(आशु सक्सेना) मोदी सरकार के करीब साढे चार साल के कार्यकाल के बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई के उच्च पदों पर बैठे आला अफसरों के बीच आरोप प्रत्यारोप की जंग सार्वजनिक हुई है। यह मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन है। सीबीआई में पिछले दिनों घटे घटनाक्रम के बाद पीएम मोदी का यह दावा कि खोखला साबित हो गया कि उनका कार्यकाल भ्रष्टाचार मुक्त रहा है। सीबीआई विवाद के उजागर होने के बाद एक बात साफ है कि जब देश की शीर्ष जांच एजेंसी ही भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आ रही है। ऐसे में इस दौरान मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकी है, यह सरकारी दावा तार्किक नजर नही आता।
आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव का अहम मुद्दा भ्रष्टाचार ही था। तत्कालीन यूपीए सरकार 2जी घोटाला समेत अन्य कई मामलों में संदेह के घेरे में थी। भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को निशाना बनाया था। पिछले लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार केंद्रीय मुद्दा था। मंहगाई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने भाजपा को अपने बूते पर बहुमत हासिल करने में प्रेरक का काम किया था।
पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान विदेश यात्राओं और प्रदेश विधानसभा चुनावों में लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों को कठघरे में खड़ा किया है। साथ यह दावा भी किया कि उनकी सरकार कभी तक दागी नही है।
देश के चोकीदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक सीबीआई प्रकरण पर कोई टिप्पणी नही की है। यह बात दीगर है कि उनके मंत्रियों ने इस मुद्दे पर सरकार की तरफ से सफाई ज़रूर दी है। यूं तो मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसी तमाम घटनाऐं है] जो देश की 70 साल की आज़ादी के इतिहास में पहले कभी नही हुई। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित करके देश में लोकतंत्र पर मड़रा रहे खतरे पर चिंता व्यक्त की। सीबीआई प्ररकण के चर्चा में आने के बाद एक बात साफ नज़र आ रही है कि अगले लोकसभा चुनाव में भी एक बार फिर भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया रहेगा। हांलाकि सत्तारूढ़ भाजपा की कोशिश है कि अगला चुनाव राम मंदीर को मुद्दा बनाकर लड़ा जाए।
मतदाताओं में धार्मिक उन्माद फैलाने की चौतरफा कोशिश हो रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद इस साल दशहरे पर अचानक राम मंदीर की याद दिला दी। उन्होंने याद दिलाया कि बहुमत वाली भाजपा सरकार को अपना यह वादा पूरा करना होगा। अन्यथा उसे अगले चुनाव में लोगों की गुस्सा का सामना करना होगा। संभवत: संघ प्रमुख ने यह बात भांप ली हो कि मोदी सरकार से लोगों में नाराजगी है और इसका खामियाजा भाजपा को अगले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। लिहाजा संघ नेतृत्व ने सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को धार्मिक भावनाओं के जरिये पुन: सत्ता पर काबिज होने रास्ता सुझाया है। लेकिन सीबीआई अधिकारियों का एक दूसरे पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप प्रत्यारोप के बाद फिलहाल राम मंदिर मुद्दा पीछे चला गया है।
दरअसल, इन दिानों भाजपा शासित तीन महत्वपूर्ण राज्यों चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। कांग्रेस मंहगाई, रोेजगार और प्रशासनिक स्तर पर मोदी सरकार की नाकामयाबियों को लेकर हमलावर थी। राहुल गांधी राफेल रक्षा सौदे में कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाए हुए हैं। ऐसे में सीबीआई विवाद उत्पन्न होने से कांग्रेस को संजीवनी हाथ लग गई है। भाजपा तीनों चुनावी सूबे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां सत्ता विरोधी माहौल से रूबरू है। वहीं अब उसे भ्रष्टाचार के सवाल पर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बन रहे है माहौल से भी निपटना है। माना जा रहा है कि तीनों राज्यों का चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल है।
यूं तो 2014 में भाजपा ने 282 लोकसभा सीट जीतीं थीं। पिछले साढ़े चार साल में हुए उप चुनावों के बाद यह संख्या घटकर 272 पर सिमट गई है। सत्तारूढ़ पार्टी को उत्तर प्रदेश के सीएम अदित्यनाथ योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मोर्या की सीटें गंवानी पड़ी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जिन सूबों में भाजपा ने विजयी पताका फहराई थी, उन सभी सूबों में उसकी संख्या में हिजाफे की कोई संभावना नही है। इन सूबों में भाजपा को सिर्फ नुकसान ही संभव है। वहीं इन सूबों में होने वाले नुकसान की भरपाई उन सूबों से संभव नही है, जहां भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। भाजपा ने खासकर पश्चिम बंगाल, केरल, उड़ीसा और पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी ताकत झौंक दी है।
देश के मौजूदा राजनीति क परिदृश्य में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने बूते पर बहुमत का आंकड़ा हासिल करती नज़र नही आ रही है। लिहाजा वह नीतीश कुमार और तमिलनाडु के सत्तारूढ़ एआईडीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों को साथ लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। भाजपा की हताशा का नजारा बिहार में जदयू के साथ हुए सीटों के बंटवारे की विधिवत घोषणा के बाद साफ हो गया। पिछले चुनाव में भाजपा ने बिहार की 40 लोकसभा सीट में से 22 पर कब्जा किया था। जबकि 9 सीट उसके सहयोगी रामबिलास पासवान और उपेंद्र कुशवहा की पार्टियों ने जीतीं थीं। लेकिन अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सीटों बंटवारें को लेकर हुई बैठक के बाद कहा कि अगले चुनाव में भाजपा और जदयू बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
साफ हैं कि भाजपा अपनी जीती हुई सीटें जदयू के लिए छोडेगी। दूसरी तरफ इस समझौते के बाद उसे अपने पूराने सहयोगियों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ रहा है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में पीएम मोदी के सामने सत्ता में वापसी की चुनौती है। लेकिन उनके लिए दिक्कत यह है कि अगर वह भाजपा को बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचाने में सफल नही हुए, तो उनकी ताजपोशी पर सवालिया निशान लग जाएगा।