मिर्जापुर: उत्तर प्रदेश में स्कूली शिक्षा का स्तर भले ही लगातार सुधारने के दावे किए जाते हों। लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही है। केंद्र सरकार भी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की भागीदारी बढ़ाने के दावे करती है। लेकिन मिर्जापुर के 35 फीसदी बच्चों ने अभी तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है। यह दावा एक सर्वे रिपोर्ट में किया गया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली यूनिवर्सिटी, काशी विद्यापीठ, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के छात्रों की ओर किए गए सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
इस संयुक्त रिपोर्ट को केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव चेतन संघाई को सौंपा गया। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में 35 फीसदी बच्चों ने अभी तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है। ऐसे में बच्चों को एबीसीडी और गिनती तक का ज्ञान नहीं है। इन्हें अपने माता-पिता के अलावा न तो किसी महापुरुष और न ही किसी बड़े नेता का नाम मालूम है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 16 साल तक के किशोर नशे के आदी और कुपोषण के शिकार हैं। 80 फीसद महिलाएं भी शोषण की शिकार हैं. गांवों में बाल विवाह का प्रचलन अब भी है।
ये चौंकाने वाले तथ्य यूनिवर्सिटी के छात्रों और होप संस्था द्वारा किए गए संयुक्त सर्वे में सामने आए हैं। विकास की मुख्य धारा से वंचित छात्रों की स्कूल से दूरी की वजह मिली शिक्षकों का समय न आना। मिड-डे मील के मेन्यू में भी फर्जीवाड़ा होता है। शिक्षा व जागरुकता के अभाव में जिले के नक्सल प्रभावित ग्रामीण इलाके आज भी विकास की मुख्य धारा से वंचित हैं।
शिक्षा के अधिकार का कानून लागू होने के बाद भी नौनिहालों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले ऐसे बच्चों के माता-पिता का कहना है कि गरीबी और दो वक्त की रोटी कमाने के ऐसे कार्यों से वे जुड़े हैं, जिनके कारण उनके बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला ही नहीं मिलता। सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन की स्थिति का पता पढ़ने वाले छात्रों के सामान्य ज्ञान से ही पता चलता है। जहां कक्षा 3 से 5 तक में पढ़ने वाले छात्रों को गिनती और एबीसीडी तक नहीं आती।
सरकारी स्कूल के अध्यापक गरीब बच्चों को दाखिले न मिलने के आरोप को खारिज करते हुए कहते हैं कि वे स्कूल आते ही नहीं। बच्चों को एबीसीडी और गिनती तक का ज्ञान नहीं पर कोई जबाव नहीं देते। सर्वे में आए रिपोर्ट पर शिक्षा से अब तक वंचित 35 प्रतिशत छात्रों की स्थिति को लेकर शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इसमें सुधार लाने के लिए कैंपेन चलाने की बात कह रहे हैं।
नक्सल क्षेत्रों में विकास के नाम पर अरबों रुपए प्रति वर्ष खर्च होने के बाद भी सर्वे रिपोर्ट में आए चौंकाने वाले सच ने विभाग और सरकार के दावों की पोल खोल दी है।