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यवतमाल (महाराष्ट्र): राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यहां कहा कि किसी को धर्म को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि वह राष्ट्र का आधार है। जनसंघ नेता दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में भागवत ने यह बात कही। इस मौके पर केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर भी मौजूद थे। भागवत ने कहा, ‘किसी को अपने धर्म को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र का आधार है और देश परिवार के सिद्धांत पर चलता है तथा भारत में परिवार की संकल्पना अनूठी है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन और संस्कृति देश की बहुलता में एकता पर बहुत कुछ कहती हैं। उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पहले भारत दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में से था, लेकिन विदेशी शासनों के कारण वह निचले पायदान पर पहुंच गया। किसानों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि उपाध्याय ने रासायनिक उर्वर्रकों के प्रयोग के खिलाफ सरकार को चेताया था और जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा देने को कहा था। विदर्भ में किसानों की आत्महत्या पर चिंता जताते हुए भागवत ने कहा कि किसानों को उनके उत्पादों का समुचित मूल्य मिलना चाहिए और उन्हें ऐसी तकनीकों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो मानवता और प्रकृति के लिए हानिकारक नहीं हैं।

मुंबई: सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम द्वारा नियंत्रण रेखा के पार सेना के लक्षित हमलों को ‘फर्जी’ कहने के मद्देनजर यहां पार्टी की ओर से नगर निकाय के मुद्दों पर आयोजित एक कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया है। बहरहाल, पार्टी ने बाद में शहर में खुली जगह के कथित अतिक्रमण पर पैनल चर्चा कार्यक्रम को रद्द कर दिया। यह कार्यक्रम आज (बुधवार) दोपहर तीन बजे यहां पत्रकार भवन में होना था। कार्यक्रम रद्द करने का कोई कारण नहीं बताया गया है। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, अनांदिनी ठाकुर, आरटीआई कार्यकर्ता भास्कर प्रभु और अन्य सहित सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने निरूपम की टिप्पणी के बाद कार्यक्रम के पैनलिस्ट के तौर पर कल हटने का फैसला किया था। गांधी ने कल निरूपम को भेजे एक ईमेल में परिचर्चा में शामिल नहीं होने के अपने निर्णय के बारे में बताया। उन्होंने ईमेल में कहा, ‘यह सुनकर सभी भारतीय नागरिकों को दुख होता है कि एक भारतीय इस तरह से बात कर रहा है और पाकिस्तान के रूख को समर्थन दे रहा है।’ गांधी ने कहा, ‘हमें पता चला है कि निरूपम लक्षित हमलों की सत्यता पर सवाल कर रहे हैं और उन्हें फर्जी बता रहे हैं जो अनुचित है और इससे बचा जा सकता था। सिविल सोसाइटी के अन्य सदस्यों के साथ चर्चा करने के बाद, हमने निरूपम द्वारा आयोजित बैठक से खुद को दूर रखने का फैसला किया है।’

ठाणे: अमेरिकी नागरिकों को कथित तौर पर धमकी देने और उनसे रूपये ऐंठने के एक मामले में यहां मीरा रोड पर कुछ कॉल सेन्टरों पर एक बड़ी छापेमारी करते हुये पुलिस ने 500 से अधिक कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया। पुलिस ने आज (बुधवार) बताया कि इस छापेमारी में 200 से अधिक पुलिसकर्मी शामिल हुये जिसमें से अधिकतर अपराध शाखा के थे। यह छापेमारी कल देर रात और आज तड़के तक जारी थी। उन्होंने बताया कि ये कर्मी मीरा रोड इलाके में कॉल सेन्टरों में काम करते हैं। यह इलाका ठाणे ग्रामीण पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है। कर्मियों ने खुद को अमेरिकी कर विभाग के अधिकारियों के रूप में पेश किया जो भारत में आयकर विभाग के बराबर होता है। उन्होंने अमेरिकी नागरिकों को फोन किया और उनके वित्तीय और बैंक संबंधी ब्यौरे मांगे। ऐसा नहीं करने पर उन्होंने कथित तौर पर उन्हें कानूनी कार्रवाई सहित गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। पुलिस ने बताया कि अमेरिकी नागरिकों से ब्यौरा हासिल करने के बाद इन कॉल सेन्टरों के कर्मचारियों ने उनके खातों से रूपये निकालले की योजना बनाई थी । उन्होंने बताया कि इस तरह की जानकारी प्राप्त कर जो धन निकाला जा सकता था वह अनुमानत: प्रतिदिन एक करोड़ रूपया से अधिक होता ।

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में इस साल कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बच्चों की मौत से आपको कोई फर्क नहीं पड़ रहा। राज्य सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही, तो आप (वकील) भी सरकार से कोई निर्देश नहीं ले रहे।' कुपोषण से 600 आदिवासी बच्चों की मौत से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को कहा, 'आपको क्या लगता है कि हम यहां मजे लेने के लिए बैठे हैं। हमने मीडिया रिपोर्ट देखी हैं कि महाराष्ट्र में 500-600 बच्चों की कुपोषण से मौत हुई है। आपको लगता है कि बड़ी जनसंख्या वाले देश में कुछ लोगों के कुपोषण से मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ता।' दरअसल सुप्रीम कोर्ट सूखे को लेकर स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील का कहना था कि इस बारे में सरकार से कोई निर्देश नहीं मिला है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में बताया गया कि पिछले साल की तरह इस बार भी 21 राज्यों के 115 जिलों में हालात खराब हैं, लेकिन राज्यों ने इन्हें सूखा प्रभावित घोषित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर केंद्र के अफसरों को भी तलब किया, जिन्होंने कोर्ट को बताया कि अगस्त में जब पहली सूचना मिली थी कि बारिश में 50 फीसदी कमी है, तब केंद्र से राज्यों को एडवायजरी भेजी गई।

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