नई दिल्ली: आज यानि 14 नवंबर को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिवस है। आज ही के दिन साल 1889 में प्रयागराज यानि इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी नेहरू के घर में जवाहरलाल नेहरू ने जन्म लिया था और आगे चलकर जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया भर में खूब नाम कमाया। वह भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। जवाहरलाल नेहरू को न सिर्फ कांग्रेस पार्टी के नेता बल्कि दूसरी पार्टी के नेता भी खूब आदर सम्मान दिया करते थे।
देश के बच्चे भी पंडित नेहरू को खूब प्यार करते थे। इसी वजह से उनका नाम चाचा नेहरू पड़ गया था। अपने निधन से पहले पंडित नेहरू ने अपनी आखिरी इच्छा सबके सामने रखी थी। लेकिन उनके निधन के बाद किसी ने भी उनकी आखिरी इच्छा का सम्मान नहीं किया। जानें क्या थी इसके पीछे वजह। चलिए आपको बताते हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की जब तबीयत खराब होने लगी थी। तब उन्होंने अपनी वसीयत के साथ अपनी आखिरी इच्छा का भी जिक्र किया था।
यह थी पंडित नेहरू की आखिरी इच्छा
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी वसीयत में इस बात को साफ-साफ लिखा था कि उनकी अंत्येष्टि में किसी भी धार्मिक रीति का पालन न किया जाए। लेकिन बावजूद उसके जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से किया गया।
यह फैसला किसी और का नहीं बल्कि उनकी बेटी और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का था। बकौल कैथरीन फ्रैंक जिन्होंने इंदिरा गांधी की बायोग्राफी लिखी थी, वह बताती है कि अपने फैसले से इंदिरा गांधी को काफी तकलीफ हुई थी क्योंकि उन्होंने अपने पिता की आखिरी इच्छा का सम्मान नहीं किया।
इस वजह से अपनाई गई हिंदू रीतियां
इंदिरा गांधी की बायोग्राफी लिखने वाली कैथरीन फ्रैंक पंडित जवाहरलाल नेहरू के अंतिम संस्कार पर हिंदू रीति रिवाज अपनाये जाने को लेकर बताती हैं कि इंदिरा गांधी को अपने फैसले से काफी तकलीफ हुई थी। लेकिन उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी ऐसा नहीं चाहती थी। लेकिन कुछ धार्मिक नेताओं और राजनेताओं ने ऐसा करने के लिए उन पर दबाव डाला था। उनका कहना था कि भारत के लोग धर्मनिरपेक्ष अंतिम संस्कार को पसंद नहीं करेंगे। यही वजह थी कि उनके अंतिम संस्कार को हिंदू रीति रिवाज के तहत किया गया। नेहरू को उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने मुखाग्नि दी थी।