ताज़ा खबरें
पर्यावरण निधि के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
चंडीगढ़ नहीं पहुंच पाए किसान, पंजाब में जगह-जगह किसानों ने दिया धरना
अबू आजमी को एकबार यूपी भेज दो, उपचार हम कर देंगे: सीएम योगी

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट से सोमवार को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को झटका लगा है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के ओबीसी की 17 जातियों को अनूसूचित जाति में डालने के फैसले पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को गलत मानते हुए प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार सिंह से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों को बदलाव का अधिकार नहीं है, केवल संसद ही एससी/एसटी जाति में बदलाव कर सकती है।

बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने यूपी सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिस पर सोमवार को जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सरकार के फैसले को गलत मानते हुए कहा कि केंद्र व राज्य सरकार को इसका संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जून के अंत में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया था।

प्रदेश के प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह ने इस बाबत सभी मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को जरूरी निर्देश जारी करते हुए कहा था कि इन 17 पिछड़ी जातियों को अब हर जिले में अनुसूचित जाति के प्रमाण-पत्र जारी किए जाएं। यह जातियां थीं-कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम,तुरहा, गोड़िया, माझी और मछुआ।

यूपी सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था: केंद्र

वहीं, इसे लेकर केंद्र सरकार ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना, अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए था। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कहा था कि यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए।

शून्यकाल में यह मुद्दा बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने उठाया था। उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख