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(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार का स्वाद चखने के बाद अब अपनी पूरी ताकत बिहार विधानसभा चुनाव में लगा दी है। अभी चुनाव की अधिसूचना भी जारी नही हुई है और प्रधानमत्री प्रदेश में तीन चुनावी सभाओं को संबोधित कर चुके हैं। मोदी ने अब मतदाताओं को लुभाने के लिए बड़ी बड़ी घोषणाऐं भी करनी शुरू कर दी है। उन्होंने बिहार को विशेष आर्थिक पैकेज देने की घोषणा कर दी है। यह बात दीगर है कि उन्हें बिहार को यह पैकेज देने की घोषणा करने में 15 महीने का वक्त लगा। बहरहाल देर से आये दुरूस्त आये की कहावत को अंजाम देते हुए मोदी ने दिल्ली के बाद बिहार चुनाव को भी अपने बूते भाजपा को जिताने का संकेत दे दिया है। मोदी अपनी कोशिश में कितने कामयाब होंगे,यह तो बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद ही तय होगा।

लेकिन एक बात साफ हो गई है कि अगर यह चुनाव मोदी हार गये, तब संसद का शीतकालीन सत्र उनके लिए मानसून सत्र से ज्यादा भारी पडे़गा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन चुनावी रैलियों के बाद बिहार विधानसभा चुनाव को मोदी बनाम नीतीश कुमार बना दिया है। मोदी यह भूल रहे है कि दिल्ली चुनाव की शुरूआत भी उन्होंने इसी अंदाज में की थी और बाद में उन्हें अरविंद केजरीवाल के सामने एक चेहरे के तौर पर किरन बेदी को खड़ा करना पड़ा था। इत्तफाक से बिहार में नीतीश कुमार के सामने भाजपा के पास फिलहाल कोई चेहरा नजर नही आ रहा है। प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ही प्रदेश में भाजपा का चमकता हुआ चेहरा माने जा सकते है, लेकिन इन्होंने नीतीश कुमार के साथ लम्बे समय तक सत्ता सुख भोगा है। लिहाजा वह जनता के बीच नीतीश कुमार से ज्यादा विश्वसनीय नही हो सकते है। बिहारी बाबू यानि भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिंहा सार्वजनिक तौर पर नीतीश कुमार को विकास पुरूष का खिताब दे चुके हैं। सवाल यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान का आधार क्या होगा ? अगर मोदी के दावों के मुताबिक केंद्र सरकार का कामकाज आधार रहा, तब भाजपा का बेतरणी पार होना असंभव है। मोदी ने जिन नारों पर लोकसभा चुनाव जीता था, उनमंे लोगों को आकर्षित करने वाले नारे थे....... अच्छे दिन आने वाले हैं, बहुत हुई मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार, बहुत हुआ भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार आदि आदि। दिलचस्प पहलू यह है कि पिछले 15 महीनों में मोदी सरकार इन नारों पर खरी नही उतर सकी है। आज मंहगाई आम आदमी की कमर तोडे हुए है। उसकी थाली से दाल और प्याज तक गायब है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संसद का मानसून सत्र बर्बाद हो गया और प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे। इन हालातों में अच्छे दिन की बात करना बेमानी है। कहने का मकसद यह है कि केंद्र सरकार के कामकाज पर मोदी बिहार विधानसभा चुनाव नही जीत सकते। बिहार में दूसरा रास्ता है जातिगत गणित के आधार पर बढ़त हासिल करना। बिहार की राजनीति अभी तक जातिगत गणित पर ही लड़ी गई है। लोकसभा चुनाव के नतीजों पर अगर नजर डाली जाए, तो यह चुनाव मोदी ने जातिवाद के नाम पर ही जीता था। मोदी ने दलित नेता रामबिलास पासवान और अति पिछड़ी जाति के उपेंद्र कुशवाह के साथ चुनावी तालमेल करके प्रदेश की 40 लोकसभा सीट में से 32 सीटों पर कब्जा किया था। अब विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने एक नये साथी के तौर पर महादलित के रूप में जतिन राम माझी को साथ जोड़ा है। जबकि लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने अलग अलग लड़ा था, जो अब साथ साथ हैं। लोकसभा चुनाव में अगर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के मत प्रतिशत को जोड़ दिया जाये, तो भाजपा का प्रदेश से सफाया तय था। बहरहाल लोकसभा चुनाव के बाद जदयु, राजद और कांग्रेस गठजोड़ का प्रयोग विधानसभा के उप चुनावों में सफल रहा है। जबकि भाजपा को विधानसभा चुनाव से पहले एक नया साथी जतिन राम माझी को जोड़ना पड़ा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर बिहार विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। मोदी ने दिल्ली चुनाव के वक्त नारा दिया था कि दिल्ली मिनी इंडिया है, यहां से पूरे देश में संदेश जाता है। वह संदेश तो देश भर मंे जा चुका है। देखना यह है कि बिहार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्या संदेश देता है।

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