नई दिल्ली: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा। लोकसभा के एजेंडे में कहा गया है कि संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 जिसे एक राष्ट्र-एक चुनाव विधेयक के रूप में जाना जाता है, इसे केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल पेश करेंगे।
मेघवाल इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से अनुरोध करेंगे कि वह विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजें। मेघवाल केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 भी पेश करेंगे। इसके तहत केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर, पुडुचेरी और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक साथ चुनाव कराने की योजना है।
अगर जेपीसी ने क्लियरेंस दे दी और संसद के दोनों सदनों से ये बिल पास हो गया, तो इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के साइन करते ही ये बिल कानून बन जाएगा. अगर ऐसा हो गया तो देशभर में 2029 तक एक साथ चुनाव होंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों।
सरकार क्यों चाहती है एक साथ चुनाव?
नवंबर 2020 में पीएम नरेंद्र मोदी ने कई मंचों पर 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर बात की है। उन्होंने कहा है, "एक देश एक चुनाव सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं। इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है। पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।
इस बिल के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर विपक्ष कई तरह के तर्क दे रहा है। कांग्रेस का तर्क है कि एक साथ चुनाव हुए, तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है। चुनाव 5 साल में एक बार होंगे, तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनी थी कौन सी कमेटी?
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी बनाई गई थी। कोविंद की कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त(सीवीसी) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं। कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इसे 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी।
कोविंद कमेटी ने वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या दिया सुझाव?
-कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं।
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है।
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है।
कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?
कमेटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया. इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया। वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया था। जबकि 15 ऐसी पार्टियां भी थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 191 दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है।
किन देशों से लिया कौन सा रेफरेंस?
-वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कई देशों के संविधान का एनालिसिस किया गया. कमेटी ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपिंस, इंडोनेशिया के इलेक्शन प्रोसेस की स्टडी की।
-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभाओं और विधानसभाओं के इलेक्शन होंगे। जबकि स्वीडन इलेक्शन प्रोसेस के लिए आनुपातिक चुनावी प्रणाली यानी प्रोपोरशनल इलेक्टोरल सिस्टम अपनाता है।
-जर्मनी और जापान की बात करें, तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं।
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कौन सी पार्टियां तैयार?
वन नेशन वन इलेक्शन का बीजेपी, नीतीश कुमार की जेडीयू, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), चिराग पासवान की एलजेपी ने समर्थन किया है। इसके साथ ही असम गण परिषद, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और शिवसेना (शिंदे) गुट ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है।
किन पार्टियों ने विरोध किया?
वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (एसपी), आम आदमी पार्टी (आप), सीपीएम (सीपीएम) समेत 15 दल इसके खिलाफ थे। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया।
विधि आयोग के मुताबिक, वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है। संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है।
क्या देश में एक साथ चुनाव कराना संभव है?
वन नेशन वन इलेक्शन को संसद में पास कराने के लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी। अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई, तो ज्यादातर नॉन बीजेपी सरकारें इसका विरोध करेंगी। विपक्ष के कई दलों ने इसके संकेत पहले ही दे दिए हैं। वहीं, अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ, तब भी कानूनी तौर पर कई दिक्कतें आ सकती हैं। जिन राज्यों में हाल में सरकार चुनी गई है, वो इसका विरोध करेंगे। टेन्योर को लेकर वो सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं। बीजेपी और नॉन बीजेपी राज्य सरकारों में मतभेद इतना ज्यादा है कि वन नेशन वन इलेक्शन पर आम सहमति बनाएंगे, ऐसा मुमकिन नहीं लगता।
वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो किन विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल?
वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा।
गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा। असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल कम होगा।