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मुंबई: बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) पर कब्जे के लिए राजनीतिक घमासान जारी है। सिर्फ 31 सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के अगले कदम पर शिवसेना और बीजेपी दोनों की नजर है। शिवसेना भाजपा का साथ लेने से मना कर चुकी है और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सेना का साथ देने से इंकार कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस और शिवसेना ऐसी रणनीति अपना सकती है जिसमें एक-दूसरे के साथ नहीं आकर भी कांग्रेस शिवसेना का मेयर बनवा दे। मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और एनसीपी मेयर पद के लिए अपना खुद का संयुक्त कैंडिडेट खड़ा कर सकती हैं। ऐसे में मेयर पद के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में होंगे। शिवसेना के पास निर्दलियों के सहयोग से अब 89 पार्षद हैं तो भाजपा के पास 82 जबकि कांग्रेस के 31, सपा के 3 और एनसीपी के 7 व कुछ अन्य पार्षद अलग से अपने कैंडिडेट को वोट देंगे। चूंकि मेयर का चुनाव साधारण बहुमत से होता है इसलिए एनसीपी और कांग्रेस के अलग कैंडिडेट खड़ा करने से शिवसेना के कैंडिडेट को ही सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे और मेयर पद पर पार्टी का कब्जा हो जाएगा। शिवसेना की कोशिश है कि 9 निर्दलीय पार्षद वोटिंग के दौरान उसका समर्थन करें। इससे पहले शनिवार को कांग्रेस ने जहां शिवसेना का समर्थन करने से इंकार किया है वहीं शिवसेना ने कहा कि इसने पार्टी से संपर्क नहीं किया। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस का समर्थन लेने से इंकार किया है।
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मुंबई: शिवसेना के उम्मीदवार को मुंबई का महापौर बनने के लिए समर्थन देने के मुद्दे पर कांग्रेस में मतभेद उभर आया है क्योंकि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इसका कड़ा विरोध किया है। पार्टी के पूर्व महानगर प्रमुख गुरूदास कामत ने कहा, ‘बीएमसी में शिवसेना से किसी तरह का गठबंधन करने या उसे परोक्ष समर्थन देने पर किसी तरह की चर्चा का मैं कड़ा विरोध करता हूं।’ बीएमसी चुनावों में खंडित जनादेश आने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस में विचार चल रहा है कि इसे मुंबई का महापौर शिवसेना के उम्मीदवार को बनाने पर विचार करना चाहिए। भगवा खेमे में दरार को और चौड़ा करने के लिए इसे कांग्रेस की चाल माना जा रहा है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने शुक्रवार को संकेत दिया कि शिवसेना पहले भाजपा नीत सरकार से बाहर निकले और उसके बाद उनकी पार्टी निर्णय करेगी। निकाय चुनावों से पहले महानगर कांग्रेस प्रमुख संजय निरूपम का कामत से मतभेद रहा। कामत ने कहा कि पार्टी ने शिवसेना और भाजपा दोनों की विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उनके साथ गठबंधन करने का प्रयास उल्टा पड़ेगा। 227 सदस्यीय बृहन्न मुंबई नगरपालिका (बीएमसी) में कांग्रेस 31 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही और उसके जल्द किसी निर्णय पर पहुंचने की संभावना नहीं है और वह दूसरे राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के खत्म होने का इंतजार कर सकती है जहां पार्टी धर्मनिरपेक्षता के आधार पर चुनाव प्रचार में जुटी हुई है।
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मुंबई: बीएमसी चुनाव में तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस किंगमेकर की भूमिका में नजर आने लगी है। मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक शिवसेना ने मेयर पद पर कब्जे के लिए कांग्रेस से समर्थन मांगा है। लेकिन कांग्रेस ने भी एक शर्त रख दी है। सूत्रों के अनुसार, नौ मार्च को होने वाले मेयर के चुनाव में समर्थन के बदले में उसने कांग्रेस को डिप्टी मेयर का पद देने का वादा किया है। अगर समीकरण ऐसे बनते हैं तो फिर राज्य सरकार में भाजपा और शिवसेना की दोस्ती पर खतरा मंडरा सकता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने शनिवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई थी। बैठक के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि शिवसेना फिलहाल राज्य सरकार में शामिल है। जब वह राज्य सरकार से खुद को अलग करेगी तब उसे बीएमसी में समर्थन देने पर विचार किया जाएगा। कांग्रेस ने एक तीर से दो निशाना साधा है। शिवसेना के समर्थन से ही फडणवीस सरकार सत्ता में है। अगर शिवसेना अपना समर्थन वापस ले लेती है तो फडणवीस सरकार अल्पमत में आ जाएगी। ऐसे में फडणवीस सरकार के सामने बहुमत का संकट आ जाएगा और बीएमसी में शिवसेना को समर्थन देकर वह भी सत्ता में आ जाएगी। इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आवास वर्षा पर कल देर रात हुई भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में नगर निगम चुनावों के बाद की स्थिति की समीक्षा की गयी और बीएमसी के विकल्पों पर विचार किया गया।
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मुंबई: निकाय चुनावों के दौरान 227 में से सिर्फ 31 सीटें जीत अपना सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस ने कहा है कि वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगी, जिससे भाजपा या शिवसेना को देश की सबसे अमीर महानगर पालिका पर कब्जा करने की कोशिश में मदद मिले। मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरूपम ने बताया, हम अपने वैचारिक रूख को कमजोर नहीं होने देंगे। लोगों ने हमें हराया है और विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है। हम उनके फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन मतदाताओं ने, एक दूसरे से बेहद कड़वाहट भरी जंग लड़ने वाले, भगवा दलों को भी सत्ता की चाभी नहीं सौंपी है। कांग्रेस इन दोनों दलों की मदद नहीं करेगी, लेकिन उनके बीच जारी जंग और बढ़ते मतभेद को देखना पसंद करेगी। उन्होंने कहा कि लोग अब ये देखेंगे कि कैसे पारदर्शिता के नाम पर वोट मांगने वाले दल खरीद—फरोख्त में जुटे हैं। भाजपा ने बीएमसी चुनावों के लिए पारदर्शिता को मुख्य मुद्दा बनाया था। मुंबई में आए खंडित जनादेश की वजह से भाजपा और शिवसेना के बीच समीकरण बदलने की उम्मीद है क्योंकि दोनों ही अपने दम पर बीएमसी पर शासन करने की स्थिति में नहीं हैं।
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