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चंडीगढ़/रोहतक (हरियाणा): लोकसभा चुनावों की गहमागमही के बीच मंगलवार को हरियाणा की राजनीतिक में एक बड़ा नाटकीय घटनाक्रम सामने आया है। बदले समीकरणों के चलते तीन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने और कांग्रेस को लोकसभा व विधानसभा चुनाव में समर्थन देने की घोषणा की। चरखी दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान, पुंडरी से निर्दलीय विधायक रणधीर गोलन और नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर ने रोहतक में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ प्रेस वार्ता कर इसका एलान किया। तीनों विधायकों ने हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को समर्थन वापसी के लिए पत्र भी लिखा है।

निर्दलीय विधायकों के इस कदम से सरकार अल्पमत में तो आ गई है, लेकिन उस कोई संकट नहीं है। क्योंकि जजपा से गठबंधन टूटने के बाद दो महीने पहले ही 12 मार्च को मनोहर लाल के स्थान पर नायब सैनी ने सीएम के तौर पर शपथ ली थी और 13 मार्च को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था और इसमें सरकार ने विश्वास मत हासिल किया था।

इससे पहले बजट सत्र के दौरान कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन जजपा और निर्दलीय विधायकों के सहारे मनोहर लाल विश्वास मत हासिल करने में कामयाब रहे थे।

नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दावा किया है कि निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने से अब सरकार अल्पमत में आ गई है। इसलिए तुरंत प्रभाव से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए और विधानसभा चुनाव कराए जाएं। उधर, भाजपा का दावा है कि सरकार अल्पमत में नहीं आई है और न ही सरकार को कोई खतरा है। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि अभी उनके पास सरकार के अल्पमत में होने की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।

प्रदेश हित में नायब सैनी सरकार से वापस लिया समर्थन: गोलन

पूंडरी से विधायक रणधीर गोलन ने कहा कि नायब सैनी सरकार से समर्थन वापस लेते हैं। आगे भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा का ईमानदारी से साथ दिया। महंगाई व बेरोजगारी चरम पर है। प्रदेश हित में समर्थन वापस ले रहे हैं। हालांकि मैंने अपने हलके में इतना काम करवाया, मुख्यमंत्री भी अपने हलके में नहीं करवा सके।

जब सेनापति ही नहीं, तो समर्थन कैसा: गोंदर

नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर ने कहा कि पांच विधायकों नयनपाल, सोमबीर सांगवान, रणधीर गोलन व राकेश दौलताबाद और उन्होंने खुद लोटे में नमक डालकर निर्णय लिया था कि जब तक मनोहर लाल मुख्यमंत्री हैं, तब तक समर्थन करेंगे। अब सेनापति ही नहीं है, साथ ही किसानों व सरपंचों के हित में सरकार से समर्थन वापस लेता हूं।

विधायक राकेश दौलताबाद को भी आना था: सांगवान

चरखी दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान ने कहा कि चार निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस लेने व कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया था। गुरुग्राम के बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक राकेश दौलताबाद को भी आना था। किसी कारण से वे नहीं आ सके। जाति व धर्म आधारित राजनीति बर्दाश्त नहीं हुई, इसलिए मैं सरकार से समर्थन वापस ले रहा हूं।

सरकार के पास बहुमत से दो विधायक कम, विपक्ष में 45 विधायक

90 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए सरकार को आधे से अधिक विधायकों की जरूरत होती है। सामान्य तौर पर भाजपा को 46 विधायकों की जरूरत है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निर्दलीय रणजीत सिंह चौटाला विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। अब कुल विधायकों संख्या 88 रह गई है। इसलिए भाजपा को बहुमत के लिए 45 विधायकों की जरूरत है। पहले 7 निर्दलीय विधायकों में से महम से विधायक बलराज कुंडू को छोड़कर सभी छह विधायकों का सरकार को समर्थन था, लेकिन अब तीन ने समर्थन वापस ले लिया है। भाजपा के पास 40 विधायक हैं, जबकि दो निर्दलीय बादशाहपुर से राकेश दौलताबाद, पृथला से नयनपाल रावत और एक हलोपा विधायक गोपाल कांडा का समर्थन है। ऐसे में कुल संख्या 43 बनती है। यह संख्या बहुमत से 2 कम है। वहीं, विपक्ष के विधायकों का आंकड़ा 45 पहुंच गया है। इसमें कांग्रेस के 30, जजपा के 10, निर्दलीय 4 और इनेलो के एक विधायक शामिल हैं।

विधानसभा में दलीय स्थिति

भाजपा 40

कांग्रेस 30

जजपा 10

निर्दलीय 6

हलोपा 1

इनेलो 1

(नोट: मनोहर लाल और निर्दलीय रणजीत सिंह विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं।)

सरकार के पाले में 47 विधायक: प्रवीन आत्रेय

मुख्यमंत्री के मीडिया सचिव प्रवीन आत्रेय ने कहा कि प्रदेश सरकार अल्पमत में नहीं है। आज भी सरकार के पास 47 विधायकों का समर्थन है। इनमें भाजपा के 40 विधायक, 2 निर्दलीय राकेश दौलताबाद और नयनपाल रावत व हलोपा के विधायक गोपाल कांडा सरकार के साथ हैं। इनके अलावा जजपा के नारनौंद से विधायक रामकुमार गौतम, नरवाना विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा, टोहाना से विधायक देवेंद्र बबली और जोगीराम सिहाग का भी सरकार को समर्थन है। वैसे भी कानूनन सरकार के विरुद्ध छह महीन तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता, क्योंकि मार्च में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाकर मुंह की खा चुकी है। कांग्रेस केवल लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन जनता हकीकत जानती है।

अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विस सत्र बुलाना जरूरी

हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव राम नारायण यादव ने बताया कि छह माह से पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है, ऐसा कोई नियम नहीं है। यह केवल एक धारणा है, क्योंकि विधानसभा का सत्र छह माह में बुलाने का नियम है। अविश्वास प्रस्ताव सत्र के दौरान ही लाया जा सकता है, जबकि विश्वास मत हासिल करने के लिए राज्यपाल कभी भी कह सकते हैं। हालांकि, इसके लिए विपक्ष को राज्यपाल के पास जाकर बताना होता है कि उनके पास बहुमत है। अगर राज्यपाल संतुष्ट होते हैं तो वह सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए कह सकते हैं और समय भी तय कर सकते हैं।

इच्छाएं पूरी करने को निर्दलीय विधायक कांग्रेस के पाले में गए: सीएम

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि विधायकों की कुछ इच्छाएं होती हैं। हर व्यक्ति कुछ इच्छा के साथ जुड़ा होता है। कांग्रेस आजकल इच्छाएं पूरी करने में लगी हुई है। हालांकि, लोग यह सब समझ रहे हैं कि किसकी इच्छा क्या है। कांग्रेस को जनता की इच्छाओं से मतलब नहीं है, उनको तो अपनी इच्छाओं से मतलब है।

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