ताज़ा खबरें
आम तीर्थयात्री को वीआईपी के समान सुरक्षा की जरूरत:जमात-ए-इस्लामी
मुख्यमंत्री योगी बोले- मृतकों के परिजनों को दिए जाएंगे 25 लाख रुपये
कांग्रेस का घोषणापत्र: 300 यूनिट बिजली मुफ्त, जाति जनगणना का वादा

नई दिल्ली (जनादेश ब्यूरो): अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया मंगलवार को 25 पैसे टूटकर 86.56 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शुल्क संबंधी धमकियों के बीच वैश्विक जोखिम धारणा कमजोर हुई जिसका असर घरेलू मुद्रा पर पड़ा। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी तथा तेल आयातकों की डॉलर मांग के साथ ही कमजोर जोखिम क्षमता के बीच विदेशी बाजार में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती से रुपये पर दबाव जारी रहा। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 86.53 प्रति डॉलर पर कमजोर रुख के साथ खुला।

कारोबार के दौरान यह 86.50 प्रति डॉलर के उच्चस्तर तक गया और 86.57 प्रति डॉलर के निचले स्तर तक आया। अंत में यह 86.56 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ जो पिछले बंद के मुकाबले 25 पैसे की गिरावट है। रुपया सोमवार को नौ पैसे कमजोर होकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.31 पर बंद हुआ था।

मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शुल्क संबंधी धमकियों के कारण वैश्विक जोखिम धारणा कमजोर पड़ने से भारतीय रुपये में गिरावट आई। इसका असर चीन की मुद्रा युआन पर भी पड़ा, जिससे अमेरिकी डॉलर भी मजबूत हुआ।

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.52 प्रतिशत की बढ़त के साथ 107.89 पर रहा। अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 0.52 प्रतिशत की बढ़त के साथ 77.48 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा। शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) सोमवार को बिकवाल रहे और उन्होंने शुद्ध रूप से 5,015.46 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।

रुपये के वैल्यू में गिरावट से एयरलाइन सेक्टर परेशान

डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट देश के एयरलाइंस कंपनियों के अलावा इंपोर्ट करने वाले कारोबारियों को भी परेशान कर रहा है। हाल ही में देश की बड़ी एयरलाइन कंपनी एअर इंडिया ने रुपये में जारी गिरावट को लेकर कहा था कि इस वजह से हमारी लागत में काफी बढ़ोतरी हो गई है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि एयरलाइंस कंपनियों को रखरखाव और किसी भी तरह के पार्टस के लिए बाहरी देशों को डॉलर में भुगतान करना पड़ता है। इस वजह से उनकी लागत पहले के मुकाबले ज्यादा हो जा रही है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख