लखनऊ: दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर लखनऊ के घंटाघर पर महिलाओं ने सीएए के खिलाफ धरना शुरू कर दिया है। जाड़े की सर्द रातों में महिलाएं खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठी हैं। उनका आरोप है कि पुलिस ने उन्हें वहां टेंट तो लगाने नहीं दिया बल्कि उनके घरों से भेजे गए कंबल और खाना भी छीन लिया। शुक्रवार को शुरू हुआ धरना आज भी जारी है।
लखनऊ के तारीखी घंटाघर पर औरतों का हुजूम दिखाई दे रहा है। तमाम बुरकापोश औरतें मुट्ठी भींचे इंकलाब के नारे बुलंद कर रही हैं। कुछ तो ऐसा होगा जिसने उन्हें सड़कों पर लाकर खड़ा कर दिया है।
छात्रा वारिसा सलीम ने कहा कि ''हम चाहते हैं कि यह सीएए, एनआरसी जो रिलीजन बेस्ड बिल लागू हुआ है, उसको सरकार वापस ले ले, क्योंकि यह देश को बांटने वाला कानून है और आप बोलते हो कि हम नागरिकता देना चाहते हैं, लेना नहीं चाहते।'' औरतों की इस भीड़ में तमाम बूढ़े, जवान, बच्चे... सब हैं। औरतें आईं तो उनके पीछे बच्चे भी आ गए। शुक्रवार को दोपहर में चंद औरतें हाथों में तख्तियां लेकर घंटाघर पर बैठ गई थीं। उन्हें देखकर और महिलाएं आती गईं और भीड़ जुटती गई। पुलिस ने उन्हें टेंट लगाने की इजाजत नहीं दी।
महिलाओं का इल्ज़ाम है कि उनके घरों से आए कंबल भी पुलिस ने छीन लिए। प्रदर्शनकारी सोमैय्या राणा ने कहा कि ''हमारे पास कुछ सामान वगैरह आया, कंबल वगैरह थे। तकरीबन 60 से 70 कंबल थे जो पुलिस लेकर चली गई। और जो खाने का सामान था, बच्चों के लिए, बूढ़ों के लिए वह लेकर चली गई।'' प्रदर्शनकारी उरूसा ने कहा कि ''उनके कंबल ले जाने से, या जो भी वे प्रताड़ित कर रहे हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। क्योंकि हम लोग जिस देश से बिलांग करते हैं..हिंदुस्तान से, उस मिट्टी में इतनी ताक़त है कि कोई हिला नहीं सकता हम लोगों को।'' प्रदर्शनकारी महिलाएं कहती हैं कि उनका धरना तब तक चलेगा जब तक यह कानून वापस नहीं हो जाता।
घंटाघर पर घने कोहरे में रात भर महिलाएं खुले आसमान के नीचे भारत माता की जय नारों के साथ जमी रहीं। वहीं, प्रशासन की ओर से घंटाघर की बिजली काटे जाने पर महिलाओं ने रोष जाहिर किया। हुसैनाबाद की किश्वर ने बताया कि नागरिकता संशोधन कानून से अगर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो फिर इस कानून की जरूरत क्या हैं? आफरीन ने कहा कि संविधान ने सभी धर्मों को बराबर का हक दिया है।