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लखनऊ: लखनऊ के मशहूर घंटाघर पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरुद्ध शुक्रवार रात से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे दर्जनों लोगों की पहचान कर लखनऊ पुलिस ने उनके खिलाफ 'दंगा करने' और 'गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने' के तीन केस दर्ज किए हैं। जिन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं, उनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं, जिनमें उर्दू के जाने-माने शायर मुनव्वर राणा की बेटियां सुमैया राणा और फौज़िया राणा भी शामिल हैं।

शुक्रवार रात को लगभग 50 महिलाओं ने घंटाघर पर धरना देना शुरू किया था, लेकिन जल्द ही भीड़ बढ़ती गई और ढेरों महिलाएं और बच्चे उनके साथ आकर बैठते गए। पुलिस की शिकायतों में 100 से ज़्यादा अनाम प्रदर्शनकारियों पर भी 'सरकारी अधिकारी द्वारा उचित तरीके से जारी किए गए आदेश की अवज्ञा करने', 'सरकारी अधिकारी पर हमला कर अथवा बलप्रयोग द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकने' का आरोप लगाया गया है। जिस घटना को इन आपराधिक मामलों का आधार माना जा रहा है, वह दरअसल एक महिला कॉन्स्टेबल द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत है, जिसमें उसने आरोप लगाया है कि प्रदर्शनकारियों ने उसके साथ हाथापाई की।

जिन प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर महिला कॉन्स्टेबल को धक्का दिया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया, उन पर दंगा करने और गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने के आरोप लगाए गए हैं।

पुलिस पर आरोप है कि शनिवार रात को वे घंटाघर पर मौजूद प्रदर्शनकारियों के लिए रखे कम्बल और खाने का सामान उठाकर ले गए। लखनऊ पुलिस ने इन आरोपों का खंडन करते हुए एक बयान में कहा, "अफवाहें न फैलाइए", और कहा कि 'कम्बलों को उचित प्रक्रिया के बाद ज़ब्त किया गया' था।

लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून सीएए के खिलाफ पिछले माह हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई थी, और पुलिस ने सदफ जफर सहित कई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम लेकर इसी तरह के आपराधिक मामले दर्ज किए थे। उन लोगों पर अन्य आरोपों के साथ-साथ 'हत्या के प्रयास' का आरोप भी लगाया गया था। हालांकि, बाद में ज़मानत की सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा था कि उनके पास इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। पिछले एक माह में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान राज्यभर में 21 लोगों की मौत हुई, जो देश के किसी भी अन्य सूबे से ज़्यादा है।

पिछले ही महीने संसद द्वारा पारित किए गए नागरिकता संशोधन कानून सीएए में देश की नागरिकता के लिए पहली बार धर्म को आधार बनाया गया है। सरकार का दावा है कि इससे तीन मुस्लिम-बहुल देशों - पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश- के उन अल्पसंख्यकों को मदद मिलेगी, जो धार्मिक अत्याचार की वजह से भागकर वर्ष 2015 से पहले भारत आ गए थे। देशभर में आलोचकों के मुताबिक, यह कानून मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है, और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

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