हैदराबाद: प्रसिद्ध वैज्ञानिक और परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) के सदस्य एम आर श्रीनिवासन ने कहा है कि केंद्र का परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के मुद्दे पर जोर देना अनावश्यक, अवांछित और गलत सलाह थी। उन्होंने कहा कि यदि इस बारे में परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) से सलाह ली जाती तो वह सरकार को इससे बचने को कहता। एईसी परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के अधीन आता है। एईसी देश में परमाणु ऊर्जा संबंधी गतिविधियां देखता है। एईसी के पूर्व प्रमुख श्रीनिवासन ने कहा कि एनएसजी की सदस्यता से भारत के परमाणु व्यापार पर कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि भारत ने रियेक्टरों और यूरेनियम की आपूर्ति के लिए दूसरों देशों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किया हुआ है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, 'भारत ने एनएसजी में प्रवेश को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। यह बिल्कुल अनावश्यक था क्योंकि 2008 में मिली छूट से हम पहले ही परमाणु उन्नत देशों के साथ परमाणु व्यापार करने में सक्षम हैं और हम रियेक्टर परियोजनाओं के लिए पहले ही रूस, फ्रांस एवं अमेरिका से समझौते कर चुके हैं।' श्रीनिवासन ने कहा कि भारत ने कजाकिस्तान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के साथ यूरेनियम की खरीद के लिए समझौता भी किया हुआ है।
पद्मभूषण से सम्मानित वैज्ञानिक ने कहा कि एनएसजी सदस्य बनने में नाकामी का देश के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत के पास 'रियेक्टरों के डिजाइनिंग एवं निर्माण और ईंधन निर्माण, प्रसंस्करण वगैरह के लिए' अपनी खुद की क्षमता है। श्रीनिवासन ने कहा, 'जमीनी स्तर पर इससे कोई अंतर नहीं आएगा। हमें पहले ही छूट हासिल है। हम महत्वपूर्ण देशों और यूरेनियम की आपूर्ति में सक्षम देशों के साथ पहले ही सहयोग कर रहे हैं। हमें खुद को शर्मिंदा कराने की जरूरत नहीं थी। बदकिस्मती से हमारे आत्मसम्मान को इस नाकामी से चोट पहुंची।' 86 साल के वैज्ञानिक ने कहा, 'अगर मामला पहले परमाणु उर्जा आयोग के पास आता, जिसका मैं अब भी सदस्य हूं, और अगर सरकार ने पूछा होता कि क्या हमें इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहिए तो मैं ऐसा ही कहता कि यह मुद्दा न उठाएं।' उन्होंने कहा, 'लेकिन परमाणु उर्जा आयोग के पास यह मामला नहीं आया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे विदेश कार्यालय, विदेश मंत्रालय का मामला माना गया। कई दिनों तक (एनएसजी की सदस्यता के लिए देश के कूटनीतिक जोर का) अनावश्यक नाटक चला।' उन्होंने कहा, 'क्या हमें इतनी कोशिशें करनी चाहिए थीं, एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन मांगने के लिए प्रधानमंत्री को इतने देशों का दौरा करना चाहिए था? विदेश कार्यालय में जिन्होंने मूल्यांकन किया, या तो उन्होंने मूल्यांकन किया और उनकी मान्यताएं बना ली गयीं या मूल्यांकन सही तरह से नहीं किया गया। मैं नाखुश हूं कि हमने एनएसजी की सदस्यता को इतना महत्व दिया।’ श्रीनिवासन ने कहा कि समूह का सदस्य बनने को लेकर गैरजरूरी अपेक्षाएं पैदा की गयीं और भारत सरकार के सर्वोच्च स्तर पर इतनी राजनीतिक पूंजी तथा प्रधानमंत्री को इस उद्देश्य के लिए तैनात किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इससे बिल्कुल बचना चाहिए था और हम इस शर्मिंदगी से बच सकते थे।’’ श्रीनिवासन ने कहा कि चीन तथा दूसरे देशों के भारत की सदस्यता पर आपत्ति करने के साथ भारत को मिजाज भांप लेना चाहिए था। उन्होंने साथ ही मीडिया के एनएसजी को एक ‘प्रतिष्ठित समूह’ बताने पर भी सवाल किया। प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘45 सदस्यों का एनएसजी एक प्रतिष्ठित समूह कैसे हो सकता है? न्यूजीलैंड, आयरलैंड जैसे देश इसके सदस्य हैं..ये ऐसे सदस्य हैं जिनका किसी तरह का कोई परमाणु कार्यक्रम नहीं है।’’