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संविधान ने देश में बदलाव लाने में उल्लेखनीय मदद की: सीजेआई खन्ना

नई दिल्ली: केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अब निजी क्षेत्र के बैंकों और उनके कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकता है। सतर्कता आयुक्त टीएम भसीन ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक और वित्तीय सेवा विभाग ने हाल ने इस बारे में सीवीसी को आवश्यक मंजूरी दे दी है। भसीन ने कहा, सीवीसी अब निजी क्षेत्र के बैंकों और उनके प्रबंधन मसलन सीएमडी या एमडी से संबंधित भ्रष्टाचार के मामलों की भी जांच कर सकता है। रिजर्व बैंक और इस बारे में प्रावधानों को मंजूरी दी है। भसीन ने कहा, इस बारे में आवश्यक तंत्र स्थापित किया गया है। निजी क्षेत्र के बैंकों में भ्रष्टाचार के मामलों की अब सीवीसी जांच कर सकेगा। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल व्यवस्था दी थी कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 के तहत किसी मामले में निजी क्षेत्र के बैंकों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशकों और अन्य अधिकारियों को भी लोकसेवक के रूप में देखा जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि रिजर्व बैंक के लाइसेंस के तहत बैंकों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार रोधक कानून के तहत लोक सेवक माना जाएगा। न्यायालय ने कहा था कि निजी या सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी आम जनता के लिए सेवाएं देते हैं इसलिए वे इस कानून के तहत आते हैं। उच्चतम न्यायालय ने बैंकिंग नियमन कानून की धारा 46ए का भी हवाला देते हुए कहा था कि इस तरह के बैंक अधिकारियों को सरकारी अधिकारी माना जाए। सीवीसी एक सांविधिक निकाय है।

नई दिल्ली: आप सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सुरक्षित जमा बक्सों (लॉकरों) से बेशकीमती वस्तुओं की चोरी या लूट के लिए मुआवजा की उम्मीद मत कीजिए क्योंकि, लॉकर संधि उन्हें सभी देनदारी से मुक्त करती है। यह कड़वी सच्चाई अधिवक्ता कुश कालरा के आरटीआई आवेदन पर भारतीय रिजर्व बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों के जवाब में सामने आई है। इस खुलासे से स्तब्ध कालरा अब भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग गए हैं और उन्होंने लॉकर सुविधा के मामले में बैंकों के बीच गुटबंदी तथा गैर प्रतिस्पर्धात्मक पद्धति अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने आयोग से कहा कि आरटीआई आवेदन के जवाब में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसने इस संबंध में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है और न ही उसने ग्राहक को पहुंचे नुकसान के मूल्यांकन के लिए कोई मानक तय किए हैं। उधर, सभी बैंकों ने भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। कालरा को मिली सूचना के मुताबिक, 19 बैंकों ने जो कारण बताया है वह यह है कि लॉकर के संबंध में ग्राहकों के साथ उनका जो संबंध है वह मकान-मालिक और किरायेदार का है। इन बैंकों में बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब नेशनल बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक आदि शामिल हैं।बैंकों ने दलील दी कि ऐसे संबंध में किरायेदार बैंक के लॉकर में रखे अपनी बेशकीमती वस्तुओं के लिए जिम्मेदार हैं।

नई दिल्ली: वर्ष 2018 से देश में वित्त वर्ष की शुरुआत अप्रैल के बजाय जनवरी से हो सकती है। सरकार इसकी तैयारी में लगी है। इसके साथ ही देश में 150 साल से चली आ रही अप्रैल-मार्च की वित्त वर्ष की परंपरा में बदलाव हो सकता है। सरकार के उच्चस्तरीय सूत्रों ने सोमवार को कहा, ‘यदि ऐसा होता है तो केंद्र का अगला बजट इस साल नवंबर में पेश हो सकेगा।’ सूत्रों ने बताया कि सरकार वित्त वर्ष को कैलेंडर वर्ष के अनुरूप बदलने पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बदलाव की वकालत की है। यह एक और ऐतिहासिक बदलाव होगा। सरकार इससे पहले बजट को फरवरी महीने की अंतिम तारीख को पेश करने की दशकों पुरानी परंपरा को बदल चुकी है। इस साल बजट एक फरवरी को पेश किया गया। ऐसे में वित्त वर्ष को बदलने के जिस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया जा रहा है उसके मुताबिक संसद का बजट सत्र दिसंबर से काफी पहले हो सकता है ताकि बजट प्रक्रिया को साल के अंत से पहले पूरा किया जा सके। सूत्रों ने कहा कि बजट प्रक्रिया को पूरा करने में दो माह का समय लगता है। ऐसे में बजट सत्र की संभावित तारीख नवंबर का पहला सप्ताह हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी के वित्त वर्ष का कैलेंडर वर्ष से मेल करने की इच्छा जताने के बाद सरकार ने पिछले साल एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया।

मुंबई: रिजर्व बैंक ने बैंकों से पासबुक और स्टेटमेंट में लेन-देन के बारे में पर्याप्त ब्योरा देने को कहा है ताकि ग्राहक उसकी पूरी जांच कर सके। इससे पहले, रिजर्व बैंक ने पासबुक: स्टेटमेंट में गूढ़ तरीके से ब्योरा दर्ज नहीं करे और सुनिश्चत किया जाए कि संक्षिप्त में उपयुक्त तरीके से जानकारी दी जाए ताकि जमाकर्ताओं को समस्या नहीं हो। हालांकि रिजर्व बैंक ने कहा कि लेकिन उसकी जानकारी में आया है कि कई बैंक अभी भी पयार्प्त ब्योरा उपलब्ध नहीं कर रहे। केंद्रीय बैंक ने ब्योरे की सूची देते हुए के बेहतर ग्राहक सेवा के हित में यह निर्णय किया गया है कि बैंक खातों में एंट्री के मामले में संक्षेप में उपयुक्त ब्योरा दें। बैंकों द्वारा पासबुक में उपलब्ध ब्योरे में पाने वाले का नाम, लेन-देन का तरीका, शुल्क की प्रकृति (शुल्क, कमीशन, जुर्माना आदि) तथा ऋण खाता शामिल है।

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