लखनऊ: लागत मूल्य तक नहीं मिलने से नाराज किसानों ने शनिवार की सुबह राजभवन, विधान भवन, एनेक्सी (मुख्यमंत्री सचिवालय) के सामने कई बोरे आलू फेंक दिए।
किसानों के इस अचानक कदम से शासन-प्रशासन में हड़कंप मच गया। तत्काल मुख्यमंत्री सचिवालय और मुख्य सचिव से लेकर कृषि उत्पादन आयुक्त व उद्यान एवं कृषि विपणन के प्रमुख सचिवों ने जिलाधिकारी से जानकारी लेनी शुरू कर दी। उद्यान व कृषि विपणन से जुड़े मंत्रियों की ओर से भी हर जिम्मेदार से पूरे घटनाक्रम के बारे में सूचना मांगी जाने लगी। उद्यान निदेशक एसपी जोशी ने तत्काल अपने दफ्तर पहुंचकर सभी को बारी-बारी से ब्रीफ करना शुरू किया।
उन्होंने कहा कि कोल्ड स्टोरों से लखभग120 लाख कुंतल आलू निकल चुके हैं और वे करीब-करीब खाली हो चुके हैं। बाजारों में नया आलू आना शुरू हो चुका है लिहाजा आलू का लागत मूल्य फिलहाल कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जो आलू विधानसभा, राजभवन, एनेक्सी व अन्य स्थानों पर किसानों ने फैलाए हैं या फेंके हैं वह खराब आलू था और सम्भवत: कोल्ड स्टोरों से बाहर किया गया व अनुपयोगी था।
किसानों का कहना है
लखनऊ में महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के सामने विरोध स्वरूप आलू फैलाने वाले किसानों का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन के हरिनाम सिंह वर्मा ने किया। हिन्दुस्तान से उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसानों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। सरकार किसान हितैषी होने का दम भर रही है लेकिन किसानों को उनके उत्पाद का लागत मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने बीते अप्रैल में आलू खरीद शुरू की थी लेकिन कुछ किसानों को छोड़कर बाकी का आलू खरीदा नहीं गया। यही स्थिति धान व गन्ने की भी है। काश्तकारों को वाजिब दाम नहीं मिल रहे। किसान खस्ताहाल हो चुका है।
आलू खरीद के निर्णय में देरी से हुआ नुकसान
राज्य सरकार की ओर से अप्रैल में किसानों से सीधे आलू खरीदने का फैसला किया गया। प्रदेश के इतिहास में किसानों से आलू खरीदने का सरकार ने यह पहली बार निर्णय किया था। किसानों की शिकायत है कि उनके हित में उठाया गया यह एक अच्छा निर्णय थोड़ी देरी से लिया गया। अगर यही निर्णय मार्च महीने से पूर्व ले लिया गया होता तो आलू उत्पादक किसान इसका पूरा लाभ उठा पाते।
यह बात दीगर है कि सरकार 19 मार्च को ही बनी और उसके बाद सरकार ने आलू खरीद का फैसला कर खरीद शुरू की।अप्रैल तक ज्यादातर किसानों ने अपने आलू कोल्ड स्टोरों में रख दिए थे। जिसका बचा है वह आमतौर पर मानक से छोटा या बड़ा और दाग लगा था। ऐसे में जिसने कोल्ड स्टोरों में अपना आलू रख दिया वह निकालने को तैयार नहीं था क्योंकि उसे प्रति कुंतल दो से सवा दो सौ रुपये कोल्ड स्टोर को किराया देना पड़ता। वहीं उसे बोरे की कीमत 40 रुपये का भी भुगतान करना पड़ता। इसके बाद क्रय केन्द्र तक ले जाने के लिए भाड़ा अलग से देना होता। ऐसे में क्रय केन्द्रों पर आलू बेचना किसानों के लिए फायदे का सौदा नहीं था।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
आलू खरीद योजना के तहत किसानों से 12 हजार 937 कुंतल आलू खरीदे जा सके। खरीद का लक्ष्य एक लाख कुंतल था लेकिन जिस समय सरकार की ओर से आलू खरीदा जा रहा था, उस समय बाजार भाव बेहतर हो गया था। केन्द्र के निर्देश पर राज्य सरकार ने 487 रुपये प्रति कुंतल आलू की खरीद शुरू की तो बाजारों में आलू के भाव बढ़ गए और किसानों को खरीद केन्द्र से कहीं अधिक मूल्य मिलने लगे। सरकार भी यही उद्देश्य था कि किसानों को उनके आलू अधिक से अधिक दाम मिल सके।
प्रदेश में आलू उत्पादन की स्थिति
- यूपी सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है
- यहां देश का 35 से 38 फीसदी आलू पैदा होता है।
- वर्ष 2016 में प्रदेश में 160 लाख टन से अधिक आलू का उत्पादन हुआ था
- प्रदेश में आलू की कुल भण्डारण की क्षमता 120.29 लाख टन है।
- प्रदेश में सरकार-सहकारी व निजी क्षेत्र की कुल 1710 कोल्ट स्टोर हैं।
- इनमें से सहकारी क्षेत्र के करीब 42 कोल्ड स्टोर बन्द पड़े हैं।
- मण्डी में आलू का थोक मूल्य- पुराना- 500-550 रुपये कुंतल
- मण्डी में आलू का थोक मूल्य- नया- 550 से 650 रुपये कुंतल
-फुटकर में पुराने आलू का मूल्य - प्रतिकिलो-20 रुपये
- फुटकर में नए आलू का मूल्य - प्रतिकिलो- 12-14 रुपये
इन चार एजेन्सियों को लगाया गया था आलू क्रय के लिए
प्रदेश में पीसीएफ, यूपी एग्रो, उत्तर प्रदेश औद्यानिक विपणन संघ(हॉफेड) तथा उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ के कुल 41 क्रय केन्द्रों पर आलू खरीदा गया था।
प्रदेश के आलू उत्पादन करने वाले प्रदेश के प्रमुख जिले
फिरोजाबाद, आगरा, फर्रुखाबाद, बुलन्दशहर, कन्नौज, अलीगढ़, कानपुर,बदायूं, बरेली, इलाहाबाद, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ,फैजाबाद, बाराबंकी, सुलतानपुर तथा गोरखपुर