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नई दिल्ली (आशु सक्सेना): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार की एक तरफा घोषणा करने के बाद ये साफ़ हो गया है कि इस बार भी देश के सर्वोच्च पद का फैसला मतदान से ही होगा। राष्ट्रपति चुनाव पद के पिछले दो चुनावों का फैसला मतदान से हुआ है। एनडीए की बाजपाई सरकार ने इस सर्वोच्च पद के चुनाव के मौके पर मिसाइल मेन एपीजे अब्दुल कलाम को आम सहमति से देश का पहला नागरिक चुना था। चुनावी जोड़ तोड़ के लिहाज़ से एनडीए के पास बहुमत का आंकड़ा नज़र आ रहा है। जाहिरानातौर पर पीएम मोदी ने बहुमत की जोड़ तोड़ अपने पक्ष में होने के बाद ही ये एकतरफा फैसला किया होगा। लिहाज़ा अब विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि देश के इस सर्वोच्च पद की गरिमा की बहस को दिशा देने के लिए लड़ेगा। दरअसल एपीजे अब्दुल कलाम के बाद हुए दोनों चुनावों में प्रमुख विपक्ष एनडीए ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। हांलाकि दोनों ही चुनावों में बहुमत की जोड़ तोड़ से साफ़ था कि बहुमत यूपीए के पक्ष में हैं। 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने एनडीए के बैनरतले पार्टी उम्मीदवार उप राष्ट्रपति भैंरों सिंह शेखावत को चुनाव मैदान में उतारा था, एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नांडिस को चुनाव प्रचार अभियान की बागडोर सौंपी गई थी। इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा था। एनडीए के घटक शिवसेना ने यूपीए उम्मीदवार प्रतिभा देवी पाटिल का समर्थन किया था। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार एक महिला उम्मीदवार से हुई। देश के सर्वोच्च पद पर पहली बार एक महिला राष्ट्रपति आसीन हुई।
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(संजीव आचार्य) तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्तनशीं था, उसको भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था. शुक्रवार की शाम दिल्ली के प्रेस क्लब में इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक और लेखक अरुण शौरी ने जब पाकिस्तानी शायर हबीब जालिब का ये शेर पढ़ा तो वहाँ मौजूद 500 से ज़्यादा पत्रकारों को मालूम था कि शेर दरअसल किसके लिए पढ़ा गया है। उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट से शेर का स्वागत किया। प्राइवेट टीवी चैनल एनडीटीवी के प्रोमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के घर और दफ़्तरों पर पिछले हफ़्ते सीबीआई के छापों के ख़िलाफ़ दिल्ली के पत्रकारों की ये दुर्लभ बैठक थी और अरुण शौरी के सीधे निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। हिंदुत्व की राजनीति के वो अकेले बुद्धिजीवी हैं जो खुले मंच पर नरेंद्र मोदी का नाम लेकर उनकी आलोचना करते हैं और मज़ाक उड़ाते हैं। पिछले तीन बरस में पत्रकारों को मोदी के साथ कई बार सेल्फ़ी खींचने की होड़ लगाते देखा गया है, लेकिन दिल्ली में उनकी ओर से विरोध की ये पहली तीखी आवाज़ थी। राम गए, रावण गए, ये भी जाएंगे अपनी बात की शुरुआत में अरुण शौरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया कि "मोदी के कारण इतनी बड़ी संख्या में पुराने दोस्त यहाँ इकट्ठा हुए हैं।" उन्होंने ये बातें प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ से सिर्फ़ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर प्रेस क्लब में कहीं।और अगर मोदी की टीम ने इस बैठक का नोटिस नहीं लिया या इसको उसी तरह अपने ठहाके लगाकर हवा में उड़ा दिया जैसा कि वो राहुल गाँधी की राजनीति को हवा में उड़ाते हैं।
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(संदीप ठाकुर) गांवाें में जंगली जानवराें से फसल काे हाेने वाले नुकसान से बचाने के लिए किसान जाेर जाेर से टीन,टप्पर,ढाेल या नगाड़े बजाते हैं। इसके शाेर से जानवर खेताें तक नहीं पहुंच पाते हैं। वही हाल माेदी सरकार के तीन साल का है। रेडियाे,टीवी,पत्र,पत्रिकाएं व अन्य संचार माध्यमाें के जरिए प्रधानमंत्री माेदी व उनके मंत्रीगण उपलब्धियाें का ढ़िढाेरा जाेर जाेर से पीट रहे हैं आैर लाेगाें काे बता रहे हैं कि जाे काम 70 सालाें में नहीं हुआ वह 3 साल में हाे गया है। ढ़िढाेरा पीटाे अभियान ने जनता के आंखाें व मन पर एक एेसी छद्म पट्टी चढ़ा दी है कि उसे भी लगता है कि बात में ताे दम है। काम ताे हाे रहा है। विकास हाे रहा है। देश में खुशहाली आ रही है। जीवन स्तर सुधर रहा है। अच्छे जिन आने वाले हैं। लेकिन सही मायनाें में अभी तक एेसा कुछ नहीं हुआ। पिछले 10 दिनाें में मैंने करीब एक दर्जन मंत्रियाें की प्रेस कांफ्रेंस अटेंड की है। मेरा मानना है कि 3 साल की उपलब्धि के नाम पर मंत्रियाें के पास बताने काे कुछ नहीं है। अब लाख टके का सवाल है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की तीन साल की असली उपलब्धियां क्या हैं? स्कूली बच्चाें के रिजल्ट अच्छे हाे रहे हैं,खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं,इसरो के वैज्ञानिक सेटेलाइट छोड़ रहे हैं,सीमा पर सैनिक मार या मर रहे हैं, पानी-बिजली की उपलब्धता बढ़ गई है या दुकानें अधिक खुल रही हैं...क्या एेसे कामाें काे मोदी सरकार की उपलब्धि माना जा सकता हैं? दरअसल यह ताे सरकारी पॉलिसी के निरंतरता के कारण है।
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महोदय,एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया। मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई। भारत माता आज शोकमग्ना है – उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है – उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया। विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के सम्बंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे।
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