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(आशु सक्सेना): उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों को टिकट बंटवारे के बाद यह तय हो गया कि परिवारवाद और जातिवाद अब चुनावी मुद्दा नही है। भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने इस चुनाव जिताऊ सिद्वांत का शिद्दत से पालन किया है। लिहाजा यह तो चुनावी मुद्दा नही है। मसलन अब विकास और भ्रष्टाचार ये दो चुनावी मुद्दे बनें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार के दौरान विकास से कहीं ज्यादा ज़ोर भ्रष्टाचार पर होगा। जबकि मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ दल सपा प्रमुख अखिलेश यादव विकास को चुनावी मुद्दा बनाएंगे। दिलचस्प पहलू यह है कि राजनीति की विसात बिछने के बाद सूबे का चुनाव काफी हद तक अखिलेश बनाम मोदी बन चुका है। मोदी के लिए विधानसभा चुनाव नतीजे़ 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल है। वहीं अखिलेश के लिए यह जंग अगले आम चुनाव में उनकी भूमिका की पटकथा होगी। बहरहाल परिवारवाद और जातिवाद के चुनावी सिद्धांत का अनुसरण करने के चलते यूँ तो सभी राजनीतिक दलों को भीतरघात की बीमारी से जुझना पड़ रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा भाजपा को इस बीमारी का सामना करना पड़ रहा है। जातिगत राजनीति को दुरूस्त करने के लिए भाजपा ने दो क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन किया है। अपनादल और ओमप्रकाश राजभर की पार्टियों का जाति विशेष में जनाधार माना जाता है। अपनादल के साथ भाजपा ने लोकसभा चुनाव भी साथ लड़ा था। जबकि राजभर के साथ अभी हाल में दोस्ती की गई है।

घटकदलों को भाजपा करीब 20 सीट छोड़ सकती है। भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसने काफी तादद में ऐसे लोगों को पार्टी प्रत्याशी बना दिया है, जिन्होंने हाल ही में किसी दूसरे दल से अचानक पार्टी में प्रवेश किया और टिकट हासिल करके चुनावी समर में कूद गया। ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को भीतरघात की समस्या से जुझना लाज़मी है। वहीं दूसरी तरफ सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव काफी राहत महसूस कर रहे है। इन दोनों दलों के एक बैनरतले आ जाने के बाद धर्म निरपेक्ष मतों के विभाजन की आशंका काफी हद तक दूर हो गई है। इसकी अहम वजह यह है कि प्रमुख विपक्षी दल बसपा प्रमुख मायावती तीन बार भाजपा के साथ सत्तासुख भोग चुकी हैं। जबकि कांग्रेस और सपा चुनाव के बाद भी सरकार बनाने के लिए भाजपा का दामन किसी भी कीमत पर नहीं थामेंगे। देश और प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य से साफ है कि इन दोनों दलों की भाजपा से नजदीकी उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए घातक साबित होगी। लिहाजा अब प्रदेश में मौटेतौर पर मतदान धर्म निरपेक्ष बनाम सांप्रदायिकता के आधार पर होगा। जहां तक चुनावी मुद्दों का सवाल है उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी पर सफाई देेते हुए बनाये गए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों को आकर्षित करेंगे, वहीं मुख्यमंत्री अखिालेख यादव विकास पर जोर दे रहे हैं । विकास को मुद्दा बनाना मोदी के लिए इसलिए मुश्किल है क्योंकि 12 साल गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद तमाम क्षे़त्रों में गुजरात कई पिछडे़ माने जाने वाले राज्यों से भी पीछे है। बहरहाल अब देखना यह है कि परिवारवाद और जातिवाद के सिद्धांत पर बिछी इस राजनीतिक बिसात में जीत भ्रष्टाचार के मुद्दे की होती है या विकास बाजी मारता है 

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