नई दिल्ली: राजनीतिक संकट से जूझ रहे अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने की केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश को कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने बताया, ‘हमने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में याचिका दायर की है।’ उन्होंने बताया कि प्रदेश कांग्रेस के मुख्य सचेतक बामंग फेलिक्स ने यह याचिका दायर की है और इस पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया गया है। एक अन्य वकील ने कहा, ‘हम डिप्टी रजिस्ट्रार से सूचना का इंतजार कर रहे हैं जो याचिका प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश करेंगे।’ याचिका में अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने की रिपोर्ट और केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश को चुनौती दी गई है।
इससे पहले, दिन में कांग्रेस पार्टी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रयास को विफल करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अनुरोध करने का निश्चय किया। कांग्रेस द्वारा नई याचिका दायर करना महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ पहले ही राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों के दायरे से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों पर गौर कर रही है। अरुणाचल प्रदेश में नबम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को लेकर एक महीने से गतिरोध बना हुआ है। पहले कांग्रेस के विद्रोही विधायकों और भाजपा सदस्यों द्वारा अध्यक्ष पद से कथित रूप से हटाए गए विधानसभा अध्यक्ष नबम रेबिया ने याचिका दायर की थी। नबम को 16 दिसंबर, को ईटानगर के सामुदायिक कक्ष में आयोजित विधानसभा सत्र में अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। नबम रेबिया ने अपनी याचिका में सरकार की सलाह के बगैर ही विधानसभा का सत्र आहूत करने के राज्यपाल के अधिकार सहित कई कानूनी मुद्दे न्यायालय के समक्ष निर्णय के लिए उठाए हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह के बगैर ही विधानसभा के सत्र का कार्यक्रम 14 जनवरी की बजाय 16 दिसंबर कर दिया था। अरुणाचल प्रदेश की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 47 सदस्य थे लेकिन इसके 21 सदस्यों ने विद्रोह कर दिया। भाजपा के विधायकों ने नबम तुकी की सरकार को अपदस्थ करने के विद्रोही विधायकों के प्रयास का समर्थन किया था। चार दिन बाद अध्यक्ष ने कांग्रेस के 14 विद्रोही सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया था। इसके बाद, राज्यपाल ने 16 दिसंबर को विधान सभा का सत्र बुलाया जिसमें उपाध्यक्ष ने इन 14 विधायकों को अयोग्य घोषित करने वाला आदेश निरस्त किया और फिर रेबिया को अध्यक्ष पद से हटा दिया। विधानसभा का यह सत्र ईटानगर के सामुदायिक केन्द्र में आयोजित किया गया था। राज्यपाल और उपाध्यक्ष के तमाम फैसलों को रेबिया ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसने अंतरिम आदेश के तहत इन फैसलों को एक फरवरी तक के लिए निलंबित कर दिया था।