(आशु सक्सेना) पहले मिनी इंडिया यानि दिल्ली और फिर बिहार में शर्मनाक हार के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के उत्साह में कोई कमी नज़र नही आ रही है। उनका उत्साह चार राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार में साफ झलक रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने यूँ तो इन सभी राज्यों में भाजपा की ताकत बढाने की रणनीति अख्तियार की है। लेकिन उनकी पूरी ताकत और प्रतिष्ठा असम विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने पर टिकी हुई है। प्रधानमंत्री ने 30 मार्च से शुरू हो रही अपनी विदेश यात्रा से पहले राज्य में दो दिन के प्रवास का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने प्रदेश में सात चुनावी सभाओं को संबोधित किया। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के स्टार चुनाव प्रचारक के रूप में उभरे नरेंद्र मोदी का उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी के स्टार चुनाव प्रचारक का जज़्बा अभी तक कायम है। केंद्र की सत्ता पर प्रचंड बहुमत से काबिज होने के बाद मोदी ने राज्यों को जीतने का अभियान शुरू किया था। लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में प्रचार की बागडोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ अपने पास सुरक्षित रखी। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बावजूद वह अमित शाह को दूसरी बार पार्टी अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। अब भाजपा की इस जोड़ी का अगला इम्तिहान चार राज्यों खासकर असम विधानसभा चुनाव में है।
लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को पहली शिकस्त दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के स्टार चुनाव प्रचारक की बागड़ोर संभाली। चुनावी भाषण में मोदी ने कहा कि दिल्ली मिनी इंडि़या है, यहां का संदेश पूरे देश में जाता है। वह चुनाव मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल बन गया था। उस चुनाव में भाजपा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा को नेता प्रतिपक्ष की दावेदारी के लिए निर्धारित सात सदस्यों का आंकड़ा पाना मुश्किल हो गया। दिल्ली के इस मध्यावधि चुनाव में भाजपा 32 से सिमट कर तीन रह गई। बहरहाल इस चुनाव से यह संकेत मिलने लगा था कि भाजपा के स्टार प्रचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है। इसके बावजूद पार्टी परं उनकी पकड़ कमजोर नही हुई। अगला बिहार विधानसभा चुनाव भी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया। पार्टी की चुनावी रणनीति मोदी और शाह ने तय की। जंगलराज से लेकर सांप्रदायिक रंग देने के चुनावी हथकंडों का इस्तेमाल किया गया। इसके बावजूद चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। अब चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी के जनाधार को बढ़ाने की जिम्मेदारी भी मोदी और शाह ही अदा कर रहे हैं। पार्टी सभी राज्यों में अपनी ताकत बढाने की भरपूर कोशिश कर रही है। तमिलनाडु, केरल में पार्टी पूरी मजबूती के साथ उतर रही है। केरल में पार्टी ने पूर्व क्रिकेटर श्रीसंत को चुनाव मैदान में उतरा है। भाजपा की कोशिश है कि दक्षिण के इन दोनों राज्यों में जोरदार दस्तक दी जाए। दोनों ही राज्यों की विधानसभाओं में पार्टी की मजबूत मौजूदगी दर्ज करवाने की हर रणनीति अख्तियार की गई है। वहीं पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी के जनाधार को बचाने की चुनौती, पार्टी के कर्णधार मोदी और शाह के कंधों पर है। यहां पार्टी अपने बूते पर चुनाव मैदान में है। इन चुनावों में पार्टी की पूरी ताकत असम में सरकार बनाने पर लगाई जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से काफी पहले ही असम में चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। मोदी ने 19 जनवरी को कोकराझार में पहली चुनावी रैली को संबोधित किया। इस मौके पर मोदी ने एनडीए का विस्तार करते हुए बीपीएफ के साथ चुनावी गठबंधन की घोषणा की। उसके बाद मोदी ने अगले महीने 5 फरवरी को डिबरूगढ़ में चुनावी रैली के अलावा असम की एक गैस परियोजना राष्ट्र को समर्पित की और गुवाहटी में आयोजित साउथ एशियन गेम्स का उद्घाटन भी किया। असम में सत्ता हासिल करने की रणनीति के तहत भाजपा के रणनीतिकारों ने दो बार प्रदेश की सत्ता पर काबिज रह चुके क्षेत्रीय दल असम गण परिषद के साथ 2 मार्च को चुनावी गठबंधन की विधिवत घोषणा की। 126 सदस्यों की असम विधानसभा के लिए भाजपा अब 84 क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी खडे़ कर रही है। जबकि 42 सीट उसने अपने घटक दलों के लिए छोड़ी हैं। इनमें असम गण परिषद 24, बीपीएफ 16 और दो सीट पर भाजपा के अन्य दो घटक दल चुनाव लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव की अंकगणित पर अगर निगाह डाले, तो चुनावी गठबंधन के लिहाज से भाजपा का पडला सबसे ज्यादा भारी नजर आ रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा करीब 20 फीसदी लाभ के साथ 36.50 फीसदी मत मिले थे और प्रदेश की 13 लोकसभा सीट में तीन सीटों के फायदे के साथ भाजपा ने सात सीट पर जीत दर्ज की थी। वहीं उसके घटक असम गण परिषद को करीब 9 फीसदी मत के नुकसान के बावजूद 3.80 फीसदी मत मिले थे। इस गणित से प्रदेश के 40 फीसदी से ज्यादा मत भाजपा और उसके घटक दलों के पक्ष में नजर आ रहे हैं। जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 4.31 फीसदी मत के नुकसान के बावजूद करीब 30 फीसदी मत मिले थे और तीन सीट के नुकसान के साथ वह चार सीट पर सिमट गई थी। वहीं बद्रउद्दीन अजमल के एआईयूडीएफ को करीब 15 फीसदी मत मिले थे और वह लोकसभा की दो सीट जीतने में भी सफल रहा था। जबकि लोकसभा की एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार का कब्जा हुआ था। बहरहाल अब असम विधानसभा चुनाव में भी तिकोना संघर्ष माना जा रहा है। सत्तारूढ कांग्रेस प्रदेश की 126 में से 122 सीट पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने अपने सभी उम्मीदवारों की सबसे पहले घोषणा की है। जबकि चार सीट उसने अपने घटक दल के लिए छोड़ी है। प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से भाजपा एक मजबूत चुनावी गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में है। वहीं एआईयूडीएफ राज्य की 76 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है, जबकि उसके घटक राजद और जदयू 12-12 सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में हिंदुओं की आबादी करीब 62 फीसदी है और 34 फिसदी मुसलिम आबादी है। राज्य में इसाई अल्प संख्यकों की आबादी भी करीब साढे़ तीन फिसदी है। जातिगत और सांप्रदायिक समीकरणों के लिहाज से भाजपा का पड़ला भारी नजर आ रहा है। भाजपा राज्य में हिंदुत्व के नारे के साथ ही बंगलादेशी नागरिकों के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने अपने दृष्टिपत्र में बंगलादेश सीमा सील करने का वादा किया है। भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव घोषणा के बाद राज्य में दो दिवसीय प्रवास के साथ चुनाव अभियान शुरू किया। उन्होेने पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल को पांच साल का मौका देने के नारे के साथ चुनाव अभियान का श्रीगणेश किया है। मोदी ने लोकसभा चुनाव के वक्त 60 साल बनाम 60 महीने का नारा दिया था। उन्होंने अच्छे दिनों के आने के वादे के साथ कहा था कि उन्हें 60 महीने (पांच साल) सेवा का मौका दें। अब वह असम में सोनोवाल के लिए पांच साल के मौके की बात कर रहे है। असम विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का पैमाना तय कर देगा। उन्हें केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए करीब दो साल होने वाले हैं। असम के मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में मोदी पर भरौसा किया था और सात सीटों पर भाजपा के पक्ष में फैसला किया था। दो साल बाद प्रदेश के मतदाताओं का मोदी में विश्वास वढ़ा है या उनकी लोकप्रियता पर विपरित प्रभाव पड़ा है। यह चुनाव नतीजों के बाद तय हो जाएगा। लोकसभा चुनाव में मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था और इस नारे को अमलीजामा पहनाने में उनको सफलता मिली थी। कांग्रेस लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दावा करने लायक सीट भी हासिल नही कर सकी। अब असम में उनका सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस से है। यहां अल्पसंख्यक मतों में विभाजन के बावजूद भाजपा अगर सत्ता पर काबिज नही हो सकी, तो यह साफ हो जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मतदाताओं का मोह भंग हो चुका है और कांग्रेस के पुनःजीवित होने का दौर शुरू हो चुका है।