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नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती वैश्विक क्षेत्र में जारी उथल-पुथल है। इसमें अमेरिका में ब्याज दर में वृद्धि तथा चीन में नरमी है और यह जोखिम पिछले एक साल से बढ़ा है। मूडीज ने सोमवार को एक सर्वे में यह बात कही। बाजार से जुड़े लोगों एवं निवेशकों के बीच किये गये सर्वे के अनुसार करीब 75 प्रतिशत ने माना कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर अगले 12 से 18 महीने में 6.5 से 7.5 प्रतिशत के दायरे में रहने की संभावना है। यह तथ्य 110 बाजार प्रतिभागियों के बीच किये गये सर्वे पर आधारित है। इसमें भारत के कुछ बड़े निवेशक शामिल हैं। यह सर्वें मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने इस महीने की शुरुआत में किया। सर्वे में 35 प्रतिशत लोगों ने माना कि वैश्विक स्तर पर उठा-पटक अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। जबकि, पिछले साल मई में किये गये इसी प्रकार के सर्वे में 10 प्रतिशत लोगों ने ऐसी राय जाहिर की थी।

वहीं, 32 प्रतिशत का मानना है कि सुधार की गति धीमी है और 19 प्रतिशत बुनियादी ढांचे को बाधा मानते हैं। 2015 के सर्वे में ऐसे मानने वाले क्रमश: 47 प्रतिशत और 38 प्रतिशत थे। मूडीज ने ‘हर्ड फ्रॉम द मार्केट: इंडियन नाट इम्यून टू एक्सटर्नल रिस्क’ शीषर्क से जारी रिपोर्ट में कहा है, ‘भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावना को लेकर लोग आशावादी हैं। तीन तिमाहियों से अधिक समय से बाजार प्रतिभागियों के बीच किये गये सर्वे में यह बात सामने आयी है कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अगले 12 से 18 महीने में 6.5 से 7.5 प्रतिशत के दायरे में रहेगी।’ मई 2015 में किये गये पिछले सर्वे की तुलना में 14 प्रतिशत प्रतिभागियों को अब लगता है कि आर्थिक वृद्धि दर 7.5 से 8.5 प्रतिशत के बीच रहेगी। पूर्व में ऐसे लोग 36 प्रतिशत थे। मूडीज ने कहा, ‘हालांकि सर्वे में शामिल लोग वृद्धि को लेकर आशान्वित हैं लेकिन भारत के वृहत आर्थिक परिदृश्य के मामले में जोखिम संतुलन में बदलाव देखा गया है।’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘बाजार प्रतिभागियों में अब अमेरिका में ब्याज दर में वृद्धि तथा चीन में नरमी के भारत पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता बढ़ रही है। उनका मानना है कि इससे देश की वृद्धि पर असर पड़ेगा।’ इसमें यह भी कहा गया है कि हालांकि भारत अभी भी उभरते बाजारों में बेहतर स्थिति में है। निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी लाने के लिये मूडीज ने सुझाव दिया है कि सरकार को प्रमुख सुधार पहल को आगे बढ़ाना चाहिए और जीएसटी जैसे प्रमुख विधेयकों को पारित किया जाना चाहिए।

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