नई दिल्ली: बीएसपी की प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने के करीब पहुंच गए हैं। सूत्रों ने यह जानकारी दी। सपा के सूत्रों ने बताया कि यादव ने प्रस्तावित गठबंधन के अंतिम पहलुओं पर चर्चा करने के लिए यहां मायावती से मुलाकात की। हालांकि दोनों पार्टियों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन सूत्रों का दावा है कि उत्तर प्रदेश की ये दोनों पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं।
सूत्रों ने बताया कि शेष सीटों को कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ा जायेगा। अगर यह महागठबंधन तैयार होता है तो भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी यह बड़ा झटका होगा। लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां अपने अपने स्तर से तैयारी कर रही हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार शाम को दिल्ली में बसपा सुप्रीमो मायावती व सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की बैठक हुई। सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार शाम करीब 6 बजे मायावती की कोठी पर सपा मुखिया अखिलेश यादव पहुंचे।
बताते हैं कि दोनों पार्टी मुखिया के बीच करीब दो घंटे की बैठक हुई, जिसमें सीटों का बंटवारा तय कर किया गया है। दोनों पार्टियों ने यह फैसला कर लिया है कि किस-किस लोक सभा सीट पर किस पार्टी का प्रत्याशी होगा। बराबर-बराबर सीटों पर प्रत्याशी उतारने के पीछे बताया जा रहा है कि दोनों पार्टियां चाहती हैं कि किसी तरह का कोई विवाद न हो।
सूत्रों ने बताया कि अखिलेश यादव और मायावती अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी उतारने के मूड में नही हैं। अमेठी राहुल गांधी का लोकसभा क्षेत्र है जबकि रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं। सपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इन दोनों सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े नहीें किये थे। माना जाता है कि अखिलेश यादव और मायावती की अगले सप्ताह फिर मुलाकात होगी। फिलहाल सीटों के बंटवारे को लेकर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। लेकिन सूत्रों का दावा है कि उत्तर प्रदेश की ये दोनों पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।
15 जनवरी के बाद सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जा सकता है। यूपी के महगठबंधन में निषाद पार्टी, ओपी राजभर की पार्टी जैसी छोटी पार्टियों को भी शामिल किए जाने की संभावना है। कांग्रेस को इस महागठबंधन में शामिल नहीं किया गया है मध्य प्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र विधायक को मंत्री न बनाए जाने पर अखिलेश यादव ने कांग्रेस को चेताते हुए कहा था कि ऐसा करके कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में रास्ता साफ कर दिया है। वहीं मायावती ने भी कहा था कि अप्रैल में हुए आंदोलन के दौरान अगर एसी समुदाय के लोगों पर जो मुकदमा दर्ज किए हैं उनको वापस नहीं लिया जाता है तो वह दोनों राज्यों (मध्य प्रदेश और राजस्थान) में समर्थन पर फिर विचार करेंगी।
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को सपा और बसपा मिलकर हरा चुकी हैं क्योंकि दोनों का वोट शेयर मिलतर भाजपा से ज्यादा है। विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा को 39.6 फीसदी वोट मिले। तो सपा और बीएसपी को 22-22 फीसदी। दोनों के वोटों को मिलाकर यह 44 फीसदी हो जाता है। कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी ही वोट मिले थे। बात करें लोकसभा चुनाव 2014 की तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में 42.6 फीसदी वोट मिले थे। सपा को 22 फीसदी और बीएसपी को 20 फीसदी से कम वोट मिले थे।