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(आशु सक्सेना) लगता है मोदी सरकार मान चुकी है कि अब भावनात्मक मुद्दा ही 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने का एकमात्र रास्ता है। संभवत: यही वजह है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरएसएस, सत्तारूढ़ भाजपा समेत तमाम तथाकथित हिंदुवादी संगठनों ने एक स्वर में राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाया है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून पारित करने की मांग ने चौतरफा जोर पकड़ लिया है।

दरअसल जहां भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भाजपा शासित तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी माहौल से चिंतित है, वहीं वह 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार के कामकाज के बूते पर चुनाव का सामना करने में पार्टी को असहज महसूस कर रहा है। यहीं वजह है कि भाजपा नेतृत्व राम मंदिर का मुद्दा उछाल कर चुनाव के सेमी फाइनल के नतीजों के आधार पर 2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंजाम देना चाहता है। इन दिनों अखबार, टेलिविजन और सोशल ​मीडिया पर भाजपा शासित सूबे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के मुद्दे सुर्खियों में नही हैं। बहस का सिर्फ एक मुद्दा है कि अगर राम मंदिर हिंदुस्तान में नही बनेगा, तो फिर कहां बनेगा।

 इस मुद्दे पर सोशल ​मीडिया पर हिंदुत्व को लेकर बहस जोरों पर है। इस बहस में सिर्फ हिंदु शामिल हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि कोई भी सीधे तौर पर राम मंदिर का विरोध नही कर रहा है। लेकिन एक बात इस बहस में उभर कर सामने आ रही है कि हिंदुओं की नुमाईदगी का अधिकार संघ और भाजपा को किसने दिया है?

भाजपा पिछले 15 साल से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता पर काबिज है। इन दोनों ही राज्य सरकारों पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं। इसके अलावा आम आदमी भी सरकारों के कामकाज से संतुष्ट नही है। यहीं वजह है कि इन सरकारों को किसान और युवा वर्ग की नाराजगी का आंदोलनों के जरिये विरोध का सामना भी करना पड़ा है। भाजपा के लिए इस विधानसभा चुनाव में भी राहत की बात यह है कि विपक्ष विखरा हुआ है। लिहाजा मतों का विभाजन सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में है। इसके बावजूद जो खबरें आ रही हैं, उनका सार यह ही है कि इन दोनों ही राज्यों में भाजपा का कांग्रेस से कड़ा मुकाबला है। राजस्थान में इस बार भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जीत के प्रति ज्यादा आश्वस्त नजर नही आ रहा है।

बहरहाल, चुनावी साल में राफेल सौदा, सीबीआई में भ्रष्टाचार को लेकर चल रहा संघर्ष और आरबीआई और सरकार के बीच उपजा तनाव भाजपा नेतृत्व का सिर दर्द बन गया है। पार्टी को एहसास है कि यह मुद्दे लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। लिहाजा इन ज्वलंत मुद्दों को पीछे धकेलने के लिए किसी भावनात्मक मुद्दे को उछलना सत्तारूढ़ दल की मजबूरी है। यही वजह है कि भाजपा नेतृत्व को हिंदु मतों के ध्रुवीकरण के ​लिए राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सबसे सबसे ज्यादा फायदेमंद नजर आ रहा है।

यूं तो सरकार की उपलब्धियों को आम लोगों पहुंचाने के लिए देश भर में हार्डिंग नजर आ रहे हैं। इसके बावजूद पार्टी को आशंका है कि केंद्र सरकार का यह चुनाव प्रचार 2004 की तरह इस बार भी कारगर साबित नही होगा। लिहाजा राफेल सौदे के अलावा सीबीआई और आरबीआई के मुद्दे पर विपक्ष के आक्रमण के जबाव में पीएम मोदी ने विपक्ष पर जबावी हमला किया। उन्होंने भाजपा के बूथ कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान इन ज्वलंत मुद्दों पर कोई सफाई तो नही दी। लेकिन विपक्ष के नेताओं को झूठ की मशीन करार दिया।

पीएम मोदी ने वीडियो वार्ता के दौरान पांच लोकसभा क्षेत्रों के भाजपा कार्यकर्ताओं से बातचीत में विपक्षी दलों पर अपनी सरकार के खिलाफ झूठ बोलने का आरोप लगाया और कहा कि लोगों के पास अब सही सूचना पाने के लिए अनेक साधन हैं। उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा कि वे लोगों तक सही सूचना पहुंचाकर उनके (विपक्षी नेताओं) झूठ का खुलासा करें। दिलचस्प पहलू यह है कि केंद्रीय सूचना आयोग लगातार पीएमओ पर सूचना के अधिकार के तहत सूचना उपलब्ध नही करवाने को लेकर नाराजगी व्यक्त कर चुका है। फिर पीएम मोदी सूचना पाने के किस साधन का ज़िक्र कर रहे हैं। यह समझ के परे है। जाहिर है कि पीएम मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया के माध्यम से उन पर लग रहे आरोपों का जबाव देने का निर्देश दे रहे हैं।

दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में अच्छे दिन आने वाले हैं, नारे के साथ मंहगाई और भ्रष्टाचार को अहम मुद्दा बनाया गया था। मोदी सरकार जहां मंहगाई पर अंकुश लगाने में असमर्थ सा​बित हुर्ह है, वहीं सीबीआई के विवाद से उसके भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा भी खोखला नजर आने लगा है। लिहाजा इस नुकसान की भरपाई पीएम मोदी सोशल मीडिया के माध्यम से करना चाहते हैं। साथ ही वह अगले चुनाव में किसी भावनात्मक मुद्दे को हवा देकर हिंदु मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं।

मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में एक बात साफ नजर आ रही है कि संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को विपक्ष के तीखे हमले का सामना करना होगा। लिहाजा संसद में सरकारी कामकाज होने के कम ही आसार हैं। संसद के मॉनसून सत्र में तीन तलाक विधेयक विपक्ष के विरोध के चलते पारित नही हो सका था। सरकार ने इस कानून को अध्यादेश के जरिये लागू किया है। मोदी सरकार के मौजूदा रूख से ऐसा आभास हो रहा है कि विपक्ष के हमलों को ध्वस्त करने की रणनीति के तहत शीतकालीन सत्र में राम मंदिर निर्माण के बावत एक विधेयक संसद में पेश किया जाये और उसके पारित ना होने पर उसे चुनावी मुद्दा बनाने के लिए अध्यादेश के तौर पर लागू किया जाए। भाजपा शासित तीन राज्यों के चुनाव नतीजे अगर पार्टी के पक्ष में नही आये, तो राम मंदिर एक मात्र मुद्दा है, जो भाजपा को संजीवनी प्रदान कर सकता है। लिहाजा पार्टी इस मुद्दे को हवा देने में जुट गई है।

इतिहास साक्षी है कि भावनात्मक मुद्दे चुनावी राजनीति में हावी रहे हैं। इंद्रिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव के नतीजे और पिछले तीन दशक से भाजपा का बढ़ता जनाधार इसके स्पष्ट उदाहरण हैं। राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक है। यह मुद्दा जहां हिंदु मुसलिम वाद विवाद को जीवंत रखेगा, वहीं धार्मिक भावनाओं के ​जरिये हिंदु मतों के ध्रुवीकरण में भी फायदेमंद हो सकता है।

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