नई दिल्ली: अयोध्या राम जन्म भूमि मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शुक्रवार को शिया वक़्फ़ बोर्ड ने फारुखी मामले को संविधान पीठ में भेजे जाने का विरोध किया। शिया वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से कहा गया कि हिन्दू धर्म को छोड़कर, धर्म की व्याख्या कहीं भी नहीं की गई है। हिन्दू धर्म में ही धर्म की व्याख्या की गई है। बोर्ड ने कहा कि फारुखी मामले को लेकर जो बहस चल रही है, उसको संविधान पीठ में भेजने का कोई औचित्य नही है। शिया वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से कहा गया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मीर बाक़ी द्वारा किया गया था।
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से कहा गया कि 1946 में ये फैसला हो गया कि ज़मीन पर मालिकाना हक सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का है। शिया वक़्फ़ बोर्ड ने 2017 में 1946 के फैसले को चुनौती दी है। इस मामले में शिया वक़्फ़ बोर्ड का कोई लोकस नहीं है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने कहा कि वह शिया वक़्फ़ बोर्ड की बात का जवाब देना नहीं चाहते क्योंकि वह पक्ष है ही नहीं। शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कहा कि हम इस महान देश में सौहार्द, एकता, शांति और अखंडता के लिए अयोध्या की विवादित ज़मीन पर मुसलमानों का हिस्सा राम मंदिर के लिए देने को राज़ी हैं।
मुस्लिम पक्ष की तरफ से बहस करते हुए राजीव धवन ने तालिबान द्वारा बुद्ध की मूर्ति तोड़े जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें ये कहने में कोई संकोच नहीं कि 1992 में जो मस्जिद गिराई गई वह हिन्दू तालिबानियों द्वारा गिराई गई। मुस्लिम पक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि सरकार को इस मामले में मध्यस्थ की भूमिका निभानी थी, लेकिन उन्होंने इसको तोड़ दिया। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हमने बहुत प्रयास किए कि कोई हल निकल जाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
धवन ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड वह दान कर रहा है जो उसके पास है ही नहीं। किसी भी आस्था को मस्जिद गिराने का अधिकार नहीं है। तथ्य ये है कि मस्जिद गिराई गई लेकिन प्रार्थना करने के अधिकार का मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ।