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लखनऊ: ईवीएम की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराने के मुद्दे पर समान विचारधारा वाली विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने का सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का प्रयास शनिवार को असफल हो गया क्योंकि कांग्रेस और बसपा इस मकसद से बुलायी बैठक में शामिल नहीं हुए।

सपा प्रमुख ने जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के कार्यालय में यह बैठक बुलाई थी जिसमें उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा राकांपा, भाकपा, माकपा, अपना दल (कृष्णा पटेल गुट), पीस पार्टी, आप, रालोद और राजद के प्रतिनिधि शामिल हुए। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने बताया कि बसपा और कांग्रेस प्रतिनिधियों की ओर से सूचित किया गया कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में व्यस्तता के चलते वे शामिल नहीं हो सकेंगे।

चौधरी ने कहा कि बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने फोन कर सूचित किया कि वह आज की बैठक में शामिल नहीं हो पाएंगे लेकिन उनकी पार्टी ईवीएम के खिलाफ अपनी राय पहले ही रख चुकी है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर ने सूचित किया कि वह आज लखनऊ में नहीं हैं।

बैठक में क्या चर्चा हुई, इस सवाल पर चौधरी ने बताया कि माकपा को छोड़कर सभी दलों की राय थी कि भविष्य में सभी चुनाव बैलट पेपर से कराए जाएं।

माकपा ने कहा कि उसे इस बारे में अपने केन्द्रीय नेतृत्व से चर्चा करनी होगी। उन्होंने बताया कि इस बात पर सहमति बनी कि ईवीएम से चुनाव कराने में खामियां हैं और वीवीपैट का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ईवीएम की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराने के मुद्दे पर भाजपा विरोधी दलों की राय जानने और उनसे चर्चा करने के लिए उक्त बैठक बुलाई थी। अखिलेश की पहल को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव बैलट पेपर से कराने पर विपक्षी दलों में सहमति बने और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का संदेश जाए।

चौधरी ने बताया कि अखिलेश यादव की पहल के पीछे यह मंशा है कि चुनाव की निष्पक्षता, पवित्रता और विश्वसनीयता बनी रहे। जनता के मन में ईवीएम को लेकर जो संदेह हैं उससे लोकतंत्र को खतरा है। चुनाव में धांधली की गुंजाइश बढ़ती जा रही है। अगर मतदाता का भरोसा उस पर नहीं रहा तो फिर चुनाव के परिणामों पर भी भरोसा नहीं होगा। वैसे भी मतदाता को ईवीएम मशीन की न आदत है, न अभ्यास है और न ही यकीन है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि मतदान में किसी तरह का छल न हो।

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