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काठमांडू: माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड बुधवार को नेपाल के प्रधानमंत्री चुन लिये गए। प्रचंड ने प्रधानमंत्री पद के चुनाव के लिए मंगलवार को नामांकन दाखिल किया था। उम्मीद है कि प्रचंड के प्रधानमंत्री चुने जाने से नेपाल में राजनीतिक स्थिरता आएगी। अपने भारत विरोधी रुख के लिए पहचाने जाने वाले प्रचंड को सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस का समर्थन मिला। इसके अलावा मधेसी पार्टियों ने भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया। मंगलवार को नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देवबा ने सीपीएन-माओवादी सेंटर के प्रमुख प्रचंड की उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया था और माओवादी नेता कृष्ण बहादुर महारा ने इसका समर्थन किया था। यह महत्वपूर्ण घटनाक्रम उस वक्त हुआ है जब एक दिन पहले नेपाली राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने बहुमत वाली सरकार के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों का नए सिरे से आह्वान किया था। इससे पहले राष्ट्रपति की ओर से सरकार के गठन के लिए दी गई समयसीमा खत्म हो गई थी और और प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई थी।
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काठमांडो: नेपाल के शीर्ष माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने की तैयारी में हैं और उन्होंने इस पद के चुनाव के लिए मंगलवार को नामांकन दाखिल किया। उनको आंदोलनरत मधेसियों का भी समर्थन मिला जिनके साथ उन्होंने तीन सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किया। प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव बुधवार को है और इससे देश में राजनीतिक स्थिरता आने की उम्मीद जताई जा रही है। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने सीपीएन-माओवादी सेंटर के प्रमुख प्रचंड की उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया और माओवादी नेता कृष्ण बहादुर महारा ने इसका समर्थन किया। प्रचंड के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के लिए मधेसी पार्टियों का समर्थन हासिल करने के मकसद से नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-माओवादी सेंटर ने मधेसी फ्रंट के साथ तीन सूत्री समझैते पर हस्ताक्षर किया। प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचंड एकमात्र आधिकारिक उम्मीदवार हैं। माओवादी प्रमुख के नामांकन दाखिल करने से पहले प्रचंड और नेशनल कांग्रेस प्रमुख देउबा ने मधेसियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते में मधेसियों को विश्वास दिलाया गया है कि राजनीतिक सहमति और संविधान में संशोधन के जरिए उनकी मांगों को पूरा किया जाएगा। यद्यपि भारत विरोधी रूख रखने वाले प्रचंड एकमात्र उम्मीदवार हैं, लेकिन मतदान होगा और सीपीएन-यूएमएल और उसका गठबंधन उनके खिलाफ मतदान करेगा।
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इस्लामाबाद: भारत को और अधिक उकसाते हुए पाकिस्तान की संसद ने कश्मीर में मानवाधिकारों के काथित हनन की निंदा करते हुए आम राय से एक प्रस्ताव पारित किया और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग से इसकी जांच के लिए घाटी में एक तथ्यान्वेषी मिशन भेजने की मांग की। स्पीकर सरदार अयाज सादिक की अध्यक्षता में नेशनल एसेंबली (पाक संसद) का 34वां सत्र सोमवार शाम शुरू हुआ, जिसने कश्मीरियों को अपना समर्थन दिया। बीती रात पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया, ‘पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा बेकसूर कश्मीरियों पर किए गए अत्याचारों की निंदा करती है।’ इसने कहा है कि ‘पेलेट गन’ का इस्तेमाल किया जाना निंदनीय है और यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के खिलाफ है। इसने कहा कि यह सदन इन कार्यों की निंदा करता है। यह इस बात को लेकर आश्वस्त है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन जम्मू कश्मीर के साहसी, उत्पीड़ित लोगों को नहीं रोक सकता। इसने कश्मीर में संघर्ष के लिए पाकिस्तान के राजनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक समर्थन के जारी रहने की बात दोहराई। प्रस्ताव के जरिए सरकार पर अंतराष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध करने का दबाव डालते हुए अंतर सरकारी एवं अंतर संसदीय संगठनों, अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों और सिविल सोसाइटी तथा मीडिया से भारत को फौरन मानवाधिकारों का कथित हनन रूकवाने का अनुरोध किया गया है।
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इस्लामाबाद: पाकिस्तान के निकट साझेदार तुर्की ने कश्मीर में मानवाधिकार के कथित उल्लंघन की जांच के लिए इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी की एक टीम भेजने के इस्लामाबाद के रूख का समर्थन किया, हालांकि उसने यह भी कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान बातचीत के जरिए होनी चाहिए। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावागलू ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘तुर्की जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के रूख का पूरा समर्थन करता है।’ उन्होंने कहा कि तुर्की कश्मीर मामले पर बने ओआईसी संपर्क समूह का सक्रिय सदस्य है और उसकी बैठक में शामिल हुआ। उम्मीद है कि इसकी अगली बैठक सितंबर में होगी। तुर्की के विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं ओआईसी के महासचिव से कहना चाहूंगा कि वह संपर्क समूह को संगठित करें और एक पर्यवेक्षक मिशन को भेजें। हमारा मानना है कि इस मुद्दे (कश्मीर) का बातचीत के जरिए समाधान होना चाहिए।’ पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाया था और घाटी में मानवाधिकार के कथित उल्लंघन की जांच के लिए तथ्यान्वेषी दल भेजे जाने की मांग की थी। बीते 8 जुलाई को हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से सुरक्षा बलों के साथ झड़प में 49 लोग मारे जा चुके हैं।
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