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(संजय कुमार): तेलंगाना के काजीपेट रेलवे स्टेशन पर उतरते ही इस बात का एहसास होने लगता है कि तेलंगाना में अबकी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। राजधानी एक्सप्रेस में रेलवे के एक कर्मचारी ने हमें पहले ही बता दिया कि तेलंगाना में लड़ाई बीआएस और कांग्रेस के बीच ही है और इस मुकाबले में कांग्रेस भारी पड़ रही है। क्योंकि यहां के लोग बदलाव चाहते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लोग एक तो केसीआर का चेहरा देख-देखकर उब गए हैं और दूसरा, केसीआर ने कोई नया काम भी नहीं किया है, जो लोगों को आकर्षित कर सके। जहां तक केसीआर की योजनाओं का सवाल है तो कांग्रेस ने बीआरएस से दो कदम आगे बढ़कर घोषणाएं कर दी हैं।

जिस रायतु बंधु योजना की रकम जारी करने को लेकर दिल्ली में इतना बवाल मचा था उसपर यहां के लोगों का कहना है कि चलो 28 नवंबर नहीं 1 दिसंबर को मिल जाएगा। उससे क्या फर्क पड़ता है। असली मुद्दा तो ये हैं कि कांग्रेस ने इसे बढ़ाकर 10 हजार से 15 हजार करने की बात की है और जो योजना एक बार शुरू हो गई उसे कोई सरकार बंद नहीं कर सकती।

(अरुण दीक्षित): मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे आने में अभी पूरे आठ दिन बाकी हैं।इनको लेकर हर आदमी का अपना आंकलन और अपना गणित है। सट्टा बाजार अपना अलग गणित दे रहा है। यह भी कह सकते हैं कि जितने मुंह उतनी बातें! इन्हें सीटें भी कह सकते हैं। उधर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपनी जीत का दावा पूरी ताकत से कर रही हैं। दोनों के अपने अपने तर्क हैं और अपने अपने विश्वास! जहां तक जमीनी हकीकत की बात है, उसका एहसास तो सबको है। लेकिन उस पर भरोसा तीन दिसंबर की शाम को ही हो पाएगा!

लेकिन इस बीच निवर्तमान घोषित किए जा चुके मुख्यमंत्री द्वारा अपने दल के विधायक प्रत्याशियों से मेल मुलाकात और प्रशासनिक गतिविधियां चलाए जाने ने एक नई बहस छेड़ दी है। इस बहस के साथ ही एक सवाल यह भी उठा है कि क्या वे पार्टी लाइन से अलग अपनी खिचड़ी पका रहे हैं? इसकी बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जब पार्टी हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का अघोषित एलान कर ही दिया है, तो फिर वे अचानक इतने सक्रिय क्यों हैं।

(आशु सक्सेना): ब्रिटिश भारत यानि अंग्रेज़ों के शासन में निर्मित 'संसद भवन' में सन् 1927 में पहली बार कामकाज शुरू हुआ था। अब इस भवन की उम्र 95 साल से अधिक हो चुकी है। निसंदेह, संसद भवन की पुरानी बिल्डिंग बेहद खुबसूरत और लोगों को आ​कर्षित करने वाली है। लेकिन अब यह भवन इतिहास हो चुका है।

संसद भवन की पुरानी बिल्डिंग कहलाएगी 'संविधान सदन' 

इसी साल इस भवन का नामकरण भी किया गया है। लोकसभा सचिवालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक अब इस भवन को 'संविधान सदन' कहा जाएगा।

दिल्ली के रायसीना हिल पर स्थित इस भवन से जुड़ी तमाम यादें जहन में हैं। इनको संजोकर कई किताब लिखी जा सकती है। इस भवन में मेरा नवंबर 1990 से 17 मार्च 2020 तक लगातार जाना हुआ। इस दौरान की लगभग सभी घटनाओं का साक्षी रहा हूॅं और उन घटनाओं को कवर भी किया है। यह रिपोर्ट विभिन्न अख़बारों और बेवसाइट पर लगातार प्रकाशित होती रही हैं। आज बात ​"कोरोना काल" की करते है।

17 मार्च 2020 को संसद में कोरोना पर बहस छिड़ी थी और दोनों सदनों की कार्यवाही बारबार स्थगित हो रही थी।

(आशु सक्सेना): पंजाब की गुरूदास पुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद और बैंक के कर्ज को लेकर छिडे़ हालिया विवाद के बाद चर्चा में आए फिल्म स्टार सन्नी देओल के चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा के बाद उभरा नया राजनीतिक परिदृश्य राष्ट्रीय स्तर पर बन रहे विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए (इंडिया) को सूबे में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और प्रमुख विपक्ष कांग्रेस को एक मंच पर लाने में एक बार फिर अहम भूमिका अदा कर सकता है।

आपको याद दिला दें कि आम आदमी पाटी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 2014 में दिल्ली में भाजपा को रोकने की रणनीति के तहत कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में अन्ना आंदोलन के बाद अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी (आप) ने 29 सीटों पर जीत दर्ज करके दिल्ली में जहां कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। वहीं दिल्ली की सत्ता की प्रबल दावेदार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी सत्तारूढ़ होने से रोक दिया था।

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