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(नरेन्द्र भल्ला): खनिज -संपदा के लिहाज़ से देश के प्रमुख राज्य झारखंड का विधानसभा चुनाव इस बार कुछ दिलचस्प होता नज़र आ रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के लिये जहां सत्ता बचाने की चुनौती है, तो वहीं बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के लिए सत्ता पर काबिज़ होना "करो या मरो" वाली स्थिति के समान है। दोनों तरफ़ से बड़े-बड़े वादों और दावों की भरमार है, लेकिन यह तो जनता ही तय करेगी कि उसे किस पर ज्यादा भरोसा है। सत्ता की चाबी अपने पास रखने वाले आदिवासी बहुल राज्य में वैसे तो मुद्दों की कमी नहीं, लेकिन कम से कम 4 ऐसे बड़े फैक्टर हैं, जिनसे चुनाव का नतीजा तय होने वाला है। 81 सीटों वाले झारखंड में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है, लिहाज़ा हर चुनाव में राजनीतिक दलों की किस्मत का फैसला वही करते हैं।

दोनों गठबंधन की महिला वोटर्स पर नजर

इस बार दोनों ही गठबंधन महिला वोटरों को लुभाने के लिए एक से बढ़कर एक दावे कर रहे हैं। इनमें से प्रमुख है महिलाओं के लिए मासिक आर्थिक मदद।

(नरेन्द्र भल्ला): महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का सारा फोकस ओबीसी वोटों पर है। महाराष्ट्र में ओबीसी राजनीति की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां 351 ओबीसी समुदाय हैं, जो राज्य की जनसंख्या का 52% हिस्सा हैं। इनमें से 291 समुदाय केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं। पिछले हफ़्ते ही शिंदे सरकार ने सात नई जातियों और उनकी उप-जातियों को शामिल करने का प्रस्ताव पारित कर उसे केंद्र को भेजा है। हालांकि यह मांग 1996 से ही लंबित थी।

क्रीमी लेयर की आय सीमा बढाई गई

मोटे तौर पर देखें, तो महाराष्ट्र में भी बिल्कुल हरियाणा वाला ही हाल है। मराठों की नाराजगी के चलते बीजेपी को लोकसभा चुनावों में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लिहाज़ा,अब पार्टी यहां भी हरियाणा वाला फॉर्मूला लागू करने की तैयारी कर रही है। एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण की तरह बीजेपी यहां एंटी मराठा वोटों को जोड़ने की तैयारी कर रही है। अब देखना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है।

(आशु सक्सेना): भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भले ही लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के करीब पहुंची है। लेकिन अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश ने बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने से रोक दिया है। यूं प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह समेत कई प्रमुख मंत्री व नेताओं ने जीत की हैट्रिक लगाई है। लेकिन वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर घटकर 1 लाख 52 हजार 13 मतों तक सिमट गया है। यही नहीं पीएम मोदी अपने गृहराज्य गुजरात को भी इस बार पूरी तरह कांग्रेस मुक्त रखने में सफल नहीं रहे। पीएम मोदी के गृहराज्य में कांग्रेस अपनी उपस्थिति दर्ज करने में सफल रही है। पीएम मोदी को तीसरे कार्यकाल से पहले जबरदस्त झटका लगा है। उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गयी है।

पीएम मोदी अपने चुनावी भाषणों में कांग्रेस के शासन की आलोचना के अलावा किसी ना किसी मुद्दे पर सांप्रदायिक रंग जरूर देते थे। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद पीएम मोदी का कोई भी चुनावी भाषण हिंदू मुसलिम का ज़िक्र किये बगैर पूरा नहीं हुआ।

(आशु सक्सेना): 18 वीं लोकसभा के लिए छठे चरण का मतदान आज संपन्न हो जाएगा। इसके साथ ही लोकसभा की 543 सीटोंं में से 486 सीटों पर मतदान प्रक्रिया संपन्न हो जाएगी। उसके बाद एक जून को सांतवें और अंतिम चरण की 56 सीटों पर मतदान होना शेष रहा जाएगा। अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी पर सब की निगाह टिकी होंगी।

पीएम मोदी ने 15 अगस्त 2023 को लाल किले की प्रचीर से यह दावा किया था कि अगले साल 2024 में वहीं यहां तिरंगा फहराने आएंगे। लेकिन 80 लोकसभा सीटों वाले देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में छह दौर की वोटिंग के बाद एक बात साफ उभर कर आयी कि दलित, पिछड़ा और अल्प संख्यकों की गोलबंदी ने पीएम मोदी के दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश में पश्चिम से लेकर पूर्वाचल तक इन वर्गों की गोलबंदी साफ नज़र आयी। जिसका चुनाव नतीजों पर असर पडना तय है। पूर्वाचल का प्रवेश द्वार आजमगढ़ 'इंडिया' गठबंधन के घटक समाजवादी पार्टी (एसपी) का गढ़ माना जाता है। यह लोकसभा सीट 2022 के उपचुनाव में बीजेपी ने सपा से छीन ली थी।

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