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रांची: राजनीतिक चिंतक गोविंदाचार्य ने रविवार को यहां कहा कि देश को सही दिशा में आगे ले जाने के लिए राजनीति एवं अर्थतंत्र की पुनर्संरचना करनी होगी। पूर्वी भारत में पर्यावरण एवं विकास विषय पर यहां आयोजित एक राष्ट्रीय विचार गोष्ठी में भाजपा के पूर्व महासचिव के एन गोविंदाचार्य ने यह बात कही। गोविंदाचार्य ने कहा कि धरती पर पर्यावरण की उपेक्षा करके विकास नहीं किया जा सकता है क्योंकि वास्तव में ‘प्रकृति का संपोषण ही विकास का दूसरा नाम है।’ उन्होंने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने पर दुनिया को होने वाले नुकसान और विनाश का उदाहरण देते हुए कहा कि किस प्रकार भूजल के स्रोतों के खत्म होने अथवा नीचे गिरने से मेढ़कों का धरती की सतह पर अभाव हो गया और इसका लाभ उठाते हुए डेंगू और चिकुनगुनिया बढ़ाने वाले मच्छर अब देश के अनेक हिस्सों में तेजी से पल बढ़ रहे हैं जिसका भारी नुकसान समाज को उठाना पड़ रहा है। गोविंदाचार्य ने कहा कि ‘उभय तृप्ति का समाधान’ ही जीवन में हर क्षेत्र में लागू होता है अर्थात विकास भी हो और प्रकृति भी संतृप्त हो। उन्होंने कहा कि मानव परिग्रह के प्रयास में पूंजीवाद की ओर बढ़ रहा है और ‘जैसा वित्त, वैसा चित्त’ के सिद्धान्त के तहत गलत ढंग से एकत्रित धन या पूंजी के चलते समाज में लोग गलत कार्य कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि प्रकृति बिना किसी भय या लाग लपेट के काम करती है और उसके साथ छेड़छाड़ किये जाने पर वह अपने को दुरूस्त करने के लिए किसी भी हद तक उलटपुलट कर देती है इसलिए देश दुनिया में व्यवस्थागत बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने आह्वान किया कि नयी पीढ़ी दल निरपेक्ष होकर व्यवस्था बदलने के लिए सीधा हस्तक्षेप करने के लिए भी तैयार रहे।

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