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देहरादून: उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत होंगे। भाजपा विधायक दल की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधानमंडल दल का नेता चुन लिया गया है। त्रिवेंद्र रावत को राज्यपाल डॉ. केके पॉल आज (शनिवार) राज्य के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाएंगे। इसके बाद भाजपा ने राज्यपाल के समक्ष राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया। साथ ही राज्यपाल को सूचित किया कि त्रिवेंद्र सिंह रावत विधानमंडल दल के नेता होंगे। देहरादून के परेड ग्राउंड में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। त्रिवेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री चुने जाते ही भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। होटल के बाहर कार्यकर्ता जश्न में झूमते रहे। उनके गांव में भी लोग खुशी से झूम उठे। देहरादून के पैसेफिक होटल में हुई भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद ने त्रिवेंद्र के विधायक दल का नेता चुने जाने की आधिकारिक घोषणा की। केंद्रीय पर्यवेक्षक नरेंद्र सिंह तोमर और सरोज पांडे की मौजूदगी में हुई बैठक में मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार सतपाल महाराज ने त्रिवेंद्र के नाम का प्रस्ताव रखा और प्रकाश पंत ने प्रस्ताव का समर्थन किया। इस पर सभी विधायकों ने सहमति जताई। विधायक दल की बैठक के बाद भाजपा नेता राजभवन जाकर राज्यपाल डॉ. केके पॉल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। वहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत शनिवार अपराह्न तीन बजे देहरादून के परेड ग्राउंड में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

उनके साथ मंत्री भी शपथ ले सकते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संघ के प्रचारक से लेकर सीएम तक के सफर में तमाम उतार-चढ़ाव देखे। वह 14 साल तक संघ से जुड़े रहे और फिर 1993 में भाजपा संगठन मंत्री बने। राज्य बनने के बाद 2002 में पहली बार डोईवाला से विधायक चुने गए। 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के खैरासैँण(जहरीखाल) में फौजी परिवार में जन्में त्रिवेंद्र रावत ने पत्रकारिता से पीजी की पढ़ाई की। वह 19 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। दो साल बतौर स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में नियमित रूप से गए और वर्ष 1981 में संघ की नीतियों से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने बतौर प्रचारक काम करने का संकल्प लिया। 1985 में उन्हें देहरादून महानगर का प्रचारक नियुक्त किया गया। वर्ष 1993 में संघ की ओर से उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया। राज्य आंदोलन में भी त्रिवेंद्र की अहम भूमिका रही। वह कई बार गिरफ्तार हुए और जेल भी गए। वर्ष 1997 से 2002 तक भाजपा में उन्हें प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया। इस दौरान भाजपा ने विधानसभा, लोकसभा और विधान परिषद चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की। वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में डोईवाला से चुनाव जीता और विधायक बने। 2007 में डोईवाला से दोबार रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की और भाजपा सरकार में कृषि मंत्री बने। नेतृत्व क्षमता का आंकलन करते हुए वर्ष 2013 में पार्टी ने त्रिवेंद्र रावत को राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी। साथ ही उत्तर प्रदेश का सह प्रभारी और टैक्नोक्रेट सेल के प्रभारी के तौर पर अहम जिम्मेदारी दी। लोकसभा चुनाव 2014 में भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिवेंद्र पर भरोसा करते हुए उन्हें यूपी का सह प्रभारी बनाया। त्रिवेंद्र रावत ने अपनी राजनैतिक कौशलता का परिचय झारखंड चुनाव में दिया। अक्तूबर 2014 में झारखंड प्रभारी बने और वहां भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। त्रिवेंद्र सिंह रावत का परिवार एक आम पहाड़ी परिवार के जैसा है। उनके पिता प्रताप सिंह रावत गढ़वाल राफयल के सैनिक रहते हुए दूसरे विश्वयुद्ध की लड़ाई लड़ चुके हैं। जबकि उनके एक भाई आज भी गांव में वैज्ञानिक तरीके से संगध पौधों की खेती कर रहे हैं। आठ भाई और एक बहन में त्रिवेंद्र सबसे छोटे हैं। उनके एक भाई बृजमोहन सिंह रावत आज भी खैरासैंण स्थित गांव के पोस्ट ऑफिस में पोस्टमास्टर हैं। जो सपरिवार गांव में ही रहते हैं, त्रिवेंद्र क दो बड़े भाईयों का इस बीच निधन हो चुका है, उनका परिवार भी गांव में पैतृक घर में रहता है। एक भाई का परिवार सतपूली कस्बे में रहता है, जबकि त्रिवेंद्र से ठीक बड़े विरेंद्र सिंह रावत जयहरीखाल में रह कर पहाड़ में नई तरीके की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। वीरेंद्र बताते हैं कि पहले वो दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने पहाड़ लौटकर जयहरीखाल के पास पीड़ा गांव में तीन सौ नाली जमीन लीज पर लेकर यहां संगध पौधों की खेती की। इस बार पहली बार वो इससे 90 लीटर सुंगधित तेल निकालने में कामयाब रहे। जिसकी बाजारू कीमत क्वालिटी के अनुसार नौ सौ रुपए से लेकर 1800 रुपए प्रति लीटर की है। बकौल वीरेंद्र भविष्य में वो इस प्रयोग को दूसरे गावों में भी दोहराना चाहते हैं, उनके अनुसार पहाड़ में खेती के बजाय इसी तरह बागवानी को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। त्रिवेंद्र ने आठवीं तक की पढ़ाई अपने मूल गांव खैरासैण स्थित स्कूल में की। इसके बाद 10वीं की पढाई इंटर कॉलेज सतपूली और फिर 12वीं इंटर कॉलेज एकेश्वर से की। त्रिवेंद्र ने स्नातक राजकीय महाविद्यालय जयहरीखाल से किया, जबकि पत्रकारिता में स्नातकोत्तर गढ़वाल विश्वविद्यालय कैम्पस श्रीनगर से किया। त्रिवेंद्र के भाई वीरेंद्र बताते हैं कि वो पढ़ाई में मध्यम दर्जे के रहे, लेकिन बचपन से ही सामाजिक कार्य और राजनैतिक विषयों पर विचार विमर्श करने में उनकी गहन रुचि रही। यही कारण है कि उन्होंने स्कूली दिनों से ही संघ की गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया था। उनके बड़े भाई वीरेंद्र बताते हैं कि उन्हे सर्दियों में मंडुवे की रोटी जरूर चाहिए होती है। गांव से आए किसी भी पहाड़ी उत्पाद को वो बड़े चाव से खाते हैं। इसमें पहाड़ी गहथ, काली दाल, भट्ट प्रमुख हैं। खासकर गांव जाकर वो पूरी तरह से पहाड़ी खाना पसंद करते हैं।

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