नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा मुफ्त में बांटी जा रहीं चीजों पर चिंता जाहिर की है और सवाल किया है कि आखिर कब तक चीजें ऐसे मुफ्त दी जाती रहेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को रोजगार के अवसर देने पर फोकस करना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने यह बात कही। दरअसल पीठ उस समय हैरान रह गई जब केंद्र ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है।
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, 'इसका मतलब है कि केवल करदाता ही इससे वंचित हैं।' दरअसल कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर स्वतः संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।
एक एनजीओ की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन देने के निर्देश दिए जाने चाहिए।
भूषण ने कहा कि अदालत द्वारा समय-समय पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने के निर्देश जारी किए गए हैं ताकि वे केंद्र द्वारा प्रदान किए जाने वाले मुफ्त राशन का लाभ उठा सकें।
इस पर पीठ ने कहा, 'कब तक मुफ्त में दिया जा सकता है? हम इन प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं करते?' प्रशांत भूषण ने कहा कि यदि जनगणना 2021 में की गई होती, तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होती, लेकिन केंद्र वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है। इस पर पीठ ने कहा, 'हमें केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन पैदा नहीं करना चाहिए, वरना यह बहुत मुश्किल होगा।'
सुनवाई के दौरान भिड़े तुषार मेहता और प्रशांत भूषण
सुनवाई के दौरान मेहता और भूषण के बीच कुछ तीखी नोकझोंक भी हुई क्योंकि सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत को 'एक आरामकुर्सी एनजीओ द्वारा दिए गए डेटा और आंकड़ों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, जो लोगों को राहत प्रदान करने के बजाय शीर्ष अदालत में याचिका का मसौदा तैयार करने और दायर करने में व्यस्त था'। इस पर भूषण ने कहा कि मेहता उनसे नाराज़ थे क्योंकि उन्होंने उनसे संबंधित कुछ ईमेल जारी किए थे, जिसका गलत प्रभाव पड़ा।
मेहता ने पलटवार करते हुए कहा, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह (भूषण) इतना नीचे गिर जाएंगे, लेकिन अब जब उन्होंने ई-मेल का मुद्दा उठाया है, तो उन्हें जवाब देने की जरूरत है। उन ई-मेल पर अदालत ने विचार किया था। जब कोई सरकार या देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो उसे ऐसी याचिकाओं पर आपत्ति जतानी ही पड़ती है।' न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मेहता और भूषण दोनों को शांत करने की कोशिश की और कहा कि प्रवासी श्रमिकों के मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए 8 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया।