नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट पंजाब द्वारा सतलुज यमुना संपर्क नहर के लिये भूमि पर यथास्थिति बनाये रखने के शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश का कथित उल्लंघन करने के मामले में हरियाणा की याचिका पर 21 नवंबर को सुनवाई के लिये आज (गुरूवार) सहमत हो गया। न्यायमूर्ति ए.आर. दवे और न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की पीठ के समक्ष हरियाणा सरकार के वकील ने इस याचिका का उल्लेख करते हुए इस पर तुरंत सुनवाई का आज अनुरोध किया। हरियाणा का कहना था कि नहर परियोजना के निमित्त भूमि पर यथास्थिति बनाये रखने का पंजाब सरकार को निर्देश देने संबंधी शीर्ष अदालत के पहले के आदेश का हनन करने के प्रयास हो रहे हैं। इस पर पीठ ने कहा, ‘इस मामले को सुनवाई के लिये सोमवार को सूचीबद्ध किया जाये।’ हाल ही में पंजाब सरकार ने इस परियोजना के निमित्त अधिग्रहित भूमि को तत्काल प्रभाव से अधिसूचना के दायरे से बाहर करने और इसे मुफ्त में इसके मालिकों को लौटाने का फैसला किया था। राज्य सरकार का यह निर्णय काफी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि न्यायमूर्ति दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने पिछले सप्ताह पंजाब समझौता निरस्तीकरण, 2004 कानून को असंवैधानिक करार दिया था।
इस कानून के जरिये ही पंजाब ने हरियाणा के साथ जल साझा करने संबंधी 1981 के समझौते को एकतरफा निरस्त कर दिया था। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति को भेजी अपनी राय में कहा था कि पंजाब समझौते को ‘एकतरफा’ निरस्त नहीं कर सकता है और न ही शीर्ष अदालत के निर्णय को ‘निष्प्रभावी’ बना सकता है। हरियाणा सरकार ने आज शीर्ष अदालत में दायर याचिका में आरोप लगाया कि पंजाब 10 नवंबर की व्यवस्था और 17 मार्च के अंतरिम आदेश का सम्मान नहीं कर रहा है। मार्च के आदेश में न्यायालय ने इस नहर परियोजना के निमित्त भूमि पर यथास्थिति बनाये रखने का पंजाब को निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में केन्द्रीय गृह सचिव और पंजाब के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक को इस भूमि तथा नहर परियोजना की अन्य संपत्तियों का ‘संयुक्त रिसीवर’ नियुक्त किया था। जल बंटवारे के लिये 1981 का विवादास्पद समझौता 1966 में पंजाब से हरियाणा राज्य के सृजन के बाद हुआ था।