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नई दिल्ली: तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़ना सुनिश्चित करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए कर्नाटक विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सरकार को सिंचाई उद्देश्य के लिए पानी प्रदान करने के राज्य के किसानों की मांग को पूरा करने के 'समुचित' निर्णय करने का आज अधिकार दिया गया। पिछले 10 दिनों के भीतर दूसरी बार विशेष सत्र के दौरान विधानमंडल के दोनों सदनों ने यह निर्णय किया। यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक सरकार से कल दोपहर तक यह बताने को कहा है कि 30 दिसंबर के निर्देश के अनुरूप क्या वह तमिलनाडु को पानी छोड़ रहा है या नहीं। सरकार की ओर से पेश प्रस्ताव में तमिलनाडु को कावेरी को पानी छोड़े जाने या उच्चतम न्यायालय के आदेश का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन उसने 23 सितंबर के प्रस्ताव में संशोधन किया है, जिसमें कावेरी बेसिन के चार जलाशयों से केवल पीने के उद्देश्य से जल निकालने के साथ सिंचाई के लिए भी उपयोग करने की अनुमति दी गई है। 30 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कर्नाटक को निर्देश दिया था कि वह 1 से 6 अक्तूबर तक 6000 क्यूसेक पानी छोड़े।
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बेंगलुरु: कर्नाटक मंत्रिमंडल ने कावेरी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्णय लेने के लिए 3 अक्टूबर को विधानमंडल का सत्र बुलाने का शनिवार रात फैसला किया। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सर्वदलीय बैठक के बाद राज्य का रूख संवाददाताओं के सामने रखा। बैठक में सभी दलों ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार तमिलनाडु को कावरी का 6000 क्यूसेक पानी किसी भी कीमत पर नहीं जारी करने एवं बोर्ड के गठन का विरोध करने को कहा। सिद्धरमैया ने कहा, ‘सर्वदलीय बैठक ने हमसे पानी नहीं छोड़ने को कहा है। हमें विधानमंडल में जाना होगा। जहां तक पानी छोड़ने की बात है तो हम सोमवार को विधानसभा में वापस जाएंगे।’ उन्होंने कहा कि विधानमंडल ने 23 सितंबर को प्रस्ताव पारित किया था कि पानी का उपयोग बस पीने के लिए, न कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए। अपने आदेशों की बार बार अवज्ञा किये जाने पर कर्नाटक की कड़ी खिंचाई करते हुए एवं उसे अंतिम मौका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कल उससे एक अक्तूबर से छह अक्तूबर तक 6000 क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा था अन्यथा कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी थी। अदालत ने केंद्र को चार अक्तूबर तक कावेरी जल प्रबंधन बार्ड गठित करने का निर्देश दिया था।
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नई दिल्ली/बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने कावेरी का पानी तमिलनाडु को छोड़े जाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुनर्विचार के लिए शनिवार को शीर्ष न्यायालय का रुख किया। वहीं, राज्य सरकार किसी भी कीमत पर पानी नहीं छोड़ने की विपक्षी पार्टियों की सख्त मांग का सामना कर रही है। कर्नाटक सरकार ने कावेरी का पानी तमिलनाडु को छोड़े जाने के तीन आदेशों और कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन करने का केंद्र को निर्देश देने के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है। राज्य सरकार ने कहा कि इससे राज्य को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। याचिका में कहा गया है कि बोर्ड के गठन का निर्देश देने में शीर्ष न्यायालय ने एक गलती की है। न्यायालय ने इस तथ्य को संज्ञान में नहीं लिया कि बोर्ड का गठन विधायी प्रकृति का है। इस बीच, बेंगलुरु में तीन घंटे से अधिक समय तक चली एक सर्वदलीय बैठक से बाहर आने पर भाजपा और जदयू नेताओं ने कहा कि उन्होंने सरकार से कहा है कि राज्य विधानमंडल में 23 सितंबर को पारित प्रस्ताव पर सरकार अडिग रहे।
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बेंगलुरु: पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने कावेरी नदी का पानी छोडने को लेकर तमिलनाडु के साथ जारी विवाद में कर्नाटक के लिये ‘न्याय’ की मांग को लेकर आज अपना अनशन शुरू किया। जनता दल (सेक्युलर) के 83 वर्षीय सुप्रीमो यहां राज्य सचिवालय में विधान सौध के सामने महात्मा गांधी की प्रतिमा के निकट अनशन पर बैठे हैं। उच्चतम न्यायालय के कल आये आदेश की पृष्ठभूमि में गौड़ा का यह निर्णय अचानक सामने आया। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक को छह अक्तूबर तक तमिलनाडु को कावेरी नदी का 6000 क्यूसेक पानी छोड़ने और केन्द्र से कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन करने को कहा है। अनशन शुरू करने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवगौड़ा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘हम न्याय चाहते हैं। इंसानों के जीवित रहने के लिए पेयजल आवश्यक है।’ केन्द्र सरकार से कर्नाटक को न्याय मिलने तक अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखने पर जोर देते हुये गौड़ा ने कहा कि उनका अभी भी प्रधानमंत्री में ‘भरोसा’ है कि वह मुद्दे को सुलझा लेंगे। गौड़ा ने बताया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को लेकर आज दिन में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में वह हिस्सा नहीं लेंगे। उच्चतम न्यायालय का फैसला राज्य के लिए एक झटका के रूप में सामने आया है। गौड़ा से मिलने के लिए आये गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने हमेशा राज्य के हितों के लिए लड़ाई लड़ी है। उन्होंने कहा कि ‘मैं उम्मीद करता हूं कि (भूख हड़ताल) न्यायपालिका की आंखे खोलेगा।’
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