रांची: चारा घोटाले में दुमका कोषागार से फर्जी ढंग से तीन करोड़ 31 लाख रुपये निकालने के एक मामले में आज राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की यहां सीबीआई के न्यायाधीश शिवपाल सिंह की विशेष अदालत में पेशी हुई। नब्बे के दशक में बिहार में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री काल में हुए लगभग साढ़े नौ सौ करोड़ रुपये के चारा घोटाले में दुमका कोषागार से तीन करोड़ 31 लाख रुपये फर्जी ढंग से निकालने से जुड़े आरसी-38ए-96 के एक मामले में राजद प्रमुख लालू को यहां सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत में पेश होना पड़ा। विशेष अदालत में लालू यादव के अलावा पूर्व सांसद आर के राणा और जगदीश शर्मा की भी आज पेशी हुई है। उल्लेखनीय है कि इस मामले का खुलासा वर्ष 1996 में हुआ। इसमें लालू यादव के अलावा कुल 47 आरोपी थे, लेकिन लंबे समय से चल रही अदालती कार्यवाही के दौरान 15 आरोपियों की मौत हो चुकी है। सीबीआई ने दो आरोपियों को सरकारी गवाह बना लिया है, जबकि इसी मामले में एक अन्य आरोपी को झारखंड उच्च न्यायालय से राहत मिल चुकी है। कुल मिलाकर अब दुमका कोषागार से जुड़े इस मामले में केवल 29 आरोपी बचे हैं, जिनमें कुछ पूर्व आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं।
पिछली अनेक तारीखों से अनेक आरोपियों के इस मामले में अदालत के सामने पेश नहीं होने का संज्ञान लेते हुए अदालत ने सभी की आज पेशी का आदेश दिया था। राजद प्रमुख लालू यादव अपने दलबल के साथ सबेरे करीब साढ़े सात बजे अदालत में पेशी के लिए हाजिर हुये। अदालत ने उनकी हाजिरी अदालत ने लगा ली, लेकिन साढ़े आठ बजे तक 29 में से 27 आरोपियों की ही पेशी हो सकने के कारण अदालत ने मामले की सुनवाई साढ़े दस बजे के बाद निर्धारित कर दी है। यदि साढ़े दस बजे तक अन्य दो आरोपियों की भी पेशी हो गयी तो अदालत मामले में सुनवाई की अगली तारीख निर्धारित करेगी अन्यथा पेश नहीं होने वाले आरोपियों के खिलाफ वारंट जारी किये जा सकते हैं। लालू यादव के खिलाफ इस समय रांची की विशेष अदालतों में चारा घोटाले से जुड़े चार मामले चल रहे हैं, जबकि इससे पहले चारा घोटाले से ही जुड़े आरसी 20ए-96 मामले में लालू यादव को वर्ष 2013 में 30 सितंबर को सीबीआई की प्रवास कुमार सिंह की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया था और न्यायिक हिरासत में यहां बिरसामुंडा जेल भेज दिया था। इसके बाद उसी साल 13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। जमानत मिलने के लगभग ढाई माह बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था। चारा घोटाले के इसी मामले में दोषी करार दिये जाने और चार वर्ष के कैद की सजा सुनाये जाने के बाद लालू के राजनीतिक जीवन पर ग्रहण लग गया था और उनकी सांसदी छिन गयी थी।