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सुप्रीम कोर्ट मेंं सिब्बल बोले- वक्फ कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बुधवार (16 अप्रैल) को नए वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा। कोर्ट में कुल 73 याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें से 10 याचिकाएं आज की सुनवाई के लिए तय की गई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि नया कानून सही नहीं है और इससे मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कानून में बदलाव के बाद वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन ठीक तरीके से नहीं होगा और यह एकतरफा हो सकता है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज दोपहर 2 बजे शुरू होगी। तीन जजों की बेंच जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन इस पर सुनवाई करेगी। हाल ही में केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में बदलाव किया था, जिसे अब लागू किया जा चुका है। इस कानून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद 5 अप्रैल को संसद में पास किया गया था। इस कानून को लेकर देश के कुछ हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन हुए हैं और कुछ जगहों पर हिंसा की घटनाएं भी सामने आई हैं।

पास हो चुका है बिल

इस कानून को पहले लोकसभा में पास किया गया, जहां 288 सांसदों ने इसके पक्ष में और 232 ने विरोध में वोट दिया। इसके बाद राज्यसभा में भी यह बिल पास हुआ, जहां 128 सांसदों ने इसका समर्थन किया और 95 ने विरोध किया। जब संसद में इस बिल पर बहस हो रही थी, तब विपक्ष की ओर से जोरदार विरोध देखने को मिला। कई नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह कानून लोगों की संपत्तियां जबरन लेने की कोशिश है।

याचिका में उठाए गए हैं कई मुद्दे

वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ जो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं, उनमें कई अहम मुद्दे उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने खासतौर पर कुछ मुख्य बिंदुओं पर जोर दिया है। उनका कहना है कि इस नए कानून में वक्फ बोर्ड के चुनावी सिस्टम को खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा, अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम को भी सदस्य बनाया जा सकता है। इससे मुस्लिम समुदाय को यह चिंता है कि उनके धार्मिक और सामुदायिक संपत्तियों का सही तरीके से प्रबंधन नहीं हो पाएगा और उनका आत्म-निर्णय का अधिकार भी प्रभावित होगा।

कानून के मुताबिक, अब वक्फ संपत्तियों पर कार्यकारी अधिकारियों का नियंत्रण और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। इससे यह डर है कि सरकार कभी भी वक्फ संपत्तियों पर अपना अधिकार जमा सकती है या मनमाने फैसले ले सकती है। एक और बड़ा मुद्दा यह है कि नए कानून में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों को वक्फ संपत्ति बनाने से रोका गया है, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है।

इस अधिनियम में वक्फ की परिभाषा को भी बदला गया है, जिससे 'वक्फ बाय यूजर्स' यानि परंपरागत तरीके से बनी वक्फ संपत्तियों की कानूनी मान्यता खतरे में पड़ सकती है। इससे पुराने नियम और सुरक्षा कमजोर हो सकते हैं। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि कई वक्फ संपत्तियां जो सालों से मौखिक या बिना दस्तावेज़ों के चली आ रही हैं, वे अब अवैध मानी जा सकती हैं। उनका आरोप है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश है।

किसके द्वारा चुनौती दी जा रही है?

वक्फ कानून में किए गए बदलावों के खिलाफ देशभर की कई राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), सीपीआई, वाईएसआर कांग्रेस (वाईएसआरसीपी) जैसे दल शामिल हैं. इनके साथ ही एक्टर विजय की पार्टी टीवीके, आरजेडी, जेडीयू, एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रतिनिधियों ने भी इस कानून का विरोध करते हुए याचिका दी है।

दो हिंदू पक्षों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। वकील हरि शंकर जैन ने अपनी याचिका में कहा है कि इस कानून की कुछ धाराएं गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन और हिंदू धार्मिक स्थलों पर कब्जा करने का रास्ता खोल सकती हैं। नोएडा की पारुल खेरा ने भी इसी तरह की चिंता जताते हुए याचिका दाखिल की है। धार्मिक संगठनों में भी इस कानून के खिलाफ आवाज उठाई गई है। सामस्थ केरला जमीयथुल उलमा, अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदानी का इस मामले में बड़ा योगदान माना जा रहा है।

याचिकाकर्ता बनाम केंद्र सरकार

जहां एक तरफ याचिकाकर्ता वक्फ कानून में किए गए संशोधन का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार इस कानून को जरूरी और फायदेमंद बता रही है। सरकार का कहना है कि यह बदलाव वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता (स्पष्टता) और जवाबदेही (उत्तरदायित्व) लाने के लिए जरूरी हैं। सरकार का मानना है कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार होगा और भ्रष्टाचार की संभावना कम हो जाएगी। इसके अलावा सात राज्यों ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस कानून का समर्थन किया है। इन राज्यों का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुसार है, किसी के साथ भेदभाव नहीं करता और प्रशासन को बेहतर बनाने में मदद करेगा।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक "केविएट" भी दाखिल किया है। केविएट एक कानूनी नोटिस होता है, जिससे कोर्ट को यह बताना होता है कि अगर इस मामले में कोई भी आदेश दिया जाए, तो पहले सरकार की बात भी सुनी जाए। इसका मतलब है कि सरकार इस कानून के बचाव में पूरी तरह तैयार है।

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