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नई दिल्ली (आशु सक्सेना): राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि महिला सम्मान केवल शब्दों में नहीं बल्कि व्यवहार में लाने की जरूरत है। किसी भी समाज के विकास का एक महत्वपूर्ण मानक वहां महिलाओं की स्थिति है। वैसे भी देश महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में अभिभावकों व शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की ऐसी शिक्षा दें कि वह सदैव महिलाओं की गरिमा के अनुकूल आचरण करें।

राष्ट्रपति ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है, जब बंगाल की घटना के बाद देश में महिला सुरक्षा व सम्मान को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हुई है। समाज का एक बड़ा वर्ग इन घटनाओं से विचलित भी है।

मुर्मु गुरुवार को शिक्षक दिवस के मौके पर आयोजित राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित कर रही थीं। इस मौके पर उन्होंने देश के करीब 82 शिक्षकों को 'राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार' से सम्मानित किया। इनमें स्कूलों में पढ़ाने वाले 50 शिक्षकों के अलावा उच्च शिक्षण संस्थानों और कौशल विकास में पढ़ाने वाले 16-16 शिक्षक भी शामिल थे।

मैं भी शिक्षक रही हूं। ऐसे में आज भी जब मैं शिक्षकों और बच्चों के बीच होती हूं, मेरे अंदर का शिक्षक फिर जीवंत हो जाता है। जीवन में आगे बढ़ना सफलता है, लेकिन जीवन की सार्थकता इस बात में निहित है कि हम दूसरों की भलाई के लिए काम करें। हमारे अंदर करुणा भाव हो। सात्विक जीवन ही वास्तव में सफल जीवन है। यह बात बच्चों को ठीक तरीके से समझना आपकी जिम्मेदारी है। आपको ऐसे नागरिक तैयार करने हैं, जो शिक्षित होने के साथ संवेदनशील, ईमानदार और उद्यमी भी हों।

शिक्षक छात्रों के जीवन में छोड़ता है अमिट छाप

राष्ट्रपति ने आगे कहा कि एक शिक्षक अपने आचरण और विचारों से विद्यार्थियों के जीवन में अमिट छाप छोड़ सकता है। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व गुरु रवींद्र नाथ टैगोर को भी याद किया। उन्होंने गांधी जी का एक कथन सभी को सुनाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें शिक्षकों ने पुस्तकों से जो कुछ पढ़ाया सिखाया, वह उन्हें बहुत कम याद रहा, लेकिन किताबों से हट कर जो कुछ सिखाया था वह उन्हें बहुत याद रहा।

राष्ट्रपति ने शिक्षकों की तुलना एक अच्छे मूर्तिकार से की। कहा-मूर्तिकार मिट्टी से मूर्ति बनाता है। एक ही तरह की मिट्टी से कोई मूर्तिकार बहुत ही खूब सूरत मूर्ति बनाता है, दूसरा मूर्तिकार सामान्य मूर्ति बनाता है। मिट्टी वही है लेकिन प्रतिमाओं में अंतर है। यह अंतर मूर्तिकार की कला और निष्ठा के कारण होता है। इस मौके पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी और सुकांत मजूमदार भी मौजूद थे।

बच्चे यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं करते है तो शिक्षण व्यवस्था और शिक्षक जिम्मेदार

राष्ट्रपति ने कहा कि कोई बच्चा यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है, तो इनमें शिक्षण व्यवस्था और शिक्षकों की ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी होती है। किसी भी व्यक्ति की सफलता में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है। उन्होंने कहा कि शिक्षण कार्य एक नौकरी नहीं है, बल्कि मानव निर्माण का एक पवित्र अभियान है। उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वह अपने ज्ञानार्जन की प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखें। इससे आपका अध्यापन अधिक रूचिकर और प्रासंगिक बना रहेगा। जो छात्र आप तैयार कर रहे हैं, वहीं विकसित भारत का नेतृत्व करेंगे। ऐसे में विकसित मानसिकता वाले शिक्षक ही विकसित राष्ट्र बनाने वाले नागरिकों की निर्माण कर सकते हैं।

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