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लखनऊ: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के नाम के पीछे एक और पूर्व लग जाएगा। वह आज से किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहेंगे और ये अखिलेश की राजनीतिक करियर के अट्ठारह साल बाद होने जा रहा है। चुटीले अंदाज में अब अखिलेश न तो योगी सरकार को और न ही केंद्र की मोदी सरकार को सदन में घेर पायेगे। इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी के सदस्यों का सहारा लेना पड़ेगा।

गौरतलब है कि बसपा प्रमुख मायावती भी इस समय किसी सदन की सदस्य नहीं हैं। उन्होंने पिछले वर्ष राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच गठबंधन है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पूर्व सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री के बाद अब पूर्व एमएलसी यानी पूर्व विधान परिषद् सदस्य होने जा रहे हैं।

देश के सबसे बड़े सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले अखिलेश यादव ने साल 2000 से अपने सियासी सफर की शुरुआत की। कन्नौज उपचुनाव में सांसद चुने गए। इसके बाद वो दो बार और सांसद बने, साल 2009 में वो कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद दोनों सीट से जी, लेकिन बाद में फ़िरोज़ाबाद सीट उन्होंने छोड़ दी। तीन बार बन चुके अखिलेश यादव ने साल 2012 में सांसद के पद से इस्तीफ़ा दिया क्योंकि उन्हें यूपी का सीएम की कुर्सी मिल गयी थी।

सीएम बनने के बाद उनका यूपी के किसी न किसी सदन का सदस्य होना जरूरी था, लिहाज़ा वो छह साल के लिए एमएलसी यानी विधान परिषद् सदस्य बन गए जिसका कार्यकाल आज खत्म हो जायेगा और अखिलेश के नाम के आगे पूर्व लग जायेगा। लोकसभा चुनाव तक वो देश के किसी सदन सदस्य नहीं बनेगें।

आपको बता दें की अखिलेश अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जोर-शोर में जुटे हैं। इसके लिए उन्होंने पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाया और गोरखपुर-फुलपुर लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। अब उनकी नजर कैराना सीट पर है। इस सीट के लिए भी विपक्षी दल समजावदी पार्टी का साथ देने के लिए तैयार है। अखिलेश लगातार राज्य की योगी सरकार पर हमलावर हैं।

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