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अहमदाबाद: एक सुनवाई अदालत के फैसले को पलटते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने 2002 में जिले के वीरमगाम कस्बे में भड़के दंगे के मामले में सात लोगों को हत्या का दोषी करार दिया है। गोधरा कांड के बाद ये दंगे भड़के थे। उच्च न्यायालय ने हत्या के दोषी करार दिए गए इन सातों लोगों को 25 जुलाई को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है। 25 जुलाई को ही अदालत उन्हें सजा सुनाएगी। वीरमगाम कस्बे में हुए दंगे के मामले में कुल 10 आरोपी थे, जिसमें से दो को सुनवाई अदालत ने हत्या का दोषी करार दिया था और चार को हल्के आरोपों में दोषी ठहराया गया था, जबकि चार अन्य को बरी कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत के उस आदेश को भी बरकरार रखा, जिसके तहत दो आरोपियों को हत्या का दोषी करार दिया गया था और एक अन्य आरोपी देवाभाई सामतभाई भारवाड़ को बरी कर दिया था। इस निर्णय से, न्यायमूर्ति हर्ष देवानी और न्यायमूर्ति बिरेन वैष्णव ने सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में कुल नौ लोगों को हत्या के जुर्म में दोषी करार दिया है, जबकि एक को बरी कर दिया है। दंगे के इस मामले में तीन लोग मारे गए थे। अदालत 25 जुलाई को दोषियों की सजा की अवधि पर फैसला सुनाएगी।

उच्च न्यायालय की ओर से हत्या के दोषी करार दिए गए आरोपियों के नाम हैं- सतभाई उर्फ हैदर गेला भारवाड़, नाराणभाई सामंतभाई भारवाड़, उदाजी रणछोड़भाई ठाकोर, वालाभाई गेलाभाई भारवाड़, विट्ठल उर्फ कुचियो मोती भारवाड़, मूलाभाई गेलाभाई भारवाड़ और मेराभाई गेलाभाई भारवाड़। आरोपियों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश), 323 (अपनी मर्जी से नुकसान पहुंचाना), 324 (अपनी मर्जी से खतरनाक हथियारों से नुकसान पहुंचाना), 325 और 326 (गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाना) के तहत दोषी करार दिया गया था। दंगे का यह मामला 28 फरवरी 2002 का है। इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन को आग के हवाले कर दिया गया था, जिसमें 59 कार सेवकों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद समूचे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। करीब 40 लोगों की भीड़ ने वीरमगाम के एक मुस्लिम इलाके पर धारदार हथियारों से हमला कर दिया था और एक दरगाह को नष्ट करने की कोशिश की थी। जब मुस्लिम निवासियों ने दंगाइयों को ऐसा करने से रोका तो उन पर हमला किया गया और तीन लोगों की हत्या कर दी गई । इस घटना के चश्मदीद गवाह दोस्तमोहम्मद भट्टी ने उच्च न्यायालय से इस मामले की और जांच कराने की मांग की थी। इसके बाद उच्च न्यायालय ने 2010 में अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) संदीप सिंह को मामले की जांच फिर से करने के निर्देश दिए थे।

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