(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'महाभारत' की लड़ाई का ज़िक्र करते हुए देश में कोरोना वायरस के खिलाफ पू्र्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि 'महाभारत' लड़ाई 18 दिन में जीती गई थी, यह जंग 21 दिन में जीतनी है। लेकिन अब वह जंग 75 वें दिन में प्रवेश कर चुकी है। देश लॉकडाउन-5 के अनलॉेक-1 की ओर बढ़ रहा है। केंद्र सरकार ने देश की ध्वस्त हो चुकी अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनलॉक-1 की ओर कदम बढ़ाया है। केंद्र सरकार ने इस बावत दिशानिर्देश जारी करते हुए आज (8 जून) से मॉल, रेस्टारेंट और धार्मिक स्थल खोलने की इजाजत दे दी है। वहीं, दूसरी ओर देश में संक्रमण तेजी से फैल रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना प्रभावित देशों में स्पेन को पीछे छोड़कर भारत 5वें नंबर पर पहुंच चुका है।
स्मरण रहे कि वैश्विक महामारी 'कोविड-19' का खुलासा पिछले साल दिसंबर में हो गया था। चीन के बुहान से फैला यह संंक्रमण आदमी से आदमी में पहुंच रहा है, इस बात का खुलासा चीन ने जनवरी में किया था। पिछले लगभग 6 महीनों में इस विनाशकारी महामारी से दुनियाभर में भूचाल आया हुआ है। अधिकांश देशों की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है। लिहाजा ज्यादातर देश लॉकडाउन को खत्म करके पुन: जनजीवन को सामान्य करने का प्रयास कर रहे हैं।
लिहाजा भारत में भी लॉकडाउन-5 के अनलॉेक-1 की ओर बढ़ने की तैयारियां कर ली गईं हैं। सोमवार (आज) से एक बार फिर देश में चहल-पहल नज़र आयेगी। धार्मिक स्थलों में लोगों को पूजा-अर्चना करते हुए देखा जा सकेगा। मॉल और रेस्टारेंट में भी रौनक देखी जा सकेगी। पर सवाल यह है कि जहां दुनियाभर के देश अपने यहां कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के बाद अनलॉक की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं भारत में यह काम तब हो रहा है, जब इस संक्रमण के ओर विकराल रूप धारण करने की भविष्यवाणी की जा रही हैं। ऐसे में सरकार का अनलॉक 1 देश के सामने एक बड़ी चुनौती की ओर इशारा कर रहा है।
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 4 के दौरान मज़दूरों और कामगारों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के फर्ज़ को अंजाम दिया है। इस दौरान प्रवासियों ने अपने गतंव्य तक पहुंचने में कितनी तकलीफे झेली, वह तो काफी लम्बी दास्तान है। उस पर तो ग्रंथ लिखा जा सकता है। इस दौरान सबसे चर्चित कहानी 15 साल की बहादुर लड़की ज्योति कुमारी पासवान की है, जो हरियाणा के गुडगांव से अपने बीमार पिता को साइकिल के केरियर पर बैठाकर 1200 किलोमीटर का सफर तय करके बिहार के दरभंगा जिले में अपने गांव तक पहुंची। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रम्प ने ट्वीट करके उसकी बहादुरी की सराहना की।
बहरहाल अब मज़दूरों की आवाजाही पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि इस काम को अगले 15 दिन में पूरा कर लें। आपको याद दिला दें कि लॉकडाउन 5 की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने 'जान भी और जहान भीे' का नारा देते हुए कहा था कि अब हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह आशंका भी व्यक्त की थी कि मज़दूरों के व्यापक स्तर पर पलायन से इस महामारी के गांवों तक पहुंचने की संभावना बढ़ गई है। लिहाजा इसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए।
देश में तेजी से फैल रहे संक्रमण को देखते हुए इस बात की उम्मीद कम ही है कि फिलहाल देश में आर्थिक गतिविधियां रफ़्तार पकडेंगी। इसकी अहम वजह यह है कि देश के लगभग सभी महानगरों से कुशल श्रमिक बड़ी तादाद में पलायन कर चुके हैं। लॉकडाउन में बंद पड़े मध्यम एवं लघु औद्योगिक इकाईयों को कुशल मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। वहीं पलायन कर चुके मज़दूरों को तत्काल वापस लाना संभव नहीं है। दरअसल, वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने में केंद्र सरकार शुरू से ही गलतियां करती आयी है। जिसका खामियाजा अब देशवासियों को भुगतना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार ने अनलॉक-1 की घोषणा करके गेंद राज्य सरकारों के पाले में फैंक दी है। अब राज्य सरकारों को तय करना है कि वह अपने यहां संक्रमण पर नियंत्रण करते हुए आर्थिक गतिविधियों को कैसे शुरू करें। राज्यों के सामने इस वक्त सबसे बड़ी समस्या फंडस की है। ज्यादातर राज्य सरकारें अपने जीएसटी के बकाया के अलावा केंद्र से आपादा राहत कोष से अतिरिक्त आर्थिक मदद की मांग कर रहीं हैं। इन हालात में अर्थ व्यवस्था के तेजी से पटरी पर लौटने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि केंद्र सरकार ने कोरोना से निपटने का जो रास्ता अख्तियार किया, वह क्या देश के हित में रहा या सरकार से कोई चूक हो गई, जिसका खामियाजा देशवासियों को भुगतना पड़ रहा है। आपको याद दिला दें कि पडौसी देश चीन से निकला कोरोना वायरस (कोविड-19) दिसंबर में दस्तक दे चुका था। जनवरी के अंत तक दूसरे देशों में इस वायरस के फैलने की ख़बरें आने लगी थी। यानि यह बात साफ हो गई थी कि आसमान और समुंद्र के रास्ते यह वायरस देश में प्रवेश कर सकता है। उस वक्त हमारे देश में इससे बचने की सही मायनों मे कोई रणनीति भी तय नहीं की गई थी।
उस वक्त देश में प्रधानमंत्री मोदी के मिनी इंडिया यानि दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार अपने चरम पर था। फरवरी के पहले सप्ताह तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत पूरा केबिनेट चुनाव में व्यस्त था। सीएए और 370 जैसे मुद्दे गरमाए हुए थे। 11 फरवरी को चुनाव नतीज़े आने के बाद चुनावी माहौल तो शांत हो गया, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से ठीक पहले दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गये। इस दंगे में 50 से ज्यादा लोग मारे गये। फरवरी के महीने में केंद्र सरकार दिल्ली चुनाव, दंगे और अहमदाबाद में होने वाले 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में व्यस्त रही। इस बीच जनवरी के अंंत में संसद का 'बजट सत्र' शुरू हो चुका था।
सही मायनों में 19 मार्च तक केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए कोरोना वायरस को छूत की बीमारी करार देते हुए इससे बचाव के लिए 'सामाजिक दूरी' को एकमात्र उपचार बताते हुए अगले रविवार 22 मार्च को सुबह सात बजे से रात्रि 9 बजे तक एक दिन के 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा की। साथ ही प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए शाम पांच बजे घर के दरवाजे या बालकनी में आकर ताली और थाली बजाने को कहा। कोरोना के खिलाफ 'जनता कर्फ्यू' पूरी तरह सफल रहा। लेकिन शाम पांच बजे ताली और थाली के आयोजन के बाद इससे लड़ाई की पहली शर्त सामाजिक दूरी की खुलकर धज्जियां उड़ी।
आपको याद दिला दें कि इस दौरान संसद बजट सत्र चल रहा था। कोरोना वायरस का मुद्दा संसद में उठ चुका था। सांसदों ने संसद सत्र स्थगित करनेे की मांग की, तब सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया था। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने की राजनीतिक उठापटक भी अपने चरम पर थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों की इस पूरे घटनाक्रम में काफी व्यस्त नज़र आ रहे थे। 20 मार्च को मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का पतन हो गया और 23 मार्च को वहां भाजपा की सरकार अस्तित्व में आ गई। उसके बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से देश भर में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की।
प्रधानमंत्री की इस अचानक घोषणा से समूचे देश में अफरा तफरी का माहौल बन गया। बड़ी तादाद में प्रवासी मज़दूरों ने पलायन शुरू कर दिया। रेलवे और बसों के अचानक बंद होने के बाद प्रवासी मज़दूरों ने पैदल ही अपने घरों की ओर पलायन शुरू कर दिया। इससे देशभर में अफरातफरी का माहौल बन गया। तब केंद्र सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को जहां हैं, वहीं रोकने का आदेश जारी कर दिया। राज्य सरकारों ने अपनी सीमाएं बंद कर दी। नतीजतन मजदूर जहां थे, वहीं फंस गये।
लॉकडाउन के दौरान 3 अप्रैल को पीएम मोदी ने एक बार फिर कोरोना को लेकर देश को संबोधित किया। इस बार मोदी ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए 5 अप्रैल की तारीख निर्धारित की। पीएम मोदी ने इस दिन रात 9 बजे घर की लाइट 9 मिनट बंद करके 'दीया' जलाने का आव्हान किया। पीएम मोदी का यह इवेंट विवादों में घिर गया। क्योंकि 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई थी और इस साल पार्टी की 40 वीं वर्षगांठ का मौका था। यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि पीएम मोदी ने कोरोना वायरस को लेकर जो दो इवेंट करवाए, उन दोनों ही दिन सेना के जवानों के शहीद होने की ख़बरों से भी देशवासियों को तकलीफ हुई थी। इत्तफाक से लॉकडाउन के 40 वें दिन जब भारतीय सेना कोरोना योद्धाओं की हौंसला अफजाई कर रही है। तब जम्मू कश्मीर में आंतकवादियों से मुठभेठ में सेना के पांच जवानों की शाहदत भी सुर्खियों में है।
बहरहाल, लॉकडाउन के 75 दिन जहां कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ा है। वहीं देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। मज़दूरों के पलायन का सीधा असर देश की अर्थ व्यवस्था पर पड़ना स्वाभाविक है। ग्रीन जोन वाले ज़िलों में तालाबंदी तो खत्म हो गई है। लेकिन व्यवसायिक गतिविधियों को सुचारू रूप से शुरू करने में दिक्कत आ रही है। शहरों खासकर महानगरों में घरों में काम करने वालों से लेकर कारखानों और निर्माण कार्य से जुड़े कुशल मजदूरों की उपलब्धता की दिक्कत खड़ी हो गई है। सरकार ने अगर लॉकडाउन से पहले प्रवासी मज़दूरों के बारे में कोई विस्तृत योजना बनाई होती, तो अब आने वाली दिक्कत से बचा जा सकता था। केंद्र सरकार ने अगर लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही प्रवासी मज़दूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दी होेती, तो अब इन मज़दूरों की नये सिरे से जांच नही हो रही होती। वहीं केंद और राज्य सरकारें इन प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाने के विपरित उन्हें वापस शहरों तक लाने की योजना पर काम कर रही होतीं।
लॉकडाउन के 75 दिन पर निगाह डालने के बाद फिलहाल सिर्फ अंधकार ही नज़र आ रहा है। करोड़ों मज़दूरों के पलायन से जहां शहरों में आर्थिक गतिविधियां शुरू होने में दिक्तत नज़र आ रही है। वहीं मजदूरों के पलायन से गांवों तक इस खतरनाक महामारी का वायरस पहुंचना शुरू हो गया है। जो कि राज्य सरकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती नज़र आ रहा है।