चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में कई परिवार अपना गढ़ बचाने में सफल रहे तो कुछ परिवारों को झटका लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल का परिवार प्रदेश का सबसे बड़ा सियासी परिवार है। इस चुनाव में देवीलाल के कुनबे के आधे दर्जन से ज्यादा सदस्य चुनाव मैदान में थे। इनमें से केवल दो को जीत मिली। इसी तरह हरियाणा के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के परिवार के दो सदस्य इस बार मैदान में थे। इनमें से एक को जीत मिली तो एक को हार का सामना करना पड़ा। एक और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के गढ़ में पारिवारिक लड़ाई में उनकी पोती को जीत तो पोते को हार मिली। वहीं, हुड्डा परिवार, सुरजेवाला परिवार, जिंदल परिवार, बिरेंद्र राव परिवार के वंशज अपनी सीटों पर जीतने में सफल रहे।
देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल का परिवार के आठ सदस्य पांच अलग-अलग सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इन सीटों में डबवाली, उचाना कलां, ऐलनाबाद, रानिया और फतेहबाद। इनमें से केवल डबवाली और रानिया में ही परिवार के सदस्यों को जीत मिली। दोनों ही सीटों पर परिवार के सदस्य ही आमने-सामने थे।
डबवाली में आदित्य देवीलाल जीते
सिरसा जिले की डबवाली सीट पर भी मुकाबला देवीलाल के कुनबे के तीन सदस्यों में हुआ। कांग्रेस से अमित सिहाग, इनेलो से आदित्य देवीलाल और जजपा से दिग्विजय चौटाला एक-दूसरे के खिलाफ उतरे। डबवाली सीट पर पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल को जीत मिली। आदित्य देवीलाल डबवाली से इनेलो के टिकट पर मैदान में थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अमित सिहाग को हराया। सिहाग भी देवीलाल के कुनबे से आते हैं। इस सीट जजपा के टिकट पर दिग्विजय चौटाल उतरे थे। ओम प्रकाश चौटाला के पोते दिग्विजय यहां तीसरे स्थान पर खिसक गए। बाकी सीटों पर देवीलाल परिवार के सदस्यों को हार का सामना करना पड़ा। दिग्विजय सिंह चौटाला पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के भाई हैं। वहीं आदित्य, देवीलाल के सबसे छोटे बेटे जगदीश के बेटे हैं। 2019 में डबवाली में कांग्रेस के अमित सिहाग को जीत मिली थी। पिछली बार कांग्रेस के सिहाग ने भाजपा के टिकट पर उतरे आदित्य देवीलाल को 15647 मतों से शिकस्त दी थी जो अब इनेलो में हैं।
रानियां में पोता जीता, दादा तीसरे स्थान पर रहे
सिरसा जिले की एक अन्य सीट रानियां पर भी चुनावी जंग देवीलाल परिवार में हुई। रनिया से देवीलाल के पड़पोते और पार्टी के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला को जीत मिली है। इनेलो उम्मीदवार अर्जुन ने कांग्रेस के सर्व मित्र को 4,191 मत से हराया। वहीं निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे देवीलाल के बेटे रणजीत चौटाला तीसरे पायदान पर रहे। यानी रानियां में दादा-पोता आमने-सामने रहे।
2019 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर रणजीत चौटाला को जीत मिली थी। उन्होंने हरियाणा लोकहित पार्टी के गोबिंद कांडा को 19431 मतों से शिकस्त दी थी। लोकसभा चुनाव से पहले वह इस्तीफा देकर भाजपा में आए और चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए। इस विधानसभा चुनाव में रणजीत रानियां सीट से टिकट चाह रहे थे, लेकिन भाजपा से उन्हें टिकट नहीं मिला। इस बात से नाराज रणजीत ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और इसी सीट से निर्दलीय ताल ठोकी।
ऐलनाबाद में पहली बार हारे अभय चौटाला
हरियाणा में विधानसभा चुनाव में ऐलनाबाद कुछ खास सीटों में रही। चार बार के विधायक और देवीलाल के पोते इनेलो के अभय सिंह चौटाला इस सीट पर अपना चुनाव हार गए हैं। अभय अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पूर्व विधायक भरत सिंह बेनीवाल से 15,000 मत से हार गए। भरत बेनीवाल 2005 में कांग्रेस की टिकट पर दड़बा विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। राज्य के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला ऐलनाबाद सीट से पहली बार विधायक बने थे। ऐलनाबाद में अभय चौटाला पहली बार हारे हैं।
पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत की करारी हार
उचाना कलां सीट पर देवीलाल की चौथी पीढ़ी मैदान में थी। पिछले चुनाव में किंगमेकर बने दुष्यंत चौटाला उचाना कलां सीट से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें करारी हार मिली। बांगर बेल्ट में जींद जिले की उचाना कलां सीट की गिनती प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में की जा रही थी। यहां भाजपा के देवेंद्र चतर्भुज अत्री ने कांग्रेस के उम्मीदवार और पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह को मात्र 32 वोट से हराया। वहीं केवल 7950 वोट पाकर दुष्यंत चौटाला पांचवें नंबर पर रहे। 2019 में यहां जजपा की तरफ से पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को जीत मिली थी। उन्होंने तब भाजपा प्रत्याशी प्रेम लता को 47452 मतों से हराया था।
फतेहाबाद में देवीलाल के पोते की पत्नी हारीं
फतेहाबाद विधानसभा सीट से इनेलो के टिकट पर सुनैना चौटाल मैदान में थीं। देवीलाल के पोते रवि चौटाला की पत्नी सुनैना को लोकसभा चुनाव में भी हार मिली थी। रवि देवीलाल के बेटे प्रताप सिंह चौटाल के बेटे हैं। सुनैना फतेहाबाद में तीसरे स्थान पर रहीं। उन्हें 9681 वोट मिले और वो अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं।
बंसीलाल की सियासी विरासत में बहन ने भाई को हराया
हरियाणा की राजनीति में बात करते ही तीन 'लाल' का जिक्र जरूर आता है। इन्हीं में से एक बंसीलाल परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दो प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में उतरे। भिवानी जिले की तोशाम सीट पर हरियाणा के पूर्व सीएम बंसीलाल की पोते-पोती के बीच लड़ाई रही। तोशाम में चचेरे भाई-बहन अनिरुद्ध और श्रुति चौधरी आमने-सामने रहे। श्रुति ने भाई अनिरुद्ध को 14257 वोट से हरा दिया।
हरियाणा के पूर्व सीएम बंसीलाल की पोती श्रुति भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुकी हैं। वहीं, बंसीलाल के पोते हैं अनिरुद्ध चौधरी के पिता रणबीर महेंद्रा बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में तोशाम का मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच हुआ था। इस चुनाव में बंसीलाल की बहू किरण चौधरी ने शशि रंजन को 18,059 वोटों के अंतर से परास्त किया था। पिछली बार की विधायक किरण चौधरी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। हाल ही में किरण हरियाणा से भाजपा की राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुई हैं।
भजनलाल परिवार का क्या हुआ?
हरियाणा में भजनलाल परिवार की सियासत बेहद खास मानी जाती है। इस चुनाव में भी परिवार के दो सदस्य उतरे और इनमें से एक को जीत मिली तो दूसरे को हार का सामना करना पड़ा। आदमपुर सीट की बात करें तो यहां भजनलाल परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भव्य बिश्नोई पर थी। मौजूदा विधायक भव्य एक बार फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। कांग्रेस ने आदमपुर से नए चेहरे रिटायर्ड आईएएस चंद्रप्रकाश पर दांव खेला था और वो सफल रहा। भव्य यह चुनाव महज 1268 वोट से चुनाव हार गए। आदमपुर में भजनलाल परिवार 1968 से लगातार जीतता आ रहा था। 56 साल में पहली बार परिवार के किसी सदस्य को यहां हार का सामना करना पड़ा। आदमपुर में कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रप्रकाश को 65371 वोट मिले जबकि भाजपा के भव्य को 64103 वोट मिले।
भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन ने भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। चंद्रमोहन बिश्नोई पंचकूला सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार थे। पंचकूला में चंद्रमोहन ने भाजपा प्रत्याशी और स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता को 1997 वोट से हरा दिया। 1993 में भजनलाल परिवार के सदस्य चंद्रमोहन ने चुनावी राजनीति में कदम रखा था। 2005 में चंद्रमोहन बिश्नोई को राज्य के उपमुख्यमंत्री भी बने थे।
जिंदल परिवार की वापसी
हरियाणा में विधानसभा चुनाव में हिसार हाई प्रोफाइल सीटों में रही। यहां से देश की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल ने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के रामनिवास राड़ा को 18941 मत से हरा दिया। स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार डॉ. कमल गुप्ता तीसरे स्थान पर चले गए। दो बार के विधायक डॉ. कमल गुप्ता ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राम निवास राड़ा को 15,832 वोट से हराया था।
हिसार सीट पर जिंदल परिवार का प्रभाव रहा है। 1991 से 2024 तक यहां से जिंदल परिवार छह बार मैदान में आया और पांच जीता था। तीन बार ओपी जिंदल खुद जीते तो दो सावित्री जिंदल जीतीं थीं। 2014 के विधानसभा चुनाव में सावित्री को हार का सामना करना पड़ा था। 10 साल बाद चुनाव लड़ रहीं सावित्री जिंदल ने जीत के साथ चुनावी राजनीति में वापसी कर ली है।
राव परिवार का हाल
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुछ खास सीटों में महेंद्रगढ़ जिले की अटेली विधानसभा सीट भी शामिल है। ये वही सीट है जहां से कभी मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह जीते थे। इस चुनाव में भी राव राज परिवार की वंशज आरती राव उतरीं और जीत भी हासिल की। आरती ने विरोधी बसपा के अत्तर लाल को 3085 मत से हरा दिया।
आरती केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत की बेटी हैं। केंद्रीय मंत्री और छह बार के सांसद राव इंद्रजीत की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर थी। उनकी राजनीतिक वारिस व बेटी आरती राव महेंद्रगढ़ जिले की अटेली विधानसभा सीट से भाजपा की उम्मीदवार हैं। यह उनका पहला चुनाव है।
2019 के विधानसभा चुनाव में अटेली में मुकाबला भाजपा और बहुजन समाज पार्टी के बीच रहा था। भाजपा ने सीताराम को अपना उम्मीदवार बनाया था तो बसपा के टिकट पर अत्तरलाल उतरे थे। भाजपा यह चुनाव 18406 मत से जीतने में सफल रही थी।
हुड्डा परिवार का दबदबा कायम
हरियाणा विधानसभा चुनाव से गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा सीट भी खास रही। रोहतक जिले की इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक बार फिर मैदान में रहे। वहीं, जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्डा भाजपा की प्रत्याशी थीं। नतीजों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मंजू से काफी आगे हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाजपा के सतीश नांदल 58,312 वोट से हराया था।
दिलचस्प यह है कि यहां अपने पहले ही चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा और उनके पिता भी हारे थे। 1967 में बनी किलोई विधानसभा सीट पर जब पहली बार चुनाव हुए तो चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा कांग्रेस के टिकट पर उतरे थे। संविधान सभा के सदस्य रहे चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा को 1967 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1982 के विधानसभा चुनाव में रणबीर सिंह के बेटे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी अटेली सीट से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, 2000 के बाद यह सीट भूपेंद्र हुड्डा का गढ़ बन चुकी है। हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ता जा रहा है।
सुरजेवाला परिवार की वापसी
कैथल विधानसभा सीट की चुनावी जंग भी खास रही। यहां सुरजेवाला परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में थी। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के बेटे आदित्य कांग्रेस के प्रत्याशी थे जिन्होंने भाजपा के लीलाराम गुर्जर को हरा दिया है। 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी रणदीप सुरजेवाला भाजपा के लीलाराम गुर्जर से महज 1246 वोटों से हार गए थे। 25 साल के आदित्य नई विधानसभा के सबसे युवा विधायक होंगे। आदित्य से पहले उनके पिता रणदीप और दादा शमशेर सिंह सुरजेवाला कैथल सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।