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नई दिल्ली: मणिपुर विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना चुकी मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने आज (शनिवार) कहा कि चुनाव के लिए उनकी कोई ‘‘विशिष्ट योजना’’ नहीं है और उनकी एकमात्र रणनीति अपने राज्य के ‘‘लोगों के दिलों से जुड़ना’’ है। अपना अनशन तोड़ने के बाद शर्मिला पहली बार दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि अफस्पा मुद्दे पर वह कल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह को संबोधित करेंगी। उन्होंने कहा, ‘‘हम लंबे समय से अफस्पा को हटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चुनावी राजनीति बदलाव के लिए एक और लोकतांत्रिक औजार है। इसलिए मैंने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। लेकिन मेरी कोई विशिष्ट योजना नहीं है और मेरी एकमात्र रणनीति लोगों के दिलों से जुड़ना है।’’ वह एक संवाददाता सम्मेलन से इतर बोल रही थीं।

इंफाल: अपना 16 साला पुराना अनशन खत्म करने के कुछ दिनों बाद मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला ने आज कहा कि राजनीति में आने के उनके फैसले में कोई बदलाव नहीं आया है और उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य से आफ्सपा हटाने के उनके अभियान में नयी शुरूआत होगी। अनशन खत्म कर राजनीति में आने के फैसले के बाद 44 साल की शर्मिला खुद को अचानक से दोस्तों के दूरी बना लेने की स्थिति में पा रही हैं तथा अपने समर्थकों से भी उनको निराशाजनक जवाब मिल रहा है। उनके इस फैसले का सिविल सोसायटी अ‍ैर आम लोगों में स्वागत नहीं हुआ है तथा लोगों ने उनको एक तरह से अलग छोड़ दिया है। परिवार से लेकर करीबी दोस्तों और पड़ोसियों तक से शर्मिला को विरोध का सामना करना पड़ा है तथा कुछ उग्रवादी समूहों ने कथित तौर पर धमकी भी दी है। स्थिति यह है कि शर्मिला को उसी अस्पताल में लौटना पड़ा है जो बीते 16 वर्षों में अनशन के दौरान उनका घर सा हो गया था। इस मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता से जब यह पूछा गया कि क्या राजनीति में आने के उनके फैसला में कोई बदलाव आया है तो उन्होंने कहा, हां, मैं मुख्यमंत्री बनना चाहती हूं। अगर मैं मुख्यमंत्री बनती हूं तो मैं इस बदनाम आफ्सपा को हटा सकती हूं। मणिपुर में विधानयभा चुनाव 2017 में होना है। उन्होंने कहा, अगर लोग मेरा समर्थन नहीं करते, मैं अपने रास्ते चली जाउंगी। इसके साथ ही शर्मिला ने यह भी भरोसा जताया कि चुनावी राजनीति में आने के उनके फैसले को जनता में समर्थन हासिल है। शर्मिला ने इस बात से भी असहमति जताई कि बिना किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन के राजनीति में आना निरर्थक साबित होगा।

इंफाल: मणिपुर की ‘आयरन लेडी’ इरोम शर्मिला को आज कड़ी सुरक्षा में रखा गया क्योंकि कुछ समूहों ने उनके द्वारा करीब 16 साल से जारी अनशन तोड़ने का विरोध किया है जबकि उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें गलत समझा गया है। इरोम ने अनशन समाप्त करने के साथ ही चुनावी राजनीति में प्रवेश करने का भी निर्णय किया है। इस बीच 44 वर्षीय इरोम को विशेष तरल आहार पर रखा गया है और वह अब जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (जेएनआईएमएस) में चिकित्सकों की निगरानी में हैं। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि इरोम शर्मिला को सुरक्षा खतरे के मद्देनजर सशस्त्र पुलिस कर्मियों को अस्पताल परिसर में तैनात किया गया है क्योंकि कुछ समूह अनशन समाप्त करने के उनके निर्णय का विरोध कर रहे हैं। इरोम ने साथ ही चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के अपने कदम को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने अपना अनशन समाप्त करने के बाद कहा कि वह मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं ताकि वह विवादास्पद अफ्सपा को रद्द कर सकें। इरोम ने कुछ समूहों की ओर से की जा रही आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, ‘उन्होंने मेरे असली होने के बारे में मुझे गलत समझा है। उन्होंने कहा, ‘वे मेरे दिल में जो है उससे जुड़े बिना मुझे अपने स्वयं के बिंदु से देख रहे हैं।’ इरोम ने इस पर जोर दिया कि राजनीति में प्रवेश करने का उनका इरादा यह सुनिश्चित करने के लिए होगा कि अफ्सपा रद्द हो।

इंफाल: मणिपुर की ‘लौह महिला’ इरोम चानू शर्मिला ने मंगलवार को अपना 16 साल से जारी उपवास (अनशन) तोड़ दिया। बता दें कि इरोम ने सैन्य बल (विशेषाधिकार) कानून (अफस्पा) को खत्म करने की मांग को लेकर 16 साल पहले उन्होंने उपवास शुरू किया था। अनशन खत्‍म करने के बाद भावुक हुईं इरोम ने कहा कि मैं अहिंसा का रास्‍ता अपनाउंगी। मेरा संघर्ष अभी खत्‍म नहीं हुआ है। इससे पहले, मणिपुर में अफ्सपा के खिलाफ 16 साल से अनशन कर रहीं राज्य की ‘आयरन लेडी’ इरोम शर्मिला के अदालत में दिए अनशन तोड़ने के वादे के बाद आज यहां की एक अदालत से उन्हें जमानत मिल गई। शर्मिला ने आज अदालत के बाहर मीडिया को बताया कि मैं पिछले 16 वर्षों से अनशन पर हूं और आज मैं अपना अनशन तोड़ूंगी। अब मैं एक अलग तरह से आंदोलन शुरू करना चाहती हूं। अधिकारों के लिए होने वाले आंदोलनों का चेहरा बन चुकी 44 वर्षीय शर्मिला को जीवित रखने के लिए कैदखाने में तब्दील हो चुके अस्पताल में उन्हें साल 2000 से ही नासिका में ट्यूब के जरिए जबरन भोजन दिया जा रहा था। पखवाड़े भर पहले उन्होंने उपवास तोड़ने की घोषणा की थी। इस नई शुरुआत के समय शर्मिला कुनबा लूप के बैनर तले काम करने वाले बड़ी संख्या में उनके समर्थक और महिला कार्यकर्ता मौजूद रहे। हालांकि उनकी 84 वर्षीय मां शाखी देवी यहां नहीं आईं। सिंहजीत ने बताया कि वह शर्मिला की जीत का इंतजार कर रही हैं और यह मौका तभी आएगा जब अफस्पा को हटा लिया जाएगा। शर्मीला के परिजन और समर्थक उनसे 26 जुलाई के बाद से मिल नहीं पाए हैं। इसी दिन उन्होंने उपवास का अंत करने और अफस्पा को हटाने की लड़ाई राजनीति में आकर लड़ने के अपने निर्णय की घोषणा की थी।

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