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(आशु सक्सेना): लोकसभा चुनाव के तीन चरण का मतदान हो चुका है। 545 सीटों वाली लोकसभा की आधी से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। केंद्र की सत्ता पर पिछले एक दशक से काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पीएम मोदी की गारंटी के नारे पर इस बार चार सौ पार का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन तीन चरण की वोटिंग के बाद रूझानों की जो धुंधली सी तस्वीर उभरी है, उसमेंं सत्तारूढ़ बीजेपी को कहीं से भी बढ़त मिलने के संकेत नहीं है। सबसे चौंकाने वाले संकेत अयोध्या, काशी और मथुरा वाले सूबे उत्तर प्रदेश से सुनने को मिल रहे हैं। इस प्रदेश में बीजेपी की हार पीएम मोदी को निश्चिततौर पर सत्ता से बेदखल कर देगी। यही वजह है कि पहले चरण के मतदान के बाद पीएम मोदी ने अपने भाषणों को हिंदु-मुसलिम पर केंद्रित करके चुनाव को सांप्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया है।

आपको याद होगा कि पीएम मोदी ने 2017 मेंं यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान शमशान और कब्रिस्तान का मुद्दा उठाकर सपा के विकास के नारे को दबा दिया था।

(आशु सक्सेना): सभी राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। केंद्र की सत्ता पर पिछले एक दशक से काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माहौल को धार्मिक बनाने की रणनीति के तहत अयोध्या यानि रामजन्म भूमि पर रामलला के 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तैयारियों के तहत रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा और कई अन्य परियोजनाओंं का शनिवार को उद्धाटन करके अपने चुनाव प्रचार अभियान का श्री गणेश कर दिया है।

वहीं, प्रमुख विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में भी लोकसभा सीटों के बंटवारे की पेचीदा समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रव्यापी स्तर पर घटक दलों की बैठकों के दौर मेंं तेजी आयी है। इसके लिए 'इंडिया' गठबंधन ने 'जो जीतेगा-वही लड़ेगा' के सिद्धांत पर सीटों का बंटवारा तय किया है। अपनी इस कवायद में उसे कितनी सफलता मिली, यह तो भविष्य के गर्व में है। हांलाकि विपक्षी गठबंधन ने अपनी पिछली दिल्ली बैठक में इसके लिए 15 जनवरी की समयसीमा तय की है।

(आशु सक्सेना): केंद्र की सत्ता पर करीब एक दशक से काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव के सेमी फाइनल में हिंदी भाषी तीन सूबों में जीत का परचम फहरा कर चुनावी राजनीति के फाइनल मुकाबले के लिए मजबूत दावेदारी दर्ज़ की है। प्रधानमंत्री ने बीते 15 अगस्त को दिल्ली केे लाल किले की प्राचीर से यह दावा किया था कि अगले साल भी वही 'राष्ट्रीय ध्वज' फराएंगे।

सेमी फाइनल के नतीज़ों को अगर आधार माना जाए, तो पिछले एक दशक से बीजेपी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी अपने दावे को अमलीजामा पहनाने की स्थिति में नज़र आ रहे हैं। वह देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू का रिकार्ड तोड़ते नज़र आ रहे हैं।

लेकिन अगर दुर्भाग्य से क्रिकेट वनडे विश्वकप की तरह लोकतंत्र की चुनावी राजनीति के फाइनल मुकाबले में पीएम मोदी अपनी तीसरी पारी के लिए लोकसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने में असफल रहे, तब बीजेपी के संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका क्या होगी? यह एक बहुत बड़ा सवाल है? क्या आरएसएस अपनी स्थापना के 99वें में साल में पीएम मोदी पर ही दाव खेलेगी?

(आशु सक्सेना): देश की हिन्दी पट्टी कहे जाने वाले राज्यों में से तीन- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़- में जीत के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का केंद्रीय नेतृत्व काफी पशोपेश में है। तीन दिसंबर को चुनाव नतीज़े सामने आ गये हैं, लेकिन अभी तक किसी भी सूबे के मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं की गयी है। दरअसल, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने दिक्कत यह है कि तीनों ही राज्यों का चुनाव पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा है। लेकिन चुनाव नतीज़ों के बाद जो तस्वीर उभरी है, उसमें जहां मध्य प्रदेश की जीत का श्रेय सीएम शिवराज सिंह चौहान के खाते में जा रहा है। वहीं, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीत में पूर्व सीएम बसुंधरा राजे सिंधिया और पूर्व सीएम रमन सिंह की अहम भूमिका मानी जा रही है। इन दोनों की राज्यों में पार्टी के यह वरिष्ठ नेता एग्ज़िट पोल के बाद से ही सक्रिय हैं।

आपको याद दिला दें कि छत्तीसगढ़ में जहां सभी एग्ज़िट पोल भूपेश बघेल सरकार की वापसी की उम्मीद जता रहे थे, तब सबसे पहले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का बयान सबसे पहले सामने आया था कि कांग्रेस 35 सीट से ज्यादा नही जीत रही है।

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