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(आशु सक्सेना) उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विजयादशमी के मौके पर खुद बनाम अखिलेश यादव बना लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने लखनऊ की ऐतिहासिक ऐशबाग रामलीला मैदान पर दशहरा मेले में शामिल होकर आगामी विधान सभा चुनाव का बिगुल फूंका है। मोदी की विजयादशमी के मौके पर लखनऊ यात्रा पर तमाम राजनीतिक दलों ने आलोचना की। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव बिहार में होता तो पीएम रावण जलाने वहां जाते। यह बात दीगर है कि प्रोटोकॉल के दायरे में विजयादशमी पर लखनऊ पहुंचे मोदी का स्वागत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एयरपोर्ट पर किया। उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीट के बूते पर मोदी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुए है, लिहाजा विधान सभा चुनाव में अपने जनाधार को बरकरार रखना मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौति है। देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनज़र फिलहाल मोदी की लोकप्रियता लोकसभा चुनाव जैसी नहीं है । जाहिरातौर पर सूबे के चुनाव में मोदी बनाम अखिलेश के मुकाबले में अखिलेश आगे नज़र आ रहे हैं। मोदी ने गुजरात के विकास मॉडल और मंहगाई के नारे पर केंद्र की सत्ता हासिल की थी। उनके शासन में मंहगाई तेज़ी से बड़ी है। जहाँ तक विकास मॉडल की बात है अखिलेश को भी लोग उत्तर प्रदेश का विकास पुरुष मानने लगे हैं। लिहाजा मोदी अब ये विधान सभा चुनाव विकास के नारे पर नहीं जीत सकते। नतीजतन मोदी ने चुनाव को साम्प्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया है। विजयादशमी पर लखनऊ में मोदी ने सिर्फ पाकिस्तान को निशाना बनाया। उन्होंने पड़ोसी देश चीन पर एक शब्द भी नहीं बोला। जबकि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में देश के लिए चीन पाकिस्तान से बड़ी समस्या नज़र आ रहा है।

चीन ना सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है बल्कि वह यूएन में मसूद अज़हर पर प्रतिबंध का भी विरोध कर रहा है । मोदी उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए चुनावी माहौल को साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं, ताकि साम्प्रदायिक आधार पर वोटों के धुर्वीकरण का उनको लाभ हो सके। लेकिन प्रदेश के राजनीतिक माहौल में अब साम्प्रदायिकता को मुद्दा बनाकर किसी भी पार्टी का चुनाव जीतना आसान नहीं है। हाँ ये बात सही है कि सूबे में अगर चुनाव साम्प्रदायिक लाइन पर हुआ, तब भाजपा को सबसे ज़्यादा फायदा होगा। क्योंकि तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टी आमने सामने हैं। बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनतादल (यू) समेत कई अन्य राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ताल ठोक चुके हैं। इन हालात में धर्मनिरपेक्ष वोटों के विभाजन की तस्वीर उभर रही है। सत्तारूढ़ सपा को सत्ता विरोधी माहौल और चाचा भतीजे की जंग का खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है । सवाल ये है कि सूबे के चुनाव में वोटर किस आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनेंगे? चुनावी मुद्दा अगर विकास बना रहा, तब अखिलेश यादव कि सत्ता में वापसी को कोई नहीं रोक सकता। अगर साम्प्रदायिकता हावी हुई, विधान सभा त्रिशंकु होगी और सत्ता पर एक बार फिर बसपा-भाजपा गढ़बंधन की सरकार काबिज़ होगी ।

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