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इंफाल: मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह आज (सोमवार) संदिग्ध उग्रवादियों की गोलीबारी में बाल-बाल बच गये। यह गोलीबारी उस समय की गयी जब वह उखरूल हेलीपैड पर अपने हेलीकॉप्टर से बाहर निकले। सीआईडी अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री जिस समय हेलीकॉप्टर से उतर कर बाहर आए और सरकारी अधिकारी उनका अभिवादन कर रहे थे उस समय उग्रवादियों द्वारा की गयी गोलीबारी में मणिपुर राइफल का एक जवान घायल हो गया। अधिकारी ने बताया कि मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर ने तुरंत उड़ान भरी और चिनगई की ओर चला गया लेकिन विरोध प्रदर्शन के कारण दूर-दराज के गांव में इसे नहीं उतारा जा सका। सूत्र ने बताया कि तब मुख्यमंत्री ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया और राज्य की राजधानी वापस लौट गये जहां पर उन्होंने कैबिनेट की एक आपात बैठक बुलायी। उखरूल जिले के हुनफुंग और चिनगई गांव में मुख्यमंत्री के कई कार्यक्रम थे। हुनफुंग में इबोबी को एक बिजली सब स्टेशन के अलावा 100 बिस्तरों वाले उखरूल जिला अस्पताल का उद्घाटन करना था। नागरिक समाज के संगठनों ने बंद का आह्वान किया था और हेलीपैड से हुनफुंग के तीन किलोमीटर लंबे मार्ग पर नाकेबंदी की थी।। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने दो वाहनों में आग भी लगा दी। पुलिस ने बताया कि आज तड़के, नवनिर्मित अस्पताल के समीप, उसके उद्घाटन से पहले इंडियन रिजर्व बटालियन के एक जवान को संदिग्ध उग्रवादियों के बम हमले में छर्रे लग गए और वह घायल हो गया।

इंफाल: मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू ने मंगलवार को एक राजनीतिक दल का गठन किया। उन्होंने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफ्स्पा) को हटाने की मांग करते हुए अगस्त महीने में अपने 16 साल से चल रहे अनशन को समाप्त किया। शर्मिला ने कहा कि वह अगले साल विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह के विधानसभा क्षेत्र थौबल में उनसे मुकाबला करेंगीं यहां जॉनस्टोन हायर सैकंडरी स्कूल में इरोम शर्मिला की पार्टी ‘पीपुल्स रिसजेर्ंस एंड जस्टिस अलायंस’ के नाम की घोषणा की गयी। शर्मिला ने जिस दिन अपना अनशन समाप्त किया था, उसी दिन उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दल गठित करने की इच्छा जताई थी। मीडिया से बातचीत में 44 साल की शर्मिला ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के अपने सफर में जनता का सहयोग मांगा। बाद में उन्होंने मणिुपर प्रेस क्लब में कहा कि वह थौबल से और खुरई विधानसभा क्षेत्रों दोनों जगहों से चुनाव लड़ेंगी। शर्मिला ने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी और विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति तय करने के बारे में सलाह लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की भी इच्छा जताई थी।

नई दिल्ली: मणिपुर विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना चुकी मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने आज (शनिवार) कहा कि चुनाव के लिए उनकी कोई ‘‘विशिष्ट योजना’’ नहीं है और उनकी एकमात्र रणनीति अपने राज्य के ‘‘लोगों के दिलों से जुड़ना’’ है। अपना अनशन तोड़ने के बाद शर्मिला पहली बार दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि अफस्पा मुद्दे पर वह कल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह को संबोधित करेंगी। उन्होंने कहा, ‘‘हम लंबे समय से अफस्पा को हटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चुनावी राजनीति बदलाव के लिए एक और लोकतांत्रिक औजार है। इसलिए मैंने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। लेकिन मेरी कोई विशिष्ट योजना नहीं है और मेरी एकमात्र रणनीति लोगों के दिलों से जुड़ना है।’’ वह एक संवाददाता सम्मेलन से इतर बोल रही थीं।

इंफाल: अपना 16 साला पुराना अनशन खत्म करने के कुछ दिनों बाद मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला ने आज कहा कि राजनीति में आने के उनके फैसले में कोई बदलाव नहीं आया है और उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य से आफ्सपा हटाने के उनके अभियान में नयी शुरूआत होगी। अनशन खत्म कर राजनीति में आने के फैसले के बाद 44 साल की शर्मिला खुद को अचानक से दोस्तों के दूरी बना लेने की स्थिति में पा रही हैं तथा अपने समर्थकों से भी उनको निराशाजनक जवाब मिल रहा है। उनके इस फैसले का सिविल सोसायटी अ‍ैर आम लोगों में स्वागत नहीं हुआ है तथा लोगों ने उनको एक तरह से अलग छोड़ दिया है। परिवार से लेकर करीबी दोस्तों और पड़ोसियों तक से शर्मिला को विरोध का सामना करना पड़ा है तथा कुछ उग्रवादी समूहों ने कथित तौर पर धमकी भी दी है। स्थिति यह है कि शर्मिला को उसी अस्पताल में लौटना पड़ा है जो बीते 16 वर्षों में अनशन के दौरान उनका घर सा हो गया था। इस मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता से जब यह पूछा गया कि क्या राजनीति में आने के उनके फैसला में कोई बदलाव आया है तो उन्होंने कहा, हां, मैं मुख्यमंत्री बनना चाहती हूं। अगर मैं मुख्यमंत्री बनती हूं तो मैं इस बदनाम आफ्सपा को हटा सकती हूं। मणिपुर में विधानयभा चुनाव 2017 में होना है। उन्होंने कहा, अगर लोग मेरा समर्थन नहीं करते, मैं अपने रास्ते चली जाउंगी। इसके साथ ही शर्मिला ने यह भी भरोसा जताया कि चुनावी राजनीति में आने के उनके फैसले को जनता में समर्थन हासिल है। शर्मिला ने इस बात से भी असहमति जताई कि बिना किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन के राजनीति में आना निरर्थक साबित होगा।

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