संयुक्त राष्ट्र: जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए पेरिस समझौता शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय कानून बन गया। वैज्ञानिकों की उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से पृथ्वी के गर्म होने की बढ़ती आशंकाओं के बीच यह ऐतिहासिक समझौता यह जाहिर करता है कि विश्व के देश ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से निपटने को लेकर गंभीर हैं। अब तक 95 देश इस समझौते में औपचारिक तौर पर शामिल हुए हैं। ये देश वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दो तिहाई से अधिक हिस्से के लिए जवाबदेह हैं। यह समझौता ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस सीमित करने की मांग करता है। आने वाले हफ्तों और महीनों में कई और देशों के इस समझौते में शामिल होने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा कि महासचिव बान की मून की योजना सिविल सोसाइटी संगठनों के साथ वार्ता कर लोगों और पृथ्वी के लिए इस ऐतिहासिक दिन को यादगार बनाने की है। यह बातचीत इस बारे में हो कि वे लोग पेरिस समझौते के लक्ष्यों में कैसे योगदान देंगे। दुजारिक ने कहा, ‘बरसों से, उन्होंने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सचमुच में महसूस करने वाले हमलोग पहली पीढ़ी के हैं और आखिरी भी, जो इसके बुरे परिणाम को सार्थक तरीके से रोक सकते हैं। वैज्ञानिक ने उस गति की सराहना की है जिससे यह लागू हुआ है। इसके तहत समझौता पर 192 पक्षों ने पेरिस में पिछले दिसंबर में हस्ताक्षर किये ।
उन्होंने कहा कि यह धुव्रीय बर्फ के पिघलने, समुद्र जल स्तर में वृद्धि और कृषि योग्य भूमि के रेगिस्तान में तब्दील होने की समस्या के हल के लिए अंतराष्ट्रीय समुदाय की एक नयी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। न्यूजर्सी स्थित कीन विश्वविद्यालय के स्कूल आफ एनवायरानमेंट एण्ड सस्टेनिबिलिटी साइंस के कार्यकारी निदेशक डॉ फेंक क्वी ने कहा कि क्योतो प्रोटोकॉल को लागू होने में सात साल से भी अधिक वक्त लगा जबकि पेरिस जलवायु समझौता को एक साल से भी कम वक्त लगा। हालांकि, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं ने कहा कि समझौते का लागू होना जीवाश्म ईंधनों से दूरी बनाने के लिए एक बहुत लंबी और जटिल प्रक्रिया का महज पहला कदम है।