड़े कदम उठाने चाहिए।
क्षेत्रवाद और प्रांतवाद की धारणाएं भी जातिवाद और धार्मिक कट्टरता जितनी ही खतरनाक है। अगर यही सब होना है तो राष्ट्रवाद और भारत की एकता व अखंडता के नारे महज नारे बनकर ही रह जायेंगे। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को विश्व के मानचित्र पर चमकाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ उनकी पार्टी और उनके सहयोगी दलों की सरकारें अपने अपने प्रदेशों से प्रवासियों को खदेड़ने की मुहिम चलाती हैंं। ये दोहरा मानदंड ना केवल उन्हें और उनकी पार्टी को ले डूबेंगे, बल्कि देश को भी रसातल में पहुंचा देंगे।