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लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुखिया मायावती ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ का पक्ष लेते हुए कहा कि केन्द्र की गलत नीतियों के खिलाफ संघर्ष करने वाले संगठनों को भी निशाना बनाया जा रहा है। मायावती ने उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों, विधायकों और चुनाव के लिये घोषित उम्मीदवारों की बैठक में कहा कि रोहित वेमुला आत्महत्या मामले और इशरत जहां मुठभेड़ मामले में पक्षपातपूर्ण ढंग से काम करने वाली केन्द्र की भाजपा सरकार अब अपनी गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले गैरसरकारी संगठनों को भी निशाना बना रही है। उन्होंने कहा, ‘भाजपा सरकार की ग़लत नीतियों और कार्यकलापों के खिलाफ संघर्ष करने वाले एन.जी.ओ. आदि पर भी केन्द्र सरकार की कार्रवाई जारी है, जिसके तहत तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सबरंग ट्रस्ट पर कठोर कार्रवाई करते हुये उसका पंजीकरण ही रद्द कर दिया गया है। यह सब पहली नज़र में ही द्वेषपूर्ण कार्रवाई लगती है, जिसका अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी विरोध हो रहा है।’ उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी मदद के दुरुपयोग के आरोप में तीस्ता का एफसीआरए पंजीकरण गत गुरुवार को रद्द कर दिया था।
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अहमदाबाद: भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरूआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा किसे अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी, इस पर अंतिम फैसला पार्टी संसदीय बोर्ड करेगा। राजनाथ सिंह ने कहा, अब तक संसदीय बोर्ड में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर कोई चर्चा नहीं हुई है। उचित समय आने पर पार्टी संसदीय बोर्ड चर्चा करेगा और इस पर फैसला करेगा। सिंह ने कहा कि स्थिति को देखते हुए पार्टी इस पर फैसला लेगी। यह पूछे जाने पर कि असम में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के कारण ही भाजपा राज्य में सत्ता में आई और बिहार चुनाव में किसी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किए जाने के कारण ही पार्टी वहां चुनाव हार गई, इस पर सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई थी और इसके बगैर ही पार्टी ने वहां जीत हासिल की। ऐसी अटकलें हैं कि पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार के तौर पर पेश कर सकती है।
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लखनऊ: कैराना से हुए कथित पलायन के मामले में शामली जिला प्रशासन द्वारा की गयी जांच में सामने आया है कि 346 परिवारों की सूची में से 188 ने करीब 5 साल पहले गांव छोड़ा था। गृह विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि भाजपा सांसद हुकुम सिंह द्वारा मुहैया करायी गयी 346 परिवारों की सूची में से यह पाया गया है कि 66 परिवारों ने 10 साल पहले कैराना छोड़ा था। प्रवक्ता ने कहा, यह भी सामने आया है कि 60 परिवार शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और अन्य कारणों से दूसरे स्थानों पर रह रहे हैं। उन्होंने कहा, उक्त सूची में शामिल परिवारों में से 28 अभी भी कैराना में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि सात परिवारों के नाम सूची में दो बार लिखे गए हैं और पांच लोग सरकारी सेवा में थे, जो सेवानिवृत होने के बाद शहर से चले गए हैं। हालांकि जांच में यह बात सामने आयी है कि तीन मामलों में परिवारों को रंगदारी की धमकियां मिली थीं और पुलिस ने समय पर कार्रवाई की। कुछ मामलों में मुसलमान परिवार कैराना छोड़ रहे हैं और रोजगार तथा शिक्षा के लिए दूसरी जगह जा रहे हैं।
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लखनऊ (आशु सक्सेना) जनतादाल (यू) अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मुहीम तेज़ कर दी है। ये बात तो समझ आती है कि उत्तर प्रदेश उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी प्रदेश की बदौलत ही अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल हुए है। लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी ये सक्रियता कहीं न कहीं मुलायम सिंह यादव से बिहार विधानसभा चुनाव का हिसाब चुकता करने का ज़्यादा नज़र आ रहा है। क्योंकि इस प्रदेश में भाजपा का मुकाबला सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से है। प्रमुख विपक्षी दल बसपा पूर्व में तीन बार उनकी ही तरह भाजपा के साथ सत्तासुख भोग चुकी है । अगले चुनाव में अगर विधानसभा त्रिशंकु रही, तो बसपा और भाजपा की जुगलबंदी की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। बहरहाल ये बात साफ़ नज़र आ रही है कि बिहार कि तरह उत्तर प्रदेश में भी धर्म निरपेक्ष दल विभाजित नज़र आएंगे। दूसरी तरफ भाजपा सांप्रदायिक धुर्वीकरण का हर संभव प्रयास करेगी। फिलहाल उसका ये प्रयास बदस्तूर जारी है। कैराना मुद्दा उसी दिशा में भाजपा का पहला कदम माना जा सकता है। लेकिन संभवत नीतीश कुमार इस हक़ीक़त को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं कि उनके प्रदेश बिहार कि तरह उत्तर प्रदेश में भी पहली बार विकास एक बड़ा मुद्दा होगा और जिसका नायक अखिलेश यादव होंगे। लिहाज़ा मुकाबला यहाँ भी मोदी बनाम अखिलेश होता नज़र आ रहा है। फर्क फिलहाल सिर्फ इतना है कि नीतीश कुमार ने कांग्रेस को साथ लेकर चुनावी जंग जीती है और अखिलेश यादव को कांग्रेस के विरोध का भी सामना करना है।
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